राम सुभाष वर्मा असिस्टेंट प्रोफेसर (राजनीति विज्ञान)
पंडित जवाहरलाल नेहरू कालेज बाँदा , यू .पी .
जजों की नियुक्ति की बेहतर प्रणाली डिज़ाइन करना एक जटिल कार्य है, क्योंकि इसमें न्यायपालिका की स्वतंत्रता, पारदर्शिता, जवाबदेही, विविधता, और कार्यकुशलता जैसे सिद्धांतों को संतुलित करना आवश्यक है। भारत में कॉलेजियम प्रणाली की कमियों और राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग (NJAC) के असंवैधानिक घोषित होने के बाद, एक ऐसी प्रणाली की आवश्यकता है जो संवैधानिक मंशा को बनाए रखे और आधुनिक लोकतांत्रिक अपेक्षाओं को पूरा करे।
एक बेहतर प्रणाली के लिए संभावित मॉडल ऐसा हो सकता है जो भारत के संदर्भ में व्यावहारिक हो और वैश्विक प्रथाओं (जैसे कनाडा, ऑस्ट्रेलिया, और यूनाइटेड किंगडम) से प्रेरणा लेता हो।
प्रस्तावित प्रणाली 1 –
स्वतंत्र न्यायिक नियुक्ति आयोग (Independent Judicial Appointments Commission)संरचनाएक स्वतंत्र न्यायिक नियुक्ति आयोग (IJAC) बनाया जाए, जिसमें निम्नलिखित सदस्य हों:
न्यायपालिका के प्रतिनिधि (3 सदस्य): भारत के मुख्य न्यायाधीश (CJI) – अध्यक्ष के रूप में।सुप्रीम कोर्ट के दो वरिष्ठ जज।
कार्यपालिका का प्रतिनिधि (1 सदस्य): केंद्रीय कानून मंत्री (या उनके द्वारा नामित व्यक्ति)।
स्वतंत्र विशेषज्ञ (2 सदस्य): दो प्रख्यात व्यक्ति, जिनमें एक कानूनी विशेषज्ञ (जैसे पूर्व जज, कानून प्रोफेसर, या वरिष्ठ अधिवक्ता) और एक सामाजिक/सार्वजनिक व्यक्ति (जैसे सामाजिक कार्यकर्ता, शिक्षाविद, या विविध समुदाय का प्रतिनिधि)।इनकी नियुक्ति एक स्वतंत्र समिति (जैसे CJI, लोकसभा अध्यक्ष, और राज्यसभा में विपक्ष के नेता) द्वारा हो।
बार का प्रतिनिधि (1 सदस्य): बार काउंसिल ऑफ इंडिया या सुप्रीम कोर्ट बार एसोसिएशन का एक प्रतिनिधि।
विविधता प्रतिनिधि (1 सदस्य): एक व्यक्ति जो अल्पसंख्यक, दलित, आदिवासी, या अन्य हाशिए पर मौजूद समुदायों का प्रतिनिधित्व करे, जिसे स्वतंत्र समिति द्वारा चुना जाए।
कुल सदस्य: 8 (न्यायपालिका की प्राथमिकता सुनिश्चित करने के लिए विषम संख्या से बचने के लिए CJI को निर्णायक वोट का अधिकार हो सकता है)।
प्रक्रियारिक्तियों की घोषणा: सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में रिक्तियों को सार्वजनिक रूप से घोषित किया जाए, जिसमें आवेदन या नामांकन के लिए समय-सीमा हो।बार एसोसिएशन, हाई कोर्ट के जज, और अन्य हितधारक उम्मीदवारों को नामांकित कर सकते हैं।
पात्रता और मानदंड: स्पष्ट और सार्वजनिक मानदंड, जैसे:न्यूनतम अनुभव (हाई कोर्ट के लिए 10 वर्ष की वकालत या न्यायिक सेवा; सुप्रीम कोर्ट के लिए हाई कोर्ट में 5 वर्ष का अनुभव या समकक्ष)।अखंडता, निष्पक्षता, और कानूनी विशेषज्ञता।क्षेत्रीय, लैंगिक, और सामाजिक विविधता को प्राथमिकता।राष्ट्रीय सुरक्षा या गंभीर नैतिक आधार पर अयोग्यता के लिए प्रावधान।
उम्मीदवारों की जांच: आयोग एक स्थायी सचिवालय की सहायता से उम्मीदवारों की पृष्ठभूमि (शैक्षिक, पेशेवर, और नैतिक) की जांच करेगा।सचिवालय में कानूनी विशेषज्ञ, डेटा विश्लेषक, और प्रशासनिक कर्मचारी होंगे।
