पश्चिम बंगाल की गिरती जीडीपी हिस्सेदारी: एक ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,18 सितम्बर। पश्चिम बंगाल, जो कभी देश की आर्थिक ताकतों में अग्रणी भूमिका निभाता था, अब आर्थिक पिछड़ापन झेल रहा है। 1960-61 में, पश्चिम बंगाल की भारत की कुल जीडीपी में 10.5% की हिस्सेदारी थी, जो उस समय के लिए एक महत्वपूर्ण उपलब्धि थी। यह राज्य न केवल औद्योगिक गतिविधियों में अग्रणी था बल्कि देश के वाणिज्यिक और व्यापारिक केंद्र के रूप में भी विख्यात था। परंतु, समय के साथ, कई कारकों के चलते राज्य की जीडीपी में हिस्सेदारी लगातार घटती गई और आज यह घटकर केवल 5.6% रह गई है।

1960-61 में पश्चिम बंगाल की आर्थिक स्थिति

स्वतंत्रता के बाद, पश्चिम बंगाल एक समृद्ध औद्योगिक राज्य था, जहाँ कलकत्ता (अब कोलकाता) देश की व्यापारिक राजधानी मानी जाती थी। उद्योग, खासकर जूट, कपड़ा, चाय और इस्पात, राज्य की अर्थव्यवस्था का आधार थे। बंदरगाह और रेल मार्गों की समृद्धि ने पश्चिम बंगाल को देश के प्रमुख आर्थिक केंद्रों में से एक बना दिया था।

गिरावट के प्रमुख कारण

पिछले कुछ दशकों में, कई सामाजिक, राजनीतिक और आर्थिक कारकों ने पश्चिम बंगाल की आर्थिक स्थिति को प्रभावित किया है:

  1. राजनीतिक अस्थिरता और मजदूर आंदोलनों का प्रभाव: 1960 के दशक के अंत और 1970 के दशक के शुरुआती वर्षों में, राज्य में वामपंथी आंदोलनों और मजदूर संघों के कारण औद्योगिक विकास में ठहराव आया। बार-बार होने वाली हड़तालें और हिंसात्मक आंदोलन उद्योगों के पलायन का कारण बने। इसके चलते औद्योगिक गतिविधियाँ धीमी पड़ गईं और निवेश में कमी आई।
  2. भूमि सुधार और औद्योगिक नीति: वामपंथी सरकार द्वारा किए गए भूमि सुधारों का उद्देश्य था किसानों और गरीबों की स्थिति में सुधार लाना। हालांकि, इन सुधारों ने कृषि उत्पादन को कुछ हद तक प्रभावित किया, लेकिन औद्योगिक विकास की गति को धीमा कर दिया। निवेशकों को अनुकूल माहौल न मिलने के कारण वे अन्य राज्यों की ओर आकर्षित हुए।
  3. इन्फ्रास्ट्रक्चर की कमी: अन्य राज्यों की तुलना में पश्चिम बंगाल में बुनियादी ढांचे का विकास अपेक्षाकृत धीमा रहा। सड़कें, बिजली और संचार जैसी बुनियादी सुविधाओं की कमी ने राज्य के औद्योगिक विकास को बाधित किया।
  4. निवेश का पलायन: राज्य की कठिन श्रम नीति और राजनीतिक माहौल ने कई उद्योगपतियों को महाराष्ट्र, गुजरात और तमिलनाडु जैसे राज्यों की ओर पलायन करने के लिए प्रेरित किया, जहाँ उन्हें बेहतर व्यवसायिक माहौल मिला।

वर्तमान स्थिति और चुनौतियाँ

आज, पश्चिम बंगाल की जीडीपी में हिस्सेदारी मात्र 5.6% रह गई है, जो राज्य के आर्थिक विकास में गिरावट का प्रमाण है। हालाँकि, पिछले कुछ वर्षों में कुछ सकारात्मक प्रयास किए गए हैं, जैसे बुनियादी ढांचे का विकास और व्यापारिक माहौल को सुधारने के प्रयास, लेकिन अब भी राज्य को अपने पुराने गौरव को पुनः प्राप्त करने के लिए लंबा रास्ता तय करना होगा।

संभावनाएँ और भविष्य की दिशा

हाल के समय में, पश्चिम बंगाल सरकार ने कई नीतिगत सुधार किए हैं ताकि राज्य में निवेश को प्रोत्साहित किया जा सके। विशेष रूप से, आईटी, पर्यटन, और सेवा क्षेत्र में विकास की अपार संभावनाएँ हैं। राज्य की भौगोलिक स्थिति, मानव संसाधन और सांस्कृतिक धरोहर इसे भविष्य में एक आर्थिक शक्ति के रूप में पुनः स्थापित कर सकती हैं।

निष्कर्ष

पश्चिम बंगाल की जीडीपी हिस्सेदारी में गिरावट एक लंबी अवधि के आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक घटनाओं का परिणाम है। हालाँकि, राज्य के पास आज भी विकास की पर्याप्त संभावनाएँ मौजूद हैं, लेकिन इसके लिए ठोस नीतियों और लगातार प्रयासों की आवश्यकता होगी। यदि पश्चिम बंगाल अपने औद्योगिक बुनियादी ढांचे और निवेश के माहौल में सुधार कर सके, तो वह फिर से देश की आर्थिक ताकतों में शामिल हो सकता है।

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