भाजपा का भाजपा पर ही वार: त्रिवेंद्र सिंह रावत का धामी सरकार पर अवैध खनन को लेकर गंभीर आरोप, सियासत में तूफान
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,10 अप्रैल। उत्तराखंड की राजनीति में एक अनोखा मोड़ उस समय आया जब भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने अपनी ही पार्टी की राज्य सरकार पर अवैध खनन को लेकर गंभीर आरोप लगा दिए। रावत, जो वर्तमान में हरिद्वार से सांसद हैं, ने संसद के सत्र के दौरान राज्य की धामी सरकार की कार्यप्रणाली पर सवाल उठाते हुए राजनीतिक हलकों में खलबली मचा दी।
संसद में उत्तराखंड की स्थिति पर चर्चा के दौरान त्रिवेंद्र सिंह रावत ने कहा कि देहरादून, हरिद्वार, नैनीताल और उधम सिंह नगर जिलों में अवैध खनन चरम पर है। विशेषकर रात के समय ओवरलोड खनन ट्रकों की आवाजाही, न सिर्फ कानून व्यवस्था बल्कि पर्यावरण और सार्वजनिक सुरक्षा के लिए भी एक बड़ा खतरा बन चुकी है।
उन्होंने सीधे सवाल उठाया कि, “क्या प्रशासन के कुछ अधिकारी खनन माफियाओं के साथ मिले हुए हैं?” यह बयान आते ही सदन में सन्नाटा छा गया और पूरे देश के राजनीतिक गलियारों में चर्चाएं तेज हो गईं।
त्रिवेंद्र सिंह रावत के इन आरोपों पर उत्तराखंड सरकार की तीखी प्रतिक्रिया सामने आई है। राज्य के खनन विभाग के निदेशक बृजेश कुमार संत ने उनके दावों को “पूरी तरह से निराधार, झूठा और भ्रामक” बताया।
संत ने आंकड़ों के साथ जवाब देते हुए कहा कि राज्य का खनन राजस्व पिछले वित्तीय वर्ष की तुलना में दोगुने से भी अधिक हो गया है, जो इस बात का प्रमाण है कि खनन गतिविधियों पर नियंत्रण बेहतर हुआ है और अवैध गतिविधियों में गिरावट आई है।
इस पूरे घटनाक्रम ने विपक्ष को एक नया मुद्दा थमा दिया है। कांग्रेस और आम आदमी पार्टी (AAP) जैसे विपक्षी दलों ने रावत के बयान को आधार बनाते हुए धामी सरकार पर तीखे प्रहार किए हैं। कांग्रेस नेता प्रीतम सिंह ने कहा, “जब अपनी ही पार्टी के नेता सरकार की पोल खोल रहे हैं, तो इससे स्पष्ट है कि राज्य में भ्रष्टाचार और लापरवाही चरम पर है।”
रावत का यह बयान भाजपा के भीतर अंतर्विरोध की ओर भी संकेत करता है। एक ओर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी की सरकार को केंद्र से लगातार सराहना मिल रही है, वहीं पार्टी के भीतर से ही इस प्रकार का विरोध यह दर्शाता है कि भीतरखाने कुछ असंतोष ज़रूर पनप रहा है।
भाजपा के वरिष्ठ नेता त्रिवेंद्र सिंह रावत द्वारा अवैध खनन को लेकर अपनी ही पार्टी की सरकार पर निशाना साधना न सिर्फ राजनीतिक दृष्टिकोण से अप्रत्याशित है, बल्कि यह उत्तराखंड की राजनीति में आने वाले समय में नए समीकरणों की आहट भी देता है।
अब देखना यह होगा कि पार्टी इस आंतरिक टकराव को किस प्रकार सुलझाती है और क्या वाकई राज्य में खनन गतिविधियों की जांच किसी स्वतंत्र एजेंसी से कराई जाएगी या यह मामला सिर्फ एक राजनीतिक बयान बनकर रह जाएगा।