सार्वजनिक इनपुट: उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्ट को सार्वजनिक किया जाए, और बार एसोसिएशन, कानूनी समुदाय, और सिविल सोसाइटी से सीमित समय के लिए इनपुट माँगा जाए।यह गोपनीयता और पारदर्शिता के बीच संतुलन बनाए रखेगा।चयन और सिफारिश:आयोग बहुमत से उम्मीदवारों का चयन करेगा, जिसमें CJI की राय को प्राथमिकता दी जाएगी।चयन के कारणों को लिखित रूप में दर्ज किया जाएगा और (संवेदनशील जानकारी को छोड़कर) सार्वजनिक किया जाएगा।सिफारिशें राष्ट्रपति को भेजी जाएंगी, जो औपचारिक नियुक्ति करेंगे।
कार्यपालिका की भूमिका: यदि सरकार किसी सिफारिश को अस्वीकार करती है, तो उसे लिखित और विशिष्ट कारण (जैसे राष्ट्रीय सुरक्षा) देना होगा।आयोग को अस्वीकृति पर पुनर्विचार का अधिकार होगा, लेकिन अंतिम निर्णय राष्ट्रपति का होगा।
समय-सीमा: रिक्तियों की घोषणा से नियुक्ति तक की प्रक्रिया 3-6 महीने के भीतर पूरी हो।देरी को रोकने के लिए सख्त समय-सीमा और जवाबदेही।
इस प्रणाली की सुविधाएँ
न्यायपालिका की प्राथमिकता: CJI और जजों की महत्वपूर्ण भूमिका सुनिश्चित करती है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहे।
कार्यपालिका की सीमित भूमिका: कानून मंत्री की उपस्थिति सहयोग सुनिश्चित करती है, लेकिन प्रभुत्व को रोकती है।
विविधता और समावेशिता: प्रख्यात व्यक्ति और विविधता प्रतिनिधि सामाजिक और क्षेत्रीय संतुलन को बढ़ावा देंगे।पारदर्शिता: सार्वजनिक इनपुट और लिखित कारण प्रक्रिया को विश्वसनीय बनाएँगे।
जवाबदेही: स्वतंत्र विशेषज्ञों और बार के प्रतिनिधि पक्षपात के आरोपों को कम करेंगे।
वैश्विक प्रथाओं से प्रेरणा : कनाडा में स्वतंत्र सलाहकार समिति सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए उम्मीदवारों की शॉर्टलिस्ट तैयार करती है, जिसमें विविधता और योग्यता पर जोर होता है।भारत में IJAC को इसी तरह स्वतंत्र और समावेशी बनाया जा सकता है।
यूनाइटेड किंगडम: UK में Judicial Appointments Commission (JAC) जजों की नियुक्ति के लिए पारदर्शी और योग्यता-आधारित प्रक्रिया अपनाता है, जिसमें गैर-न्यायिक सदस्य भी शामिल होते हैं।भारत में गैर-न्यायिक सदस्यों की भूमिका सीमित लेकिन अर्थपूर्ण हो सकती है।
दक्षिण अफ्रीका: दक्षिण अफ्रीका का Judicial Service Commission (JSC) जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका, न्यायपालिका, और सिविल सोसाइटी को शामिल करता है, जो विविधता और जवाबदेही को बढ़ाता है।भारत में समान मॉडल को अनुकूलित किया जा सकता है।फायदेन्यायपालिका की स्वतंत्रता: CJI और जजों की प्राथमिकता कार्यपालिका के अनुचित प्रभाव को रोकेगी।
पारदर्शिता और विश्वसनीयता: सार्वजनिक इनपुट और लिखित कारण जनता का भरोसा बढ़ाएँगे।विविधता: सामाजिक और क्षेत्रीय प्रतिनिधित्व को बढ़ावा मिलेगा, जो भारतीय समाज की जटिलता को दर्शाएगा।जवाबदेही: स्वतंत्र विशेषज्ञ और बार प्रतिनिधि पक्षपात और भाई-भतीजावाद को कम करेंगे।
कार्यकुशलता: समय-सीमा और सचिवालय रिक्तियों को तेजी से भरने में मदद करेंगे।
इस प्रणाली की चुनौतियाँ
संवैधानिक बाधाएँ: NJAC के असंवैधानिक घोषित होने के बाद, किसी भी नई प्रणाली को मूल ढांचा सिद्धांत (न्यायपालिका की स्वतंत्रता) का पालन करना होगा।सुप्रीम कोर्ट इस प्रणाली को चुनौती दे सकता है यदि कार्यपालिका की भूमिका बहुत अधिक मानी जाती है।
