नई दिल्लीः देश में बिजली क्षेत्र से जुड़ी 34 बिजली कंपनियों पर बैंकों का 1.5 लाख करोड़ रुपए कर्ज बकाया है। इनमें कई कंपनियां देश के बिजली उत्पादन में योगदान करती हैं। इनमें जिंदल, जेपी पॉवर वेंचर, प्रयागराज पॉवर, झाबुआ पॉवर, केएसके महानंदी, कोस्टल एर्नजन समेत 34 बिजली कंपनियां शामिल हैं। अगर ये कंपनियां उत्पादन बंद कर देती हैं तो इससे देश में बिजली की बड़ी किल्लत हो जाएगी।
ब्लूमबर्ग की एक रिपोर्ट के मुताबिक, संसद की उप कमेटी ने इस साल की शुरूआत में कहा था कि देश में 34 हजार मेगावाट बिजली उत्पादन पर संकट है क्योंकि इन बिजली कंपनियों से या तो कोई बिजली खरीद नहीं रहा या इन्हें उत्पादन के लिए कोयला नहीं मिल रहा। हालांकि, कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि पूरे देश में 50 हजार मेगावाट बिजली की कमी हो सकती है।
50 हजार मेगावाट बिजली कम पड़ने के मायने
ऊर्जा मंत्रालय की एक रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में वित्त वर्ष 2017 में 17,183 मेगावाट बिजली की मांग थी जबकि सप्लाई की गई 15,501 मेगावाट बिजली सप्लाई की गई। अगर 50 हजार मेगावाट बिजली की शॉर्टेज होती है तो इससे यूपी के बराबर बिजली की मांग वाले 3 राज्य अंधेरे में डूब जाएंगे।
बिजली उद्योग पर संकट
रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (RBI) ने कर्ज में डूबीं 34 बिजली क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों को 180 दिन का समय दिया था। अब सिर्फ 15 दिन शेष हैं। इस मियाद में कर्ज में डूबीं कंपनियों को अपना लोन अकाउंट क्लीयर करना है या समाधान उपलब्ध कराना है। ब्लूमबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक ऐसा न होने पर मामला नेशनल कंपनी लॉ ट्रिब्यूनल (NCLT) के पास चला जाएगा। फिर एनसीएलटी बैंकों को इसका हल निकालने को कहेगा। हालांकि बैंक इस मामले को बाहर ही निपटा देना चाहते हैं क्योंकि मामला एनसीएलटी के पास जाने से उन्हें भी नुकसान होगा।
मंत्रालय कर सकता है RBI से बातचीत
केंद्रीय वित्त मंत्रालय इस संकट के समाधान के लिए रिजर्व बैंक से बातचीत कर सकती है। समाचार एजेंसी के मुताबिक इलाहबाद हाईकोर्ट के आदेश के तहत मंत्रालय आरबीआई से परामर्श करेगा। अदालत ने निजी बिजली कंपनियों को आरबीआई के एनपीए पर 12 फरवरी के आदेश से कोई अंतरिम राहत देने से इनकार कर दिया। 8-9 चालू बिजली परियोजनाएं इलाहबाद उच्च न्यायालय के फैसले से प्रभावित होंगी।