क्या ऑनलाइन शॉपिंग सचमुच बढ़ा रही है बेरोजगारी

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आज की तेज़ रफ्तार दुनिया में मोबाइल फोन पर कुछ टैप करते ही सब्जी से लेकर मोबाइल, AC इत्यादि अब घर तक पहुँचता है। इस सुविधा के पीछे हैं विशाल ई‑कॉमर्स प्लेटफ़ॉर्म। लेकिन क्या आपने सोचा है कि इस डिजिटल चमत्कार ने हमारे हाथों से पारंपरिक नौकरियाँ छीन ली हैं? आइए, समझते हैं – क्या सच में ऑनलाइन शॉपिंग ने बेरोजगारी बढ़ा दी, या नए मौके भी उतने ही चमकदार हैं?
ई‑कॉमर्स की कहानी (2010–2025):
भारत में ऑनलाइन शॉपिंग की शुरुआत 2010 में बहुत ही नम्र थी—बाजार सिर्फ $1.5 अरब का था। लेकिन जैसे ही इंटरनेट और डिजिटल पेमेंट ने उछाल मारा, 2015 में यह $17 अरब का हो गया, 2021 में $84 अरब पर पहुंचा और अब 2025 में करीब $240 अरब डॉलर का होने जा रहा है! जब बाजार बढ़ेगा, तो काम के तरीके भी बदलेंगे।
परंपरागत कारोबार और उसकी चुनौतियाँ:
देश के हर गली‑मोहल्ले में जो दुकानें पीढ़ियों से चलती आ रही थीं, उन्हें ऑनलाइन बाजार की आंधी ने झकझोर कर रख दिया। छोटे किराना स्टोर, कपड़ों की दुकानों, बर्तन या मोबाइल बेचने वालों को अब ग्राहक कम आने लगे। लोग अब मोबाइल पर क्लिक करके घर बैठे सस्ता और तेज़ सामान मंगवा लेते हैं।
2018 से 2025 तक भारत के संगठित खुदरा क्षेत्र, जैसे मॉल, बड़े ब्रांड स्टोर, में करीब 8% नौकरियाँ घटी हैं। कई दुकानों को मजबूरन स्टाफ घटाना पड़ा और कुछ दुकानों को तो पूरी तरह बंद करना पड़ा। पहले जो सहायक, कैशियर और सेल्समैन रोज़ ग्राहकों से मिलते थे, उनकी जगह अब ऐप के नोटिफिकेशन ने ले ली है। ग्राहक को ऑनलाइन छूट और सुविधा जरूर मिली, लेकिन इस बदलाव से हजारों छोटे दुकानदारों की रोज़ी-रोटी पर असर पड़ा है। ऐसे में ज़रूरत है कि उन्हें भी डिजिटल दुनिया के साथ कदम से कदम मिलाकर चलने का मौका दिया जाए।
नए मौके: चिंता कम, ज़्यादा आशा:
लेकिन कहानी यहीं खत्म नहीं होती। बड़े पैकेजिंग सेंटर, लंबी-लंबी गोदामों (वेयरहाउस) और रंग-बिरंगे पैकेजेज़ की दुनिया में हजारों नए लोग काम कर रहे हैं, 2021 से 2025 के बीच इन केंद्रों पर काम करने वालों की संख्या 6.2 लाख से बढ़कर 7 लाख हो गई। वहीं डिलीवरी करने वाले साथी, जो एक लाख से बढ़कर दो लाख (1.05 मिलियन से 2 मिलियन) हो गए, रोज़ हमारी डिलीवरी बैग्स के हीरो बन गए!
सिर्फ यही नहीं, वेबसाइट बनाने वाले, डेटा एनालिस्ट, चेटबॉट संभालने वाले, और कॉल सेंटर वाले भी पिछले तीन सालों में लगभग 30% ज्यादा हो गए। मतलब ऑनलाइन शॉपिंग ने एक नई इंडस्ट्री खड़ी कर दी, जहाँ पुराने दिन याद आते रहे और नए दिन दस्तक देते रहे।
सरकार ने थामा हाथ:
हमारी सरकार ने भी बाज़ार के इस नए रूप को समझा। “Retail Policy 2.0” से छोटे व्यापारियों को डिजिटल ट्रेनिंग दी जाने लगी। “Digital India” के तहत कॉलेजों में ई‑कॉमर्स कोर्स शुरू हुए। वेयरहाउस और डिलीवरी पार्टनर्स को न्यूनतम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने के लिए कानूनी सुधार हुए—इससे रोजगार को मजबूती मिली।
घरेलू सफलता की कहानियाँ:
Flipkart ने 2024 तक 50,000 से ज्यादा डिलीवरी पार्टनर्स भर्ती किए, 200 से अधिक लॉजिस्टिक्स हब खोले और 3.5 लाख स्थायी कर्मचारियों को नौकरी दी। Amazon India ने 2023 तक 250 गोदाम स्थापित कर 40,000 को सीधे वेतन पर रखा। जब बड़े-बड़े नाम नौकरी दे सकते हैं, तो छोटे स्टार्टअप और क्यों पीछे रहें?
दुनिया की झलक:
थोड़ी नजर अमेरिका पर डालें तो वहाँ 2018 से 2025 तक मॉल स्टाफ में प्रति वर्ष 1.5% की गिरावट आई। चीन में 2019–2025 तक लॉजिस्टिक्स सेक्टर में 15% बढ़त दर्ज हुई। पर भारत की रफ़्तार कहीं तेज़ है—यहां हर मोर्चे पर अवसर प्लान्टिंग हो रही है।
आगे का रास्ता: खुशहाल संतुलन:
Omni‑Channel: 
दुकान और ऐप मिलकर साथ चलें, जिससे दुकानदार खुश, ग्राहक खुश और स्टाफ दोनों जगह काम करता रहे।
रूरल रेवोल्यूशन: गांवों में 30% तक हिस्सा आने वाला है; पिकअप सेंटर और स्थानीय डिलीवरी से गाँव में भी रोजगार बढ़ेगा।
नवीनतम तकनीक: ड्रोन डिलीवरी, AI रिकमेंडेशन, वर्चुअल ट्राई‑ऑन, ये सब नए रोल्स को जन्म देंगे और आप इस भविष्य के स्टार हो सकते हैं।
ऑनलाइन शॉपिंग ने पारंपरिक खुदरा में कुछ छाँट तो की है, पर रोजगार की नई फसल भी बोई है। गोदामों में, डिलीवरी नेटवर्क में, तकनीकी और सपोर्ट टीम्स में—हर कोने में नए अवसर खिले हैं। सरकार, उद्योग और हम सब मिलकर इस डिजिटल व्यास्पार को संतुलित रखें, कौशल बढ़ाएँ और नई सोच अपनाएँ, तो न केवल बेरोजगारी पर लगाम लगेगी, बल्कि भविष्य में और भी रंग-बिरंगे रोजगार खिलेंगे।
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