समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 5अप्रैल। मुंडेश्वरी देवी मंदिर बिहार के कैमूर जिले के भगवानपुर अंचल में पंवरा पहाड़ी पर 608 फुट की ऊंचाई पर स्थित है। माना जाता है कि इसकी स्थापना 108 ईस्वी में हुविश्कद के शासनकाल में हुई थी। यहां शिव जी और माता पार्वती की पूजा होती है। प्रमाणों के आधार पर इसे देश के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक माना जाता है। इस मंदिर में पिछले 2,000 वर्षों से भी अधिक समय से लगातार पूजा हो रही है। सन् 1968 में पुरातत्व विभाग ने यहां से मिलीं 97 दुर्लभ प्रतिमाओं को सुरक्षा की दृष्टि से ‘पटना संग्रहालय’ और तीन को ‘कोलकाता संग्रहालय’ में रखवा दिया था।
यहां कई ऐसे रहस्य भी हैं, जिनके बारे में अब तक कोई नहीं जान पाया। यहां बिना रक्त बहाए बकरे की बलि दी जाती है और पंचमुखी भगवान भोलेनाथ की प्राचीन मूर्ति दिन में तीन बार रंग बदलती है। पहाड़ी पर बिखरे हुए कई पत्थर और स्तंभ हैं, जिनसे प्रतीत होता है कि उन पर श्री यंत्र सिद्ध यंत्र-मंत्र उत्कीर्ण हैं। मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचते ही माहौल पूरी तरह से भक्तिमय लगने लगता है। दिमाग पूरी तरह से शांत हो जाता है और ऐसा महसूस होता है कि भगवान स्वयं हमारे सामने हैं।
मंदिर के मुख्य द्वार पर पहुंचते ही पंवरा पहाड़ी के शिखर पर स्थित मां मुंडेश्वरी भवानी मंदिर की नक्काशी मंदिर को अलग पहचान दिलाती है। मंदिर की दीवारों पर लिखा है कि मंदिर में रखी मूर्तियां उत्तर गुप्तकालीन हैं और यह पत्थर से बना हुआ अष्टकोणीय मंदिर है।
मान्यता के अनुसार, इस इलाके में चंड और मुंड नाम के असुर रहते थे, जो लोगों को प्रताड़ित करते थे। लोगों की पुकार सुन माता भवानी पृथ्वी पर आईं और उनका वध करने के लिए जब यहां पहुंचीं, तो सबसे पहले चंड का वध किया। उसके निधन के बाद मुंड युद्ध करते हुए इसी पहाड़ी पर छिप गया था लेकिन माता ने पहाड़ी पर पहुंच कर मुंड का भी वध कर दिया। इसी के बाद यह जगह माता मुंडेश्वरी देवी के नाम से जानी जाती है।
इसके अलावा एक चमत्कार ऐसा भी है, जिसे देखकर हैरानी होती है। जैसा कि बताया गया है, मां मुंडेश्वरी के मंदिर में गर्भगृह में स्थापित पंचमुखी भगवान शिव का शिवलिंग है और वह भी हर पहर के हिसाब से रंग बदलता रहता है, मानो उस पर लाइट लगाकर रखी गई हो। हर सोमवार को बड़ी संख्या में भक्त शिवलिंग पर जलाभिषेक करते हैं। यहां मंदिर के पुजारी द्वारा भगवान भोलेनाथ के पंचमुखी शिवलिंग का सुबह शृंगार करके रुद्राभिषेक किया जाता है।