समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,11 अप्रैल। शिवसेना (उद्धव गुट) के वरिष्ठ नेता और सांसद संजय राउत ने एक बार फिर केंद्र सरकार पर तीखा हमला बोला है। इस बार उन्होंने 26/11 मुंबई हमले के आरोपी तहव्वुर हुसैन राणा को लेकर बड़ा बयान देते हुए दावा किया है कि “बिहार विधानसभा चुनाव के दौरान सरकार उसे फांसी पर लटका सकती है” ताकि चुनावी फायदा उठाया जा सके।
संजय राउत ने गुरुवार को मीडिया से बातचीत में कहा,
“सरकार तहव्वुर राणा को अमेरिका से लाने की बात कर रही है, लेकिन उसका उद्देश्य न्याय नहीं, बल्कि चुनावी राजनीति है। मुझे शक है कि जैसे ही बिहार में चुनावी बिगुल बजेगा, राणा को फांसी देने की प्रक्रिया तेज कर दी जाएगी। यह सब कुछ सिर्फ राजनीतिक लाभ के लिए किया जाएगा।”
उन्होंने यह भी जोड़ा कि देश की सुरक्षा और न्याय प्रणाली को राजनीति से ऊपर रखा जाना चाहिए, लेकिन मौजूदा सरकार बार-बार इन संवेदनशील मसलों का उपयोग जनता की भावनाओं को भुनाने के लिए करती है।
तहव्वुर हुसैन राणा एक पाकिस्तानी मूल का कनाडाई नागरिक है, जिसे अमेरिका में आतंकवाद के मामलों में दोषी ठहराया गया था। अमेरिकी एजेंसियों के मुताबिक, राणा का संबंध 2008 के मुंबई हमलों के साजिशकर्ताओं से रहा है, जिसमें 166 लोग मारे गए थे। भारत लंबे समय से राणा के प्रत्यर्पण की मांग कर रहा है, और हाल ही में अमेरिका ने उसके प्रत्यर्पण को लेकर कानूनी प्रक्रिया आगे बढ़ाई है।
संजय राउत के बयान पर बीजेपी की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई है। पार्टी प्रवक्ता ने कहा कि “राउत का बयान देश की न्याय व्यवस्था और शहीदों का अपमान है। सरकार आतंकवादियों के खिलाफ जीरो टॉलरेंस की नीति पर काम कर रही है, और इसमें राजनीति की कोई जगह नहीं है।”
राजनीतिक जानकार मानते हैं कि तहव्वुर राणा जैसे मामलों को लेकर समय-समय पर राजनीति जरूर होती रही है। खासकर जब चुनाव पास होते हैं, तब राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को अधिक प्रमुखता से उठाया जाता है। हालांकि यह भी सच है कि ऐसे मामलों में कानूनी प्रक्रिया बेहद जटिल और समय लेने वाली होती है।
संजय राउत का यह बयान निश्चित रूप से राजनीतिक हलकों में हलचल मचाने वाला है। जहां एक ओर विपक्ष इसे सत्ता पक्ष की चुनावी रणनीति बताता है, वहीं सरकार खुद को आतंकवाद के खिलाफ एक निर्णायक ताकत के रूप में पेश करती है। अब देखना यह होगा कि तहव्वुर राणा के प्रत्यर्पण और संभावित सजा का क्या राजनीतिक असर पड़ता है, खासकर बिहार जैसे संवेदनशील चुनावी राज्य में।