सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून: वकीलों ने कैसे दिखाई ‘पलटीबाज़ी’?

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,19 अप्रैल।
देश में वक्फ संपत्तियों को लेकर लंबे समय से विवाद चलते आ रहे हैं। अब यह मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंच चुका है, जहां वक्फ कानून को चुनौती दी गई है। इस सुनवाई के दौरान अदालत में कुछ ऐसा हुआ जिसने सबको चौंका दिया। याचिकाकर्ताओं की ओर से पेश हुए वकीलों के रुख में अचानक बदलाव देखे गए, जिसे कई विशेषज्ञों ने ‘पलटीबाज़ी’ करार दिया है।

दरअसल, वक्फ एक्ट 1995 के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई थी, जिसमें कहा गया था कि यह कानून संविधान के अनुच्छेदों का उल्लंघन करता है और इससे अन्य सम्प्रदायों के अधिकारों का हनन होता है। याचिकाकर्ताओं का कहना है कि वक्फ बोर्ड को जो विशेषाधिकार मिले हैं, वे अन्य धार्मिक समुदायों को प्राप्त नहीं हैं, जिससे असमानता पैदा होती है।

जब इस मामले की सुनवाई शुरू हुई तो याचिकाकर्ताओं के वकीलों ने शुरुआत में वक्फ कानून को पूरी तरह से असंवैधानिक बताते हुए इसे रद्द करने की मांग की। लेकिन जैसे-जैसे बहस आगे बढ़ी, वकीलों के तेवर ढीले पड़ते नज़र आए। कुछ वकीलों ने तो यह तक कहा कि “अगर वक्फ कानून को पूरी तरह से नहीं हटाया जा सकता, तो उसमें जरूरी संशोधन कर दिए जाएं।”

यह बदलाव अदालत और मीडिया दोनों के लिए चौंकाने वाला था। एक वकील ने कहा, “हम वक्फ संपत्तियों के अस्तित्व के खिलाफ नहीं हैं, बल्कि हम केवल यह चाहते हैं कि इनका प्रबंधन पारदर्शी हो।”

कई कानूनी विशेषज्ञों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने वकीलों के इस बदले हुए रुख पर सवाल उठाए हैं। उनका मानना है कि जब मामला इतनी संवेदनशीलता से जुड़ा है, तो कोर्ट में रुख बदलना जनता के साथ विश्वासघात जैसा है।

वरिष्ठ अधिवक्ता और संविधान विशेषज्ञ अश्विनी उपाध्याय ने कहा, “यह मामला सिर्फ वक्फ कानून का नहीं, बल्कि संविधान के मूल ढांचे का है। ऐसे में आधे-अधूरे तर्क देना या बहस के बीच में अपना रुख बदलना गंभीर सवाल खड़े करता है।”

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले की अगली सुनवाई के लिए तारीख तय कर दी है और केंद्र सरकार से भी जवाब मांगा है। इस मुद्दे को लेकर देशभर में चर्चा तेज हो गई है। कई धार्मिक और सामाजिक संगठनों ने इसे एक अहम लड़ाई बताया है जो न्याय और समानता के सिद्धांतों पर आधारित है।

वक्फ कानून को लेकर सुप्रीम कोर्ट में चल रही सुनवाई अब केवल एक कानूनी मामला नहीं रह गया है, यह देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने, समानता के अधिकार और पारदर्शिता के सिद्धांतों से जुड़ा विषय बन चुका है। वकीलों की कथित ‘पलटीबाज़ी’ ने इस बहस को और भी तीखा कर दिया है। अब देखना होगा कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले में क्या रुख अपनाता है और क्या देश के नागरिकों को एक निष्पक्ष और समान कानून व्यवस्था मिल पाएगी?

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