डॉक्टरों को आपातकालीन रोगियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए, उपचार में देरी से जान जा सकती है : राष्ट्रपति मुर्मू
भारत के राष्ट्रपति ने राष्ट्रीय चिकित्सा विज्ञान परीक्षा बोर्ड के 22वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,11मई। भारत की राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने नई दिल्ली में नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज (एनबीईएमएस) के 22वें दीक्षांत समारोह में भाग लिया और वहां संबोधित किया।
चिकित्सा आपात स्थिति में महत्वपूर्ण समय ( गोल्डन आवर ) के महत्व को रेखांकित करते हुए राष्ट्रपति ने कहा कि इस अवधि के दौरान उपचार मिलने पर रोगियों का जीवन बचाया जा सकता है। उन्होंने कहा कि विशेषज्ञ डॉक्टरों को आपातकालीन रोगियों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उन्हें कभी भी आपातकालीन रोगी को उपचार के लिए कहीं और जाने के लिए नहीं कहना चाहिए।
इस कहावत का संदर्भ देते हुए कि- ‘न्याय में देरी न्याय से वंचित रखना होता है’, राष्ट्रपति मुर्मू ने जोर देकर कहा कि स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र में, समय और भी महत्वपूर्ण है क्योंकि उपचार में देरी से जीवन से वंचित होना पड़ सकता है। उन्होंने कहा कि कभी-कभी हम दुखद समाचार सुनते हैं कि यदि समय पर इलाज मिल जाता तो व्यक्ति की जान बचाई जा सकती थी। ऐसे में अगर जान बच भी जाए तो कई स्थितियों में उपचार में देरी से स्वास्थ्य खराब हो जाता है। ऐसे उदाहरण अक्सर पक्षाघात (लकवा) के रोगियों में देखने को मिलते हैं। समय पर उपचार न मिलने के कारण मरीज अपने अंगों को हिलाने-डुलाने की क्षमता खो देते हैं और दूसरों पर निर्भर हो जाते हैं।
राष्ट्रपति ने पिछले लगभग चार दशकों में चिकित्सा शिक्षा में उनके योगदान के लिए नेशनल बोर्ड ऑफ एग्जामिनेशन इन मेडिकल साइंसेज (एनबीईएमएस) के भूतपूर्व और वर्तमान सदस्यों की सराहना की। उन्होंने कहा कि एनबीईएमएस के प्रयासों से देश में विशेषज्ञ चिकित्सकों की उपलब्धता में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है।
राष्ट्रपति ने चिकित्सकों से त्वरित स्वास्थ्य सेवा, संवेदनशील स्वास्थ्य सेवा और सस्ती स्वास्थ्य सेवा पर ध्यान देने का आग्रह किया। उन्होंने कहा कि वे अपना समय निर्धन मरीजों को निःशुल्क उपचार देकर देश और समाज के लिए अमूल्य योगदान दे सकते हैं। उन्होंने मेडिकल छात्रों से कहा कि यदि उन्होंने चिकित्सा (मेडिकल) को अपने व्यवसाय के रूप में चुना है तो अवश्य ही उनमें मानवता की सेवा करने की इच्छा भी है। उन्होंने सेवा भावना की रक्षा, संवर्द्धन और प्रसार करने का आह्वान किया।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे देश की विशाल जनसंख्या को देखते हुए चिकित्सकों की उपलब्धता लगातार बढ़ाने की आवश्यकता है. उन्होंने कहा कि सभी का यह प्रयास होना चाहिए कि मात्रा के साथ-साथ गुणवत्ता को भी प्राथमिकता दी जाये।
राष्ट्रपति ने कहा कि भारतीय चिकित्सकों ने विश्व स्तर पर अपनी पहचान बनाई है तथा किफायती चिकित्सा देखरेख (अफोर्डेबल मेडिकेयर) के कारण भारत चिकित्सा पर्यटन का एक प्रमुख केंद्र बन गया है। उन्होंने डॉक्टरों को देश की स्वास्थ्य सेवा प्रणाली का सबसे महत्वपूर्ण अंग बताया और यह विश्वास जताया कि वे देश की स्वास्थ्य सेवाओं को नई ऊंचाइयों पर ले जाएंगे।
यह देखते हुए कि इस दीक्षांत समारोह में उपाधि (डिग्री) और पदक पाने वाले पुरुष चिकित्सकों की तुलना में महिला चिकित्सकों की संख्या अधिक है, राष्ट्रपति ने कहा कि उच्च चिकित्सा शिक्षा में छात्राओं की उपलब्धि हमारे समाज और देश की एक बड़ी उपलब्धि है। उन्होंने कहा कि अधिकांश परिवारों के संदर्भ में अब भी यह कहा जा सकता है कि लड़कियों को सीमाओं और प्रतिबंधों का एहसास कराया जाता है। समाज और सार्वजनिक स्थानों पर भी लड़कियों को अपनी सुरक्षा और समाज की स्वीकार्यता के प्रति अतिरिक्त सचेत रहना पड़ता है । ऐसे वातावरण में हमारी बेटियां अपनी श्रेष्ठता साबित कर नए भारत की नई छवि प्रस्तुत कर रही हैं।