द हिन्दू मैनीफेस्टो”: हिंदू पुनर्जागरण

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अगर आप भी कभी सोचते हैं कि हमारी प्राचीन सभ्यता की जड़ें कितनी गहरी हैं और आज की दुनिया में उसका क्या मतलब हो सकता है—तो एक दिलचस्प किताब आपके इंतज़ार में है। स्वामी विज्ञानानंद की नई पुस्तक द हिन्दू मैनीफेस्तो” का विमोचन 26 अप्रैल 2025 को राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सरसंघचालक मोहन भागवत के हाथों किया जाएगा। औ यह सिर्फ एक किताब नहीं, बल्कि एक सोच है—एक ऐसा रोडमैप, जिसमें हिंदू दर्शन, समरसता और नैतिक शासन की झलक मिलती है।

इस किताब को एक प्रकार का “सभ्यतागत ब्लूप्रिंट” कहा जा रहा है—अर्थात हमारी प्राचीन परंपराओं और ग्रंथों जैसे वेद, रामायण, महाभारत, अर्थशास्त्र और शुक्रनीतिसार के आधार पर एक नया सामाजिक और राष्ट्रीय मॉडल। इसमें सिर्फ धार्मिक पहलुओं की बात नहीं, बल्कि एक न्यायपूर्ण, समृद्ध और समरस समाज की पूरी प्लानिंग की गई है।

“द हिन्दू मैनीफेस्टो” का केंद्र आठ सूत्र हैं, जिन्हें सामाजिक और राष्ट्रीय पुनर्निर्माण के लिए अनिवार्य बनाया गया है। पहले चार सूत्र—आर्थिक समृद्धि, राष्ट्रीय सुरक्षा, गुणवत्तापूर्ण शिक्षा और जिम्मेदार लोकतंत्र—एक मजबूत और टिकाऊ राष्ट्र की नींव रखते हैं। वहीं बाकी चार सूत्र—महिलाओं के प्रति सम्मान, सामाजिक समरसता, पर्यावरण की रक्षा और मातृभूमि के प्रति भक्ति—संस्कृति, पर्यावरण और आध्यात्मिक चेतना की आत्मा को सामने लाते हैं, जो आज के दौर में कहीं खोती जा रही है।

यह पुस्तक रामराज्य की आदर्श कल्पना से प्रेरणा लेकर आज की दुनिया की जरूरतों को ध्यान में रखकर तैयार की गई है। इसमें नैतिक शासन, समान अवसर, महिलाओं का सशक्तिकरण और प्रकृति के प्रति सम्मान जैसे मूल तत्वों को समाहित किया गया है। लेखक ने वर्ण और जाति जैसे जटिल सामाजिक मुद्दों पर भी खुलकर बात की है, समाज में एकता और समावेशिता को बढ़ावा देने का प्रयास किया है।

स्वामी विज्ञानानंद जी न केवल एक रचनाकार या सन्यासी है, वे वर्ल्ड हिंदू कांग्रेस और वर्ल्ड हिंदू इकनॉमिक फोरम जैसे फोरमों के संस्थापक हैं और विश्वभर में हिंदू मूल्यों के प्रचार-प्रसार में सक्रिय भूमिका निभा चुके हैं। “द हिन्दू मैनीफेस्टो” का माध्यम समर्थक वे प्राचीन भारतीय ज्ञान और आधुनिक शासन प्रणाली का समन्वय प्रस्तुत करते हैं—एक ऐसा रोडमैप जो नैतिक, समावेशी और टिकाऊ विकास की दिशा दिखाता है।

यह पुस्तक उन सभी लोगों को विशेष रूप से प्रेरित कर सकती है जो हिंदू विचारधारा से प्रेरित सांस्कृतिक और राष्ट्रीय नवजागरण में अपना योगदान देना चाहेंगे—चाहे वे नीति-निर्माता हों, विद्वान, आध्यात्मिक नेता या आज का जागरूक युवा। 26 अप्रैल को जब मोहन भागवत इस पुस्तक का विमोचन करेंगे, तो यह सिर्फ एक पुस्तक का लोकार्पण नहीं होगा—बल्कि एक विचार यात्रा की शुरुआत होगी।

 

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