नई दिल्ली: राज्य सभा के उप सभापति के पद पर विराजमान होन जा रहे हरिवंश सिंह के चुनाव ने ये साबित कर दिया कि बीजेपी को रोकने के लिए बनाए महागठबंधन में काफी खामियां हैं। चाहे आप पार्टी का वॉक-आउट हो या शिवसेना का एनडीए के पाले में वोट डालना (इससे पहले अविश्वास प्रस्ताव में शिवसेना ने वॉक-आउट कर दिया था), बीजेपी सटीक राजनीति के साथ अपने प्रत्याशी को जीताने में कामयाब रही है।
राजनीति को छोड़ दें तो हरिवंश की जीत कई मायनों में खास है। पेशे से पत्रकार रहे हरिवंश की जीत ये साबित करती है की ईमानदारी और सच्ची निष्ठा से पत्रकारिता के क्षेत्र में काम कर रहे पत्रकार भी कई उचें अहोदे पर जा सकते हैं। इसी कड़ी में हरिवंश ने उन छोटे पत्रकारों को एक आशा की उम्मीद दिखाई है जो हर छोटे कस्बे, शहर में अपनी ईमानदारी से समाज में हो रहे कृतियों को उजागर कर रहे हैं।
हरिवंश नारायण का संक्षिप्त परिचय
देश के वरिष्ठतम पत्रकारों में शुमार हरिवंश जदयू के महासचिव हैं। उन्हें बिहार के मुख्यमंत्री और जदयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष नीतीश कुमार का बेहद करीबी माना जाता है। ढाई दशक से अधिक समय तक ‘प्रभात खबर’ के प्रधान संपादक रहे हरिवंश को नीतीश कुमार की पार्टी जनता दल यूनाइटेड ने 2014 में राज्यसभा भेजा था। राज्यसभा में उन्होंने देश के कई ज्वलंत मुद्दे उठाए। हरिवंश को जयप्रकाश नारायण (जेपी) ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया।
हरिवंश का पूरा नाम हरिवंश नारायण सिंह है, और उनका जन्म उत्तरप्रदेश के बलिया जिले के सिताबदियारा गांव में 30 जून 1956 को हुआ था। बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय से अर्थशास्त्र में एमए और पत्रकारिता में डिप्लोमा की पढ़ाई की। पढ़ाई के दौरान ही ‘टाइम्स ऑफ इंडिया’ समूह मुंबई में प्रशिक्षु पत्रकार के रूप में 1977-78 में चयन हुआ। वे टाइम्स समूह की साप्ताहिक पत्रिका ‘धर्मयुग’ में 1981 तक उपसंपादक रहे। 1981-84 तक हैदराबाद और पटना में बैंक ऑफ इंडिया में नौकरी की। 1984 में इन्होंने पत्रकारिता में वापसी की और 1989 अक्टूबर तक ‘आनंद बाजार पत्रिका’ समूह से प्रकाशित ‘रविवार’ साप्ताहिक पत्रिका में सहायक संपादक रहे।
बाद में महानगरों की पत्रकारिता और बड़े घरानों के बड़े अखबारों-संस्थानों को छोड़कर एक छोटे से शहर रांची में प्राय: बंद हो चुके अखबार ‘प्रभात खबर’ में प्रधान संपादक बने। यहां उन्होंने अखबार में क्षेत्रीय और स्थानीय मुद्दों को प्रमुखता दी। नए प्रयोगों और जन सरोकार से जुड़ी पत्रकारिता के दम पर अखबार को स्थापित किया और शीर्ष पर पहुंचा दिया।
वर्ष 1990-91 के कुछ महीनों तक उन्होंने तत्कालीन प्रधानमंत्री चंद्रशेखर के अतिरिक्त सूचना सलाहकार (संयुक्त सचिव) के रूप में प्रधानमंत्री कार्यालय में भी काम किया। नब्बे के दशक में ही उन्होंने ‘प्रभात खबर’ के जरिए आर्थिक रूप से कमजोर राज्य बिहार की स्थिति को केंद्र के सामने रखने के लिए दिल्ली में दस्तक दी। राज्यसभा पहुंचे, तो ज्वलंत विषयों पर पूरी मजबूती के साथ अपनी बात रखी।
दिल्ली से लेकर पटना तक मीडिया में नीतीश कुमार की बेहतर छवि बनाने में हरिवंश का बड़ा योगदान रहा है। हरिवंश राजपूत जाति से आते हैं। एनडीए हरिवंश के सहारे बिहार में राजपूत वोट बैंक को अपनी ओर खींचना की कोशिश में है।
राज्य सभा के उप सभापति बनने का चुनावी समीकरण
वोटिंग के दौरान कुल 206 वोट पड़े, जिसमें एनडीए के हरिवंश के पक्ष में 115 वोट डाले गए। हालांकि इस दौरान 2 सदस्य अनुपस्थित रहे, यानि उन्होंने वोट नहीं डाला। लेकिन विपक्ष के कुछ सदस्यों की तरफ से आपत्ति आने के बाद उन्हें स्लिप के जरिए वोट डालने दिया गया। इसके बाद दोबारा हुई वोटिंग में कुल 222 वोट पड़े, इनमें एनडीए के हरिवंश को 125, जबकि यूपीए के बीके हरिप्रसाद को 105 वोट मिले। इसके बाद एनडीए के हरिवंश को उपसभापति पद के लिए चुने जाने की घोषणा सभापति द्वारा की गई।
उप-सभापति के पद पर केरल के कांग्रेस नेता पीजे कुरियन का कार्यकाल 1 जुलाई को समाप्त हो गया था, जिसकी वजह से यह पद अभी रिक्त है। 1969 में पहली बार उपसभापति के पद के लिए चुनाव हुआ था। अब तक राज्यसभा उपसभापति पद के लिए कुल 19 बार चुनाव हुए हैं। इनमें से 14 बार सर्वसम्मति से इस पद के लिए उम्मीदवार को चुन लिया गया, यानी चुनाव की नौबत ही नहीं आई।
245 सदस्यीय राज्यसभा में इस समय 244 सदस्य हैं जबकि 1 सीट खाली है। मौजूदा 244 सदस्यीय उच्च सदन में उपसभापति चुनाव को जीतने के लिए 123 मतों की जरूरत थी।
एनडीए की तरफ से जद(यू) के राज्यसभा सांसद हरिवंश नारायण सिंह जबकि विपक्ष की तरफ से कर्नाटक से राज्यसभा सांसद बीके हरिप्रसाद मैदान में थे। हरिप्रसाद 1972 में कांग्रेस पार्टी से जुड़े थे। 2006 में वे अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के महासचिव बने और अब तक हैं। वे अपनी राजनीतिक सूझबूझ के लिए जाने जाते हैं।