तड़के सुबह म्यांमार में भूकंप के झटके, 28 मार्च की त्रासदी की यादें फिर हुईं ताजा

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रविवार, 13 अप्रैल 2025  म्यांमार फिर से भूकंप के तीव्र झटकों से हिल उठा। रविवार सुबह लगभग 07:54 बजे रिक्टर स्केल पर 5.5 तीव्रता का भूकंप रिकॉर्ड किया गया, जिससे राजधानी यंगून समेत कई क्षेत्रों में दहशत फैल गई। नेशनल सेंटर फॉर सीस्मोलॉजी (NCS) के अनुसार, भूकंप का केंद्र जमीन से 10 किलोमीटर नीचे था।

हालांकि शुरुआती रिपोर्टों के अनुसार, इस बार किसी भी प्रकार के जान-माल के नुकसान की खबर नहीं है। लेकिन हाल ही में 28 मार्च को आए 7.7 तीव्रता के विनाशकारी भूकंप की ताजा यादों के चलते लोगों में भारी घबराहट देखी गई। लोग सुबह-सुबह घरों से बाहर निकलकर खुले स्थानों की ओर भागते देखे गए।  

जानकारी घटनास्थल से मिली है, जिसमें झटकों के बाद कुछ देर अफरा-तफरी का माहौल रहा। सोशल मीडिया पर साझा किए गए वीडियो में लोग घरों से बाहर निकलते हुए और खुले मैदानों में एकत्र होते दिखाई दे रहे हैं। स्थानीय प्रशासन ने राहत की बात कहते हुए यह साफ किया कि किसी भी प्रमुख क्षति की सूचना नहीं है, लेकिन सतर्कता बरतने की अपील की गई है। 

गौरतलब है कि 28 मार्च को आए भयानक भूकंप में अब तक 3600 से अधिक लोगों की मौत हो चुकी है और 5000 से ज्यादा घायल हुए थे। उस त्रासदी में म्यांमार के कई प्रांतों में भारी तबाही मची थी। स्कूल, अस्पताल, पुल, और हज़ारों घर क्षतिग्रस्त हुए थे।

आज  के भूकंप ने उस दहाड़ भारी  घटना की यादों को  फिर से ताज़ा कर दिया है। विशेषज्ञों का कहना है कि लगातार जारी भूकंपीय गतिविधियों से क्षेत्र की भूगर्भिक अस्थिरता की ओर इशारा होता है, जिस पर जल्दी ध्यान देना चाहिए।

भूकंपीय गतिविधियां केवल म्यांमार तक सीमित नहीं रहीं। शनिवार को पाकिस्तान में भी 5.8 तीव्रता का भूकंप आया, जिसके झटके जम्मू-कश्मीर तक महसूस किए गए। इसका केंद्र भी जमीन से 10 किलोमीटर नीचे था।  

म्यांमार प्रशासन ने कहा कि वह लगातार स्थिति की निगरानी कर रहा है। नागरिकों से अनुरोध किया गया है कि वे अफवाहों पर ध्यान न दें, आधिकारिक सूचनाओं पर भरोसा रखें और आपदा से जुड़ी प्राथमिक तैयारियों को गंभीरता से लें।  

विशेषज्ञों का मानना है कि जलवायु परिवर्तन और मानवीय गतिविधियों के चलते धरती की भूगर्भीय प्लेटों में असंतुलन बढ़ रहा है। भूकंप जैसी आपदाओं से निपटने के लिए न केवल मजबूत इन्फ्रास्ट्रक्चर की जरूरत है, बल्कि सामूहिक जन-जागरूकता और सतत् तैयारी भी समय की मांग बन चुकी है। 

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