‘बोलो जय श्री राम…’: तमिलनाडु के राज्यपाल के नारे पर सियासी बवाल, लेकिन क्या वास्तव में संविधान के खिलाफ है यह आह्वान?

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मदुरै ,14 अप्रैल 2025 -तमिलनाडु के मदुरै में 12 अप्रैल को आयोजित एक कार्यक्रम में राज्यपाल आर. एन. रवि द्वारा छात्रों से ‘जय श्री राम’ का नारा लगवाना अब एक नए राजनीतिक विवाद का रूप ले चुका है। कार्यक्रम त्यागराज इंजीनियरिंग कॉलेज में हुआ, जहां राज्यपाल ने छात्रों को संबोधित करते हुए कहा, “मैं कहूँगा और आप कहिए– जय श्री राम।” छात्रों ने भी पूरे उत्साह के साथ इस नारे का समर्थन किया।

इस घटना के तुरंत बाद कांग्रेस और डीएमके जैसे विपक्षी दलों ने तीखी प्रतिक्रिया दी। कांग्रेस सांसद मणिकम टैगोर ने राज्यपाल को बीजेपी-आरएसएस का “प्रचार मास्टर” करार दिया और आरोप लगाया कि एक संवैधानिक पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा ऐसा धार्मिक नारा लगवाना संविधान की भावना के खिलाफ है। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने तो यहां तक कह दिया कि राज्यपाल का यह कदम “संविधान का अपमान” है और उन्होंने राज्यपाल को तत्काल बर्खास्त करने की मांग की।

डीएमके नेता टीकेएस एलंगोवन ने भी इसी सुर में प्रतिक्रिया दी और कहा कि राज्यपाल लगातार भाजपा और आरएसएस के एजेंडे को बढ़ावा दे रहे हैं, जिससे केंद्र और राज्य के रिश्तों में खटास आ रही है।

यहाँ  यह सवाल उठता है कि क्या “जय श्री राम” जैसे नारे का आह्वान वास्तव में संविधान के खिलाफ है? इसका उत्तर संविधान के मूल स्वरूप में ही छिपा है।

भारत का मूल संविधान जब 1950 में लागू हुआ, तब उसमें “सेक्युलर” शब्द शामिल नहीं था। यह शब्द आपातकाल के दौरान 42वें संशोधन (1976) में जोड़ा गया। लेकिन इसका यह मतलब नहीं कि धार्मिक आस्था प्रकट करना या धार्मिक प्रतीकों का सम्मान करना असंवैधानिक है। भारतीय संविधान सभी धर्मों का सम्मान करने और धार्मिक स्वतंत्रता देने की बात करता है – न कि धार्मिक विचारों को दबाने की।

भगवान श्रीराम भारत की सांस्कृतिक चेतना के केंद्र में रहे हैं। वह केवल धार्मिक नहीं, बल्कि सांस्कृतिक और नैतिक मूल्यों के प्रतीक हैं। संसद के कई ऐतिहासिक भाषणों और सरकारी समारोहों में भगवान राम का उल्लेख होता रहा है। राष्ट्रपति भवन और संसद भवन में कई जगह भगवान राम की छवियाँ विद्यमान हैं। ऐसे में ‘जय श्री राम’ का उच्चारण कोई अपमानजनक या विभाजनकारी कृत्य नहीं माना जा सकता।

वास्तव में, कांग्रेस और डीएमके जैसे दलों की तीखी प्रतिक्रिया का एक राजनीतिक और वैचारिक पक्ष भी है। इन दलों पर पहले से ही “हिंदू विरोधी” (Anti-Hindu) रुख अपनाने के आरोप लगते रहे हैं। यह कोई पहली बार नहीं है जब इन्होंने भगवान राम से जुड़ी किसी बात पर आपत्ति जताई हो। इससे पहले भी राम सेतु के अस्तित्व पर सवाल उठाने और रामायण को “मिथक” कहने जैसे विवादित बयान इन दलों के नेताओं द्वारा दिए गए हैं।

राज्यपाल का ‘जय श्री राम’ कहना एक सांस्कृतिक आह्वान भी माना जा सकता है, जिसे तमिलनाडु के कई छात्रों ने भी सहज रूप से स्वीकारा। इसे धार्मिक कट्टरता या संविधान विरोधी कदम कहना अतिशयोक्ति होगी। लोकतंत्र में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता सभी को है—राज्यपाल को भी। यदि ‘जय श्री राम’ कहना विवाद का कारण बन रहा है, तो यह कहीं न कहीं राजनीतिक असहिष्णुता का संकेत है—न कि संवैधानिक संकट का।

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