नर्मदापुरम, 18 अप्रैल 2025 – मध्यप्रदेश की वरिष्ठ कांग्रेस नेत्री और पत्रकार सरला मिश्रा की संदिग्ध मौत के 28 वर्षों बाद एक बार फिर इस मामले की जांच होगी। यह आदेश नर्मदापुरम कोर्ट ने उस समय जारी किया, जब मृतका के परिजनों ने वर्षों तक लगातार न्याय के लिए संघर्ष किया और पुलिस जांच में गंभीर खामियों की ओर ध्यान दिलाया।
सरला मिश्रा की मौत 14 फरवरी 1997 को भोपाल के टीटी नगर स्थित उनके सरकारी आवास पर संदिग्ध परिस्थितियों में हुई थी। प्रारंभिक पुलिस जांच में इसे आत्महत्या करार दिया गया था। इसके बाद पुलिस ने मामला बंद करने के लिए कोर्ट में आवेदन किया। हालांकि, कोर्ट ने पुलिस की रिपोर्ट में कई त्रुटियाँ पाईं और उसे खारिज करते हुए पुनः जांच के आदेश दे दिए।
मृतका के भाई अनुराग और आनंद मिश्रा ने लगभग तीन दशक तक कानूनी लड़ाई जारी रखी। उनके अनुसार सरला की मौत सामान्य नहीं थी और यह एक राजनीतिक साजिश हो सकती है। अब कोर्ट के ताजा आदेश के बाद उन्हें न्याय की एक नई उम्मीद दिखाई दे रही है।
सरला मिश्रा का झुकाव शुरू से ही सार्वजनिक सेवा की ओर था। उन्होंने सागर यूनिवर्सिटी से एलएलबी में टॉप किया था और बाद में यूनिवर्सिटी की नौकरी को यह कहते हुए ठुकरा दिया कि उन्हें राजनीति में करियर बनाना है। वे भोपाल कोर्ट और जबलपुर हाईकोर्ट में पंजीकृत अधिवक्ता थीं।
सिर्फ कानून ही नहीं, पत्रकारिता के क्षेत्र में भी उनका नाम साहसी रिपोर्टिंग के लिए जाना जाता था। उन्होंने जेल जाकर बैंडिट क्वीन के नाम से मशहूर फूलन देवी का इंटरव्यू भी लिया था, जो उस समय चर्चा का विषय बना।
सरला मिश्रा की राजनीतिक यात्रा सिवनी छपारा के डिग्री कॉलेज में छात्रसंघ अध्यक्ष बनने से शुरू हुई थी। बाद में वे कांग्रेस में शामिल हुईं और सक्रिय राजनीति में अपना स्थान बनाया। उनके राजीव गांधी और सोनिया गांधी से व्यक्तिगत संबंध थे और वे अक्सर दिल्ली स्थित दस जनपथ – सोनिया गांधी के आवास – जाती थीं।
उनके परिजनों का आरोप है कि सरला मिश्रा की मौत राजनीति से जुड़ी गहरी साजिश का हिस्सा हो सकती है। अब जब कोर्ट ने फिर से जांच के आदेश दिए हैं, तो यह उम्मीद की जा रही है कि दशकों पुरानी यह रहस्यमयी मौत के पीछे का सच सामने आ सकेगा।