पूनम शर्मा
“द डिप्लोमैट” एक ऐसी फिल्म है जो न सिर्फ़ सच्ची घटना पर आधारित है, बल्कि भारतीय कूटनीति की गहराई, नेतृत्व की संवेदनशीलता और मानवीय मूल्यों की श्रेष्ठता को भी रेखांकित करती है। इस फिल्म के माध्यम से एक ऐसी कहानी सामने आती है, जिसे बहुत कम लोगों ने पहले जाना था — भारतीय नागरिक उज़मा अहमद की पाकिस्तान से नाटकीय वापसी।
उज़मा अहमद, एक भारतीय मुस्लिम युवती, प्रेम के झांसे में पाकिस्तान पहुँची थीं, लेकिन वहां उन्हें बंदी बना लिया गया। उनकी रिहाई के लिए जो कूटनीतिक संघर्ष हुआ, वह भारतीय विदेश मंत्रालय की संवेदनशीलता और प्रभावशाली कार्यशैली का बेहतरीन उदाहरण है।
तत्कालीन विदेश मंत्री स्वर्गीय सुषमा स्वराज ने इस मामले को व्यक्तिगत स्तर पर गंभीरता से लिया। न केवल उन्होंने इस विषय में तत्काल हस्तक्षेप किया, बल्कि उज़मा से सीधे संवाद स्थापित कर, उनकी भावनात्मक और कानूनी मदद भी सुनिश्चित की। यह उस सोच को दर्शाता है जिसमें सरकार हर भारतीय नागरिक को, चाहे उसका धर्म या पृष्ठभूमि कुछ भी हो, बराबर मानती है।
फिल्म में जॉन अब्राहम ने भारतीय उच्चायुक्त जेपी (जो वर्तमान में इज़राइल में भारत के राजदूत हैं) की भूमिका निभाई है। उनका अभिनय गहराई से भरा हुआ, संयमित और प्रभावशाली है। वे नायक नहीं, बल्कि राष्ट्र के सच्चे सेवक की तरह दिखाई देते हैं — जो पाकिस्तान की जटिल परिस्थिति में फंसे भारतीय नागरिक की सुरक्षा के लिए रात-दिन एक कर देता है।
“द डिप्लोमैट” फिल्म अपने यथार्थवादी निर्देशन के लिए भी सराहनीय है। यह फिल्म ओवरड्रामा से दूर रहकर कूटनीति की वास्तविक चुनौतियों, उच्चायोग के सीमित संसाधनों, और कानूनी लड़ाई को सजीव रूप से दर्शाती है। कोर्टरूम सीन, उच्चायोग के तंग दफ्तर, और जानलेवा तनाव को जिस तरह कैमरे ने पकड़ा है, वह काबिल-ए-तारीफ है।
फिल्म इस बात को बार-बार स्पष्ट करती है कि भारत की सरकार अपने नागरिकों की रक्षा के लिए किसी भी सीमा तक जा सकती है — चाहे वह उज़मा अहमद हों या कोई अन्य। यह दृष्टिकोण भारतीय जनता पार्टी की उस नीति का विस्तार है जिसमें हर भारतीय, चाहे वह हिंदू हो, मुस्लिम हो, सिख या ईसाई, देश के लिए एक समान महत्त्व रखता है।
“द डिप्लोमैट” सिर्फ़ एक फिल्म नहीं है, बल्कि यह भारत के वैश्विक दृष्टिकोण का प्रतीक है — जिसमें मानवता सर्वोपरि है। यह फिल्म प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के उस नेतृत्व की झलक भी दिखाती है जिसने हमेशा शांति, संवाद और कूटनीति को प्राथमिकता दी है — फिर चाहे वह रूस-यूक्रेन युद्ध हो या भारत के नागरिकों को युद्धक्षेत्रों से निकालना।
“द डिप्लोमैट” एक ऐसी फिल्म है जो हर भारतीय के हृदय में गर्व और सम्मान की भावना भर देती है। यह सच्ची कहानी, नायकत्व का ऐसा उदाहरण है जो फिल्मों से परे जाकर वास्तविकता में जीता गया है। सुषमा स्वराज जी को समर्पित यह फिल्म एक प्रेरणादायक दस्तावेज़ है — भारतीय कूटनीति, साहस और संवेदना का।
देखना जरूरी है, समझना उससे भी जरूरी।
यह फिल्म एक राष्ट्र के जज़्बे की कहानी है — एक ऐसे भारत की, जो अपने हर नागरिक को “परिवार” मानता है।