संसद को हर पल कार्यात्मक न रखने का कोई बहाना नहीं हो सकता – उपराष्ट्रपति
उपराष्ट्रपति ने लोकतंत्र के मंदिरों में व्यवधान को हथियार बनाने पर किया खेद व्यक्त
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 24 जुलाई। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने आज इस बात पर जोर दिया कि लोकतंत्र पूरी तरह से संवाद, चर्चा, विचार-विमर्श और बहस के बारे में है। उन्होंने व्यवधान और अशांति को लोकतांत्रिक मूल्यों के विपरीत बताया। उन्होंने इस तथ्य के बारे में दुख और चिंता व्यक्त की, कि लोकतंत्र के मंदिरों में अशांति को हथियार बनाया गया है जिसे सभी व्यक्तियों को न्याय सुनिश्चित करने के लिए चौबीसों घंटे कार्यात्मक रहना चाहिए।
लोकतांत्रिक मूल्यों के सार को संरक्षित और सतत बनाए रखने के लिए उन्होंने सभी का आह्वान करते हुए इस बात पर जोर दिया कि संसद को हर पल कार्यात्माक न रखने का कोई बहाना नहीं हो सकता। उन्होंने कहा कि इस देश के लोग इसके लिए भारी मूल्य चुका रहे हैं। उपराष्ट्रपति ने इस बात पर प्रकाश डाला कि जब किसी विशेष दिन संसद में व्यवधान होता है तो उस दिन प्रश्नकाल नहीं हो सकता है, जबकि प्रश्नकाल शासन में जवाबदेही और पारदर्शिता को सृजित करने वाला एक तंत्र है। इसमें सरकार हर सवाल का जवाब देने के लिए बाध्य है और इससे सरकार को काफी लाभ भी होता है। जब आप लोकतांत्रिक मूल्यों और सुशासन के बारे में सोचते हैं तो प्रश्नकाल का न होना कभी भी तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है।
विज्ञान भवन में जामिया मिलिया इस्लामिया के शताब्दी वर्ष के दीक्षांत समारोह को संबोधित करते हुए, उपराष्ट्रपति ने रेखांकित किया कि असहमति और मतभेद लोकतांत्रिक प्रक्रिया का स्वाभाविक हिस्सा हैं, लेकिन “असहमति को शत्रुता में बदलना लोकतंत्र के लिए किसी अभिशाप से कम नहीं है।” उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा कि ‘विरोध’ को ‘बदले’ में परिवर्तित नहीं किया जाना चाहिए। उन्होंने सुझाव दिया कि बातचीत और चर्चा ही आगे बढ़ने का एकमात्र रास्ता है।
यह देखते हुए कि देश ने आज अपने आप को कभी ‘सबसे कमजोर पांच’ अर्थव्यवस्थाओं में से निकलकर विश्व की ‘शीर्ष पाँच’ अर्थव्यवस्थाओं में शामिल कर लिया है। उपराष्ट्रपति ने कहा कि भारत की उल्लेखनीय प्रगति के साथ कुछ चुनौतियों का आना भी निश्चित है। आपकी प्रगति से सभी खुश नहीं हो सकते हैं। उन्होंने इसके लिए युवाओं से पहल करने और इस प्रकार की ताकतों को बेअसर करने का आह्वान करते हुए कहा कि आपके संस्थानों और विकास की कहानी को कलंकित करने, दागदार बनाने और अपमानित करने के लिए कुछ खतरनाक ताकतें काम करती हैं और उनके भयानक इरादे हैं।
कुछ विदेशी विश्वविद्यालयों का हवाला करते हुए, उपराष्ट्रपति ने कहा कि ये अस्थिर धरातल पर भारत विरोधी आख्यान को बढ़ावा देने के लिए ब्रीडिंग स्थल बन गए हैं। उन्होंने सावधान करते हुए कहा कि ऐसे संस्थान हमारे छात्रों और संकाय सदस्यों का अपने संकीर्ण उद्देश्य के लिए भी उपयोग करते हैं। उन्होंने छात्रों से ऐसी स्थितियों से निपटते समय सावधान होने और निष्पक्षता पर ध्यान देने के लिए भी कहा। उन्होंने कहा कि यह बडे आश्चर्य की बात है कि जिन्हें किसी न किसी पद पर इस देश की सेवा करने का अवसर मिला है वे उस स्थिति को खो देते हैं तो उन्हें उस महान प्रगति पर ध्यान केंद्रित करने का अवसर मिलता है जो हमारे देश में चारों ओर हो रही है। उन्होंने कहा कि मैं युवा मेधावी छात्रों से ऐसे भारत-विरोधी कहानियों को हटाने और प्रभावहीन करने का आग्रह करता हूं। ऐसी गलत सूचना को मुक्त रूप से फैलने की अनुमति नहीं दी जा सकती।
उपराष्ट्रपति ने कहा कि भ्रष्टाचार न्यायसंगत विकास और समान अवसरों के विरुद्ध है और यह मानना बहुत सुखद है कि भ्रष्टाचार में लिप्त कानून के उल्लंघन करने वालों के बचने के सभी रास्ते अब काफी हद तक बंद हो गए हैं।
सभी उत्तीर्ण छात्रों को उनके जीवन के नए चरण में प्रवेश करने की बधाई देते हुए, उपराष्ट्रपति ने छात्रों को नवाचारी और उद्यमी बनने की आवश्यकता पर जोर दिया ताकि हमारे युवा छात्र नौकरी की इच्छा रखने वालों की बजाय नौकरी देने वाले बनें।
उन्होंने कहा कि वित्तीय लाभ के लिए आर्थिक राष्ट्रवाद से समझौता करना राष्ट्रीय हित में नहीं है। उन्होंने युवाओं से पूरी तरह से आर्थिक राष्ट्रवाद में शामिल होने और स्वयं को उसमें आत्मसात करने का आह्वान किया।
शैक्षणिक उपलब्धियों पर जोर देते हुए, उपराष्ट्रपति ने ज्ञान को उसके वास्तविक उद्देश्य की सेवा के लिए शिक्षा को बड़े सामाजिक विकास से जोड़ने का भी आह्वान किया। मानव संसाधनों का सशक्तिकरण राष्ट्र निर्माण का एक महत्वपूर्ण घटक है। आज युवाओं को राजनीतिक नशे से नहीं बल्कि क्षमता निर्माण और अपने व्यक्तित्व विकास के माध्यम से ही स्वयं को सशक्त बनाना होगा।
प्रत्येक नागरिक को देश के प्राकृतिक संसाधनों का ट्रस्टी बताते हुए उपराष्ट्रपति ने इन संसाधनों के समान वितरण का आह्वान किया। उन्होंने कहा कि आइए हम ऐसी संस्कृति अपनाएं कि प्राकृतिक संसाधनों का उपयोग आपकी वित्तीय क्षमता के अनुसार नहीं बल्कि आपकी आवश्यकता के अनुसार हो। केंद्रीय शिक्षा और कौशल विकास एवं उद्यमिता मंत्री धर्मेंद्र प्रधान जामिया मिलिया इस्लामिया विश्वविद्यालय की कुलपति प्रोफेसर नजमा अख्तर, संकाय सदस्य, छात्र और अन्य जानीमानी हस्तियां भी इस अवसर पर उपस्थित थीं।
What is Democracy?
Democracy is about dialogue, discussion, deliberation and debate to secure public good.
Surely, Democracy cannot be about disruption and disturbance!
I am pained and anguished to indicate to you that disruption and disturbance have been weaponised as… pic.twitter.com/43Pfm25ibC
— Vice President of India (@VPIndia) July 23, 2023