राजनीतिक प्रभाव: प्रख्यात व्यक्तियों और कार्यपालिका की सीमित भूमिका को भी राजनीतिक प्रभाव से मुक्त रखना चुनौतीपूर्ण होगा।
पारदर्शिता बनाम गोपनीयता: अत्यधिक पारदर्शिता उम्मीदवारों की निजता को प्रभावित कर सकती है और प्रक्रिया को जटिल बना सकती है।
संसाधन और विशेषज्ञता: सचिवालय और स्वतंत्र विशेषज्ञों के लिए पर्याप्त संसाधन और प्रशिक्षण की आवश्यकता होगी।
सहमति की कमी: सरकार, सुप्रीम कोर्ट, और अन्य हितधारकों के बीच नई प्रणाली पर सहमति बनाना कठिन हो सकता है।
कार्यान्वयन के लिए सुझावसंवैधानिक संशोधन: अनुच्छेद 124 और 214 में संशोधन करके IJAC को संवैधानिक दर्जा दिया जाए, यह सुनिश्चित करते हुए कि यह मूल ढांचा सिद्धांत का पालन करता हो।
पायलट प्रोजेक्ट: हाई कोर्ट की नियुक्तियों के लिए IJAC को पहले पायलट के रूप में लागू किया जाए, फिर सुप्रीम कोर्ट तक विस्तार किया जाए।
सार्वजनिक परामर्श: नई प्रणाली के डिज़ाइन में बार एसोसिएशन, कानूनी विद्वानों, और सिविल सोसाइटी से इनपुट लिया जाए।स्वतंत्र निगरानी:प्रणाली की निष्पक्षता सुनिश्चित करने के लिए एक स्वतंत्र निगरानी समिति बनाई जाए, जो समय-समय पर समीक्षा करे।
MoP का उपयोग: मेमोरेंडम ऑफ प्रोसीजर (MoP) को IJAC के दिशानिर्देश के रूप में उपयोग किया जाए, जिसमें समय-सीमा और मानदंड स्पष्ट हों।
वैकल्पिक मॉडल 2
यदि IJAC को लागू करना संभव न हो, तो निम्नलिखित वैकल्पिक मॉडल पर विचार किया जा सकता है:
कॉलेजियम सुधार : कॉलेजियम में बार और स्वतंत्र विशेषज्ञों को सलाहकार के रूप में शामिल करें।नियुक्तियों के लिए लिखित कारण और सार्वजनिक घोषणा अनिवार्य करें।विविधता और समय-सीमा के लिए औपचारिक नीति बनाएँ।
हाइब्रिड मॉडल: कॉलेजियम द्वारा शॉर्टलिस्टिंग और एक स्वतंत्र समिति द्वारा अंतिम चयन।कार्यपालिका को केवल वीटो का सीमित अधिकार, जिसके लिए लिखित कारण अनिवार्य हों।संविधान सभा की मंशा के साथ संरेखणसंविधान सभा ने जजों की नियुक्ति में कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संतुलन पर जोर दिया था।
प्रस्तावित IJAC मॉडल इस मंशा को पूरा करता है, क्योंकि:यह CJI और जजों को प्राथमिकता देता है, जिससे न्यायपालिका की स्वतंत्रता बनी रहती है।कार्यपालिका की सीमित भूमिका सहयोग सुनिश्चित करती है।पारदर्शिता और विविधता आधुनिक लोकतांत्रिक मूल्यों को दर्शाती है, जो संविधान सभा के व्यापक उद्देश्य (न्याय और समानता) के अनुरूप है।निष्कर्षजजों की नियुक्ति की बेहतर प्रणाली के लिए स्वतंत्र न्यायिक नियुक्ति आयोग (IJAC) एक व्यवहार्य विकल्प हो सकता है, जो न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बनाए रखते हुए पारदर्शिता, जवाबदेही, और विविधता को बढ़ावा देता है।
यह प्रणाली कनाडा और यूनाइटेड किंगडम जैसे देशों की प्रथाओं से प्रेरणा लेती है और भारतीय संदर्भ में अनुकूलित है। हालांकि, इसके कार्यान्वयन के लिए संवैधानिक संशोधन, हितधारकों की सहमति, और मजबूत प्रशासनिक ढांचे की आवश्यकता होगी।
वैकल्पिक रूप से, कॉलेजियम प्रणाली में लक्षित सुधार (जैसे पारदर्शिता और विविधता नीति) भी एक अंतरिम समाधान हो सकता है।