“मुस्लिमों के लिए संविधान से पहले शरीयत”: आंबेडकर जयंती पर झारखंड के मंत्री हफीजुल हसन अंसारी का बयान बना विवाद का कारण

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धनबाद, 15 अप्रैल – झारखंड सरकार में अल्पसंख्यक कल्याण मंत्री हफीजुल हसन अंसारी के एक बयान ने राजनीतिक हलकों में हलचल मचा दी है। आंबेडकर जयंती के अवसर पर आयोजित एक कार्यक्रम में मंत्री ने कहा कि मुस्लिम समाज के लिए शरीयत, संविधान से ऊपर है। उन्होंने यह भी जोड़ा, “हमारे सीने में है क़ुरान, हमारा रास्ता शरीयत से तय होता है।”

इस बयान को लेकर जहां एक ओर समर्थकों ने इसे धार्मिक आस्था की अभिव्यक्ति बताया है, वहीं विपक्षी दलों और संविधान के पक्षधर संगठनों ने मंत्री पर संवैधानिक मूल्यों के खिलाफ बयानबाजी करने का आरोप लगाया है।

धनबाद में बाबा साहेब डॉ. भीमराव आंबेडकर की जयंती पर आयोजित एक सार्वजनिक सभा में हफीजुल हसन ने यह टिप्पणी की। उन्होंने कहा,
“हम बाबा साहेब का सम्मान करते हैं। उन्होंने सभी को बराबरी का अधिकार दिया, लेकिन मुस्लिमों की आस्था शरीयत में है, और हम शरीयत के मुताबिक जीते हैं।”

भाजपा समेत कई विपक्षी दलों ने मंत्री के बयान की तीखी आलोचना की है। भाजपा प्रदेश अध्यक्ष ने बयान को “संविधान का अपमान” करार देते हुए मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन से मंत्री के खिलाफ कार्रवाई की मांग की है।

वहीं, झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) के नेताओं ने इसे व्यक्तिगत राय बताते हुए कहा कि मंत्री का आशय धार्मिक आस्था की स्वतंत्रता को लेकर था, न कि संविधान को खारिज करना।

सोशल मीडिया पर यह बयान तेजी से वायरल हो गया है। कई यूज़र्स ने इसे “धर्मनिरपेक्षता पर हमला” बताया, तो कुछ लोगों ने इसे “मुस्लिम पहचान की सशक्त अभिव्यक्ति” कहकर समर्थन किया।

संविधान विशेषज्ञों का कहना है कि भारत का संविधान हर नागरिक को अपने धर्म के अनुसार जीवन जीने की स्वतंत्रता देता है, लेकिन सार्वजनिक पद पर बैठे किसी व्यक्ति से अपेक्षा की जाती है कि वह संविधान को सर्वोपरि माने।

मंत्री हफीजुल हसन अंसारी का यह बयान एक बार फिर भारत में धर्म और संविधान के बीच संतुलन की बहस को तेज कर गया है। जहां धार्मिक स्वतंत्रता एक मूलभूत अधिकार है, वहीं संवैधानिक पद पर बैठे लोगों की जिम्मेदारी भी है कि वे देश के संविधान के प्रति अपनी निष्ठा स्पष्ट रूप से जाहिर करें।

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