समग्र समाचार सेवा
मुंबई, 18 दिसंबर। महाराष्ट्र में महायुति को चुनावी मैदान में जीत हासिल करना भले ही आसान रहा हो, लेकिन सरकार बनाना और मंत्रीमंडल का गठन महागठबंधन के लिए एक कठिन चुनौती साबित हुआ। मुख्यमंत्री पद के लिए 12 दिनों तक खींचतान और सस्पेंस के बाद देवेंद्र फडणवीस मुख्यमंत्री बने। इसके बाद पोर्टफोलियो वितरण को लेकर भी विवाद गहराया। हाल ही में देवेंद्र फडणवीस सरकार में कैबिनेट का विस्तार हुआ, लेकिन इसके बावजूद महायुति के भीतर नाराजगी खत्म होने का नाम नहीं ले रही है।
एनसीपी के वरिष्ठ नेता छगन भुजबल को कैबिनेट में शामिल न किए जाने पर उनकी नाराजगी खुलकर सामने आई है। भुजबल ने साफ-साफ कहा कि मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस उन्हें कैबिनेट में शामिल करना चाहते थे, लेकिन उनकी पार्टी के मुखिया अजित पवार इसके लिए तैयार नहीं हुए। उन्होंने अपनी नाराजगी व्यक्त करते हुए कहा कि वह “कोई खिलौना नहीं हैं, जिसके साथ मनमर्जी से खेला जाए।”
भुजबल की नाराजगी और बगावत के संकेत
छगन भुजबल ने पार्टी में अपने साथ हो रहे व्यवहार पर गहरी असंतोष जाहिर की। उन्होंने कहा कि एनसीपी में बड़े फैसले लेने से पहले उनसे कोई राय नहीं ली जाती। भुजबल ने कहा, “जब मैं शिवसेना, कांग्रेस या शरद पवार की एनसीपी में था, तो मेरी राय को तवज्जो दी जाती थी। लेकिन अब ऐसा नहीं है।” भुजबल ने यह भी कहा कि महायुति सरकार में विभागों के बंटवारे और मंत्री पद पर फैसला लेते वक्त उन्हें नजरअंदाज किया गया।
अजित पवार पर तीखा हमला
भुजबल ने मंगलवार को सीधे अजित पवार पर निशाना साधते हुए कहा, “एनसीपी में अब फैसले तीन लोग लेते हैं- अजित पवार, प्रफुल्ल पटेल और सुनील तटकरे। पार्टी के हर बड़े फैसले, चाहे वह चुनावी टिकट हो, मंत्री पद हो या विभागों का बंