आज है भगवान गणेश को समर्पित विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत, जानिए इसका महत्त्व और पूजन विधि

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 4अगस्त। आज यानि 4 अगस्त को अधिकमास के कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि है और इस दिन विभुवन संकष्टी चतुर्थी व्रत रखा जाता है. यह दिन व व्रत प्रथम पूजनीय देवता भगवान गणेश को समर्पित है. कहते हैं कि इस दिन यदि विधि-विधान के साथ गणपति का पूजन किया जाए तो कार्यों में आ रही बाधाएं समाप्त होती हैं और सफलता हासिल होती हैं. हिंदू धर्म में अधिकमास तीन साल में एक बार आता है और इसलिए इस दौरान आने वाले व्रत व त्योहारों का महत्व अधिक बढ़ जाता है. मान्यता है कि ​अधिकमास में आने वाले व्रत के दिन यदि श्रद्धा-भावना के साथ पूजन व अराधना की जाए तो सभी देवी-देवताओं का आशीर्वाद प्राप्त होता है. विभुवन संकष्टी चतुर्थी का व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में आ रहे सभी संकट दूर होते हैं. आइए जानते हैं किस शुभ मुहूर्त में करें भगवान गणेश की पूजा और पूजन विधि?

विभुवन संकष्टी चतुर्थी 2023 शुभ मुहूर्त
पंचांग के अनुसार विभुवन संकष्टी चतुर्थी के दिन भगवान गणेश की पूजा के लिए शुभ मुहूर्त सुबह 7 बजकर 25 मिनट से लेकर सुबह 9 बजकर 5 मिनट तक रहेगा. वहीं शाम के समय पूजा का शुभ मुहूर्त 5 बजकर 29 मिनट से लेकर रात 7 बजकर 10 मिनट तक रहेगा. संकष्टी चतुर्थी के व्रत में चंद्रमा का भी विशेष महत्व माना गया है क्योंकि इस व्रत का पारण चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही होता है. 4 अगस्त को चंद्रोदय का समय रात 9 बजकर 20 मिनट है. बता दें कि संकष्टी चतुर्थी के व्रत में चंद्रोदय का भी विशेष महत्व है क्योंकि इस दिन चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद ही व्रत खोला जाता है. पंचांग के अनुसार आज चंद्रोदय का समय रात 9 बजकर 20 मिनट है.

विभुवन संकष्टी चतुर्थी पूजन विधि
अधिकमास में आने वाली संकष्टी चतुर्थी को विभुवन संकष्टी चतुर्थी नाम दिया गया है और इस दिन भक्त भगवान गणेश का आशीर्वाद पाने के लिए व्रत करते हैं. दिनभर व्रत रखने के बाद रात्रि के समय चंद्रमा को अर्घ्य देकर व्रत खोला जाता है. अगर आप भी आज विभुवन संकष्टी चतुर्थी का व्रत रख रहे हैं तो सुबह जल्दी उठकर स्नान आदि करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें. इसके बाद भगवान गणेश को पूजन आरंभ करें. ध्यान रखें कि इस दिन भगवान गणेश को उत्तर दिशा की तरफ मुंह करके जल अर्पित करना चाहिए और जल में कुछ दाने तिल के अवश्य मिलाएं. इसके बाद गणेश जी को दूर्वा अर्पित करें और लड्डू का भोग लगाएं. ​दिन भर फलाहार करें और रात्रि में चंद्रमा को अर्घ्य देने के बाद व्रत का पारण करें.

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