महात्मा गांधी के जन्म दिवस 2 अक्तूबर पर विशेष –

भारतीय चिंतन परंपरा की जीवंतता के प्रतीक

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!

डॉ०ममता  पांडेय

जंबू द्विपे भारत खंडे आर्यावर्त देशांतर पोरबंदर  द्वापर   युग से विख्यात है।भगवान कृष्ण के मित्र सुदामा का निवास स्थान सुदामा पुरी गुजरात के पोरबंदर में था। (उल्लेख भागवत पुराण में है) । इसी पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 जन्मे इस बालक ने भी भारतीय ज्ञान परंपरा संस्कार; संस्कृति का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया आज उनके 155वें जन्म दिन को संपूर्ण विश्व अहिंसा दिवस के रूप में मना रहा है।

स्पष्ट है कि प्रस्तुत आलेख मोहनदास करमचंद गांधी जी को सादर समर्पित है।  “मोनिया”; “मनु”से “मिस्टर गांधी” “बैरिस्टर “”बापू” “महात्मा “और “राष्ट्रपिता” बनने तक की यात्रा गांधी जी के लिए आसान नहीं थी।

दक्षिण अफ्रीका की यात्रा में “अनवेलकम विजिटर” (अश्वेत) कहलन वाले मेरिट्सव वर्ग स्टेशन की अभूतपूर्व घटना ने उनका संपूर्ण जीवन ही बदल दिया।  मोहनदास करमचंद गांधी जी का जन्म 2 अक्टूबर 1869 को काठियावाड़ के पोरबंदर नामक स्थान पर हुआ था ।यह वर्ष अंतर्राष्ट्रीय महत्व का था इसी वर्ष स्वेज नहर यातायात के लिए खुली। कार्ल मार्क्स ने “दास कैपिटल” नामक पुस्तक लिखी तथा नेपोलियन बोनापार्ट की प्रथम जन्म शताब्दी मनाई गई।

मनु ने अपने बचपन में हरिश्चंद्र नाटक और श्रवण कुमार का नाटक देखा था उसका उनके जीवन पर यह प्रभाव पड़ा कि “हाई स्कूल की पहले वर्ष की परीक्षा के समय एक उल्लेखनीय घटना हुई शिक्षा विभाग के स्पेक्टर” जाइल्स” विद्यालय का निरीक्षण करने आए थे; उन्होंने पहली कक्षा के विद्यार्थियों को अंग्रेजी के पांच शब्द लिखें उसे उनमें एक शब्द कैटल (kettle) था मैंने उसके हिज्जे गलत लिखे थे ।शिक्षक ने अपने बूट की नोक पर मुझे सावधान किया परंतु मैं नहीं माना मैं दूसरे लड़कों की पट्टी में देखकर चोरी करना कभी सीख ना सका।”(1)(सत्य के प्रयोग अथवा आत्मकथा: मोहनदास करमचंद गांधी सर्व सेवा संघ प्रकाशन राजघाट वाराणसी पृष्ठ तीन ISBN 978 81 922755 0 5) कानून की उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड गए जाति से बहिष्कृत भी होना ।पड़ा सरपंच ने आदेश दिया था।” यह लड़का आज जाति से बाहर माना जाएगा जो कोई इसकी मदद करेगा अतः ऐसे अथवा ऐसे विदा करने जाएगा पांच उसे जवाब तलब करेंगे और उसे सवा रुपए दंड लिया जाएगा।”

गांधी जी का परिवार धार्मिक वातावरण  से  ओतप्रोत वैष्णव आस्थाओं  और विश्वासों  का उन पर  प्रभाव पड़ा ।उनके विचारों पर भारतीय चिंतन परंपरा तथा पाश्चात्य विचारकों का प्रभाव पड़ा ।उन पर वेद ;उपनिषद; भगवत गीता; जैन और बौद्ध धर्म तथा अनेक भारतीय साधु महात्माओं के विचार का प्रभाव पड़ा।

4 सितंबर 1888 को मुंबई से इंग्लैंड के लिए प्रस्थान किया वहां मिस्टर गांधी कहलाए इंग्लैंड से बैरिस्टर होकर भारत लौटे 1893 में गांधीजी दक्षिण अफ्रीका गए यात्रा के दौरान ब्रिटिश विद्वान रस्किन की पुस्तक “अन टू डी लास्ट “से सर्वोदय अमेरिकी विद्वान थोरो की पुस्तक” ऑन द ड्यूटी ऑफ डिस ओबेडिएंस “से सविनय अवज्ञा ;सत्याग्रह के विचारों को जाना । टॉलस्टॉय की रचना ( व्हाट टू दु)(द किंगडम ऑफ़ गॉड इस विदीन यू) इस रचना से गांधी जी के विचारों में अहिंसा पर दृढ़ आस्था बनी। छंदाग्योपनिषद में तप ;दान; सरलता और सत्य के साथ अहिंसा के महत्व का प्रतिपादन किया गया। पतंजलि ने आत्म शुद्धि की साधना में अहिंसा के महत्व को स्वीकार किया। महाभारत में अहिंसा को सबसे बड़ा धर्म ;तप पर सत्य माना है। गौतम बुद्ध की शिक्षाओं में अहिंसा का उपदेश है । भगवान महावीर तो अहिंसा के अवतार ही माने जाते हैं ।गांधी जी के विचारों पर इन सभी भारतीय चिंतन की परंपरा का प्रभाव स्पष्ट है। डरबन से प्रिटोरिया जाते समय नाटाल की राजधानी मेरिट्स्बर्ग स्टेशन में “एक अधिकारी के कहने पर पुलिस सिपाही आया उसने मेरा हाथ पकड़ा और मुझे धक्का देकर नीचे उतारा।”

“मैंने अपने धर्म का विचार किया या तो मुझे अपने अधिकारों के लिए लड़ना चाहिए या लौट जाना चाहिए नहीं तो जो अपमान हो उसे उन्हें सहकार प्रिटोरिया पहुंचना चाहिए और मुकदमा खत्म करके देश लौट जाना चाहिए मुकदमा अधूरा छोड़कर भागना तो नामर्दी होगी मुझे जो कष्ट सहना पड़ा है सो तो कष्ट है वह गहराई तक बैठे हुए वहां रोग का लक्षण है। यह महा रोग  है “रंग भेद “।यदि मुझ में इस गहरे रंग भेद को मिटाने की शक्ति है तो शक्ति का उपयोग करना चाहिए। ऐसा करते हुए स्वयं को जो कष्ट सहने पड़े तो सब सहना चाहिए और उनका विरोध रंग द्वेष को मिटाने की दृष्टि से ही करना चाहिए।”

गांधी जी ने भारतीय भेदभाव और रंगभेद का विरोध अहिंसक तरीके से किया वस्तुत दक्षिण अफ्रीका का प्रवास काल गांधी जी के आध्यात्मिक और राजनीतिक विकास का उषा कल था । वहां 1893 से 1914 तक में अनवरत 21 वर्ष संघर्ष करते रहे सविनय अवज्ञा ;सत्याग्रह के सिद्धांत को अपने जीवन में अपना कर दक्षिण अफ्रीका में भारतीयों के साथ  हुए भेदभाव का सामना करने में वे भारतीयों के प्रवक्ता व “देवदूत “बनकर उभरे।  1915 में गांधी जी भारत आए ।रविंद्र नाथ टैगोर जी द्वारा उन्हें “महात्मा “की उपाधि से विभूषित किया गया ।भारत आने पर उन्होंने सर्वप्रथम संपूर्ण भारत यात्रा ट्रेन के सामान्य दर्जे में बैठकर की ।गांधी जी ने भारत में सबसे पहले आंदोलन की शुरुआत बिहार के चंपारण से की थी ।चंपारण में उन्हें” बापू “कह कर पुकारा गया। 1919 से 1948 अपनी मृत्यु तक वे भारत के केंद्र में रहे।

गांधी जी ने ब्रिटिश साम्राज्य से अपने खोए हुए स्वव के लिए लोहा लेना प्रारंभ किया। खादी का केसरिया बाना पहन त्याग की  तोप लेकर उन्होंने भारत में विप्लव का शंखनाद किया।

गांधी जी ने आह्वान करते हुए कहा “देश भक्ति मनुष्य का पहला गुण है। इसके बिना वह दुनिया में सिर उठाकर नहीं चल सकता।”

जलियांवाला बाग हत्याकांड से उनका हृदय कांप उठा; उन्होंने अंग्रेजी सरकार की अत्याचारों के विरुद्ध असहयोग आंदोलन की घोषणा की  उनका कहना था “मैं काम करने के तरीकों; पद्धतियों और प्रणालियों से असहयोग करता हूं ना कि मनुष्य से।”

दांडी यात्रा ;भारत छोड़ो आंदोलन  से उन्होंने सत्याग्रह एवं शांति  व  अहिंसा के रास्ते पर चलते हुए अंग्रेजों को अंततः भारत छोड़ने पर मजबूर किया। 1944 में रंगून रेडियो स्टेशन से सुभाष चंद्र बोस ने गांधी जी को” राष्ट्रपिता “कह कर संबोधित किया । अंततो गत्वा माउंटबेटन योजना के आधार पर भारत को 15 अगस्त 1947 को  स्वतंत्रता मिली ।साथ ही उसका दो अधिराज्य  भारत और पाकिस्तान में विभाजन हुआ। गांधी जी ने देश में सांप्रदायिक भाईचारा लाने के लिए प्रयत्न शुरू कर दिए। उन्होंने अपना संपूर्ण ध्यान देश की सामाजिक और आर्थिक उन्नति में लगाया। गांधी जी का राष्ट्रवाद प्रेम अहिंसा और बंधुत्व के विचारों से परिपूर्ण था। गांधी जी की आस्था अंतरराष्ट्रीयता में थी  उनका  आदर्श  “वसुधैव कुटुंबकम” था।

30 जनवरी 1948 दिल्ली के बिरला भवन में” हे राम” कह सद्गति को प्राप्त हुए शांति के मसीहा सहस्त्राब्दी  के नायक गांधी जी के सम्मान में पाकिस्तान और चीन को छोड़कर के विश्व के  सभी 180 देशों ने “अहिंसा के पुजारी”  पर अब तक  लगभग 711 डाक टिकट जारी की है यह एक विश्व रिकॉर्ड है। उल्लेखनीय है कि  विश्व  के संपूर्ण देशों में “गांधी जी” की प्रतिमा का अनावरण  हुआ  है ;  यह  विश्व रिकॉर्ड  भी “भारतीय चिंतन परंपरा ” की सर्व श्रेष्ठता  का  गौरव गान  है।

अल्बर्ट आइंस्टीन  ने गांधी जी को श्रद्धांजलि देते हुए कहा था कि “हजार साल बाद आने वाली नस्लें इस बात पर मुश्किल से विश्वास करेंगे कि हाड़ मांस से बना ऐसा कोई इंसान धरती पर कभी आया था जिसका नाम “महात्मा गांधी” था।” भारतीय चिंतन परम्परा के जीवंत उदाहरण और मानवता के अविनाशी उपहार  “मोहनदास करमचंद गांधी” ” राष्ट्रपिता” महात्मा गांधी जी  की जन्म जयंती पर  भारत ;संयुक्त राष्ट्र संघ  के आह्वान पर संपूर्ण विश्व “अहिंसा दिवस” के रूप में  नमन कर रहा है।

डॉ०ममता  पांडेय

                                                                                                                         सहायक प्राध्यापक राजनीति विज्ञान

                                                                                                                                  पं. अटल बिहारी वाजपेई

                                                                                                                               शास0 महाविद्0 जयसिंहनगर

                                                                                                                             (जिला शहडोल मध्य प्रदेश)

                                                                                                                       mamtapandey743@gmail.com.

कृपया इस पोस्ट को साझा करें!
Leave A Reply

Your email address will not be published.