सरला मिश्रा की रहस्यमयी मौत की 28 साल बाद दोबारा होगी जांच, कोर्ट ने दिए नए सिरे से जांच के आदेश

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19 अप्रैल।
कांग्रेस नेत्री और जानी-मानी अधिवक्ता-पत्रकार सरला मिश्रा की रहस्यमयी मौत के 28 साल बाद अब मामला फिर से खुल गया है। भोपाल की एक स्थानीय अदालत ने शुक्रवार को इस बहुचर्चित केस की पुनः जांच के आदेश दिए हैं। यह फैसला मिश्रा परिवार द्वारा वर्षों से चलाए जा रहे न्यायिक संघर्ष के बाद आया है।

14 फरवरी 1997 को भोपाल के टीटी नगर स्थित सरकारी आवास पर सरला मिश्रा मृत पाई गई थीं। पुलिस ने उस समय इसे आत्महत्या करार देते हुए मामला बंद कर दिया था। लेकिन अब अदालत ने पुलिस रिपोर्ट में गंभीर खामियों और तथ्यों के विरोधाभासों को ध्यान में रखते हुए केस को फिर से खोलने का आदेश दिया है।

सरला मिश्रा के भाइयों अनुराग मिश्रा और आनंद मिश्रा ने शुरू से ही उनकी मौत पर सवाल उठाए थे। उनका आरोप था कि जांच सतही रही और सच्चाई को दबाया गया। परिवार ने लगातार न्याय की मांग करते हुए कोर्ट में दस्तक दी, और अब दो दशक बाद अदालत ने उनकी बात को गंभीरता से लिया है।

सरला मिश्रा का जीवन बहुआयामी रहा। उन्होंने सागर विश्वविद्यालय से कानून में टॉप किया और वहीं से प्रस्तावित शिक्षण पद को ठुकराते हुए राजनीति में जाने का फैसला लिया। वे भोपाल जिला अदालत और जबलपुर हाईकोर्ट में पंजीकृत अधिवक्ता थीं।

इसके साथ ही वे निर्भीक पत्रकार भी थीं। उन्होंने जेल में बंद डाकू से नेता बनी फूलन देवी का इंटरव्यू लेकर सुर्खियां बटोरी थीं—जो उस दौर में किसी भी महिला पत्रकार के लिए एक साहसिक कदम माना गया।

राजनीतिक करियर की शुरुआत उन्होंने सिवनी छपारा डिग्री कॉलेज की अध्यक्ष के रूप में की। इसके बाद वे कांग्रेस पार्टी की मुख्यधारा में आईं और धीरे-धीरे संगठन में मजबूत स्थान बनाया। परिवार के मुताबिक, सरला मिश्रा राजीव गांधी और सोनिया गांधी की विश्वस्त नेताओं में गिनी जाती थीं। वे अक्सर दिल्ली स्थित 10 जनपथ (सोनिया गांधी का निवास) में जाती थीं और पार्टी रणनीतियों में सक्रिय भूमिका निभाती थीं।

सरला मिश्रा की मौत को आत्महत्या बताने के बावजूद कई बिंदु ऐसे थे जो संदेह उत्पन्न करते थे—जैसे घटनास्थल की स्थिति, कोई सुसाइड नोट न मिलना, और कॉल रिकॉर्ड्स व निजी दस्तावेज़ों का संदिग्ध रूप से गायब होना।

अब जब अदालत ने मामले को गंभीर और संदिग्ध मानते हुए नए सिरे से जांच के आदेश दिए हैं, तो उम्मीद जगी है कि 28 साल बाद भी न्याय मिल सकता है

सरला मिश्रा की मौत केवल एक राजनीतिक हस्ती की मौत नहीं थी, बल्कि वह एक ऐसी महिला की कहानी थी जो न्याय, पत्रकारिता और राजनीति—तीनों क्षेत्रों में सक्रिय थी। अब देखना यह है कि पुनः जांच से क्या सच्चाई सामने आती है और क्या वर्षों पुराना न्याय का सपना पूरा हो पाएगा।

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.