नई दिल्ली: वैश्विक व्यापार की बदलती तस्वीर और टैरिफ को लेकर जारी अनिश्चितता के बीच भारत ने अमेरिका और यूनाइटेड किंगडम के साथ अपने व्यापारिक संवाद को तेज कर दिया है। इस कड़ी में मुख्य वार्ताकार राजेश अग्रवाल के नेतृत्व में एक वरिष्ठ भारतीय प्रतिनिधिमंडल 23 अप्रैल से वॉशिंगटन डी.सी. में तीन दिवसीय बैठक के लिए रवाना होगा, जिसका उद्देश्य 90 दिनों की योजना पर सहमति बनाना है ताकि एक अंतरिम व्यापार समझौता (Interim Trade Deal) जल्द से जल्द मूर्त रूप ले सके।
यह बातचीत उस पृष्ठभूमि में हो रही है, जब पूर्व अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ-आधारित व्यापार नीतियों ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं को पूरी तरह से पुनर्गठित कर दिया था। अब जब इन टैरिफ युद्धों में अस्थायी विराम है, भारत इसे लंबित व्यापार मुद्दों को सुलझाने का अवसर मान रहा है।
सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस बार वार्ता का Terms of Reference (ToR) पहले से तय कर लिया गया है, जिसमें 19 प्रमुख अध्याय शामिल हैं —
टैरिफ और गैर-टैरिफ बाधाएं
मूल देश नियम (Rules of Origin)
कस्टम्स सुविधा और सेवाएं
कृषि, डिजिटल व्यापार और बौद्धिक संपदा अधिकार
Rules of Origin सबसे विवादास्पद मुद्दों में से एक बना हुआ है। अमेरिका का आरोप है कि चीनी उत्पाद तीसरे देशों के ज़रिए घुसपैठ कर रहे हैं, जिससे टैरिफ का प्रभाव बेअसर हो जाता है। भारत भी ऐसी ही चिंता ASEAN देशों के साथ व्यापार समझौतों को लेकर जाहिर कर चुका है।
कृषि एक अत्यधिक संवेदनशील क्षेत्र बना हुआ है। अमेरिकी वाणिज्य सचिव हॉवर्ड लुटनिक ने हाल में भारत से अमेरिकी फल और सब्जियों के लिए बाजार खोलने की मांग की है। हालांकि भारत कोटा-आधारित व्यवस्था पर विचार कर सकता है, लेकिन घरेलू किसानों के हितों से समझौता नहीं किया जाएगा — यह भारत की स्पष्ट नीति है।
डिजिटल व्यापार में भी टकराव तय माना जा रहा है, विशेष रूप से भारत की डेटा लोकलाइजेशन नीति को लेकर, जिसमें कहा गया है कि भारतीय उपभोक्ताओं का डेटा भारत में ही संग्रहित हो। यह नीति अमेरिकी टेक कंपनियों को खलती रही है, और ट्रंप सरकार के समय यह सबसे बड़ा विवाद बना था।
इन सबके समानांतर, वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल मई में यूनाइटेड किंगडम का दौरा करेंगे, जहाँ भारत-UK फ्री ट्रेड एग्रीमेंट (FTA) की अंतिम बाधाओं को सुलझाने पर फोकस होगा। समझा जा रहा है कि यह वार्ता सेवाएं और निवेश जैसे मुद्दों पर केंद्रित होगी और समझौते को अंतिम रूप देने की दिशा में निर्णायक होगी।
भारत की ये पहलें एक वृहद रणनीति का हिस्सा हैं, जिसके अंतर्गत देश वैश्विक व्यापार साझेदारों का विविधीकरण कर रहा है और बदलते वैश्विक आर्थिक परिदृश्य में अपनी आपूर्ति श्रृंखलाओं को सुरक्षित कर रहा है।
जैसे-जैसे दुनिया एक नई आर्थिक व्यवस्था की ओर बढ़ रही है, भारत अपने कूटनीतिक और व्यापारिक संतुलन को बनाए रखते हुए, अमेरिका और ब्रिटेन के साथ समझौते के ज़रिए वैश्विक मंच पर अपनी स्थिति को सुदृढ़ करने की दिशा में लगातार कदम बढ़ा रहा है। इन समझौतों के सफल क्रियान्वयन से भारत को नई तकनीकों, बाज़ारों और निवेश का मार्ग खुल सकता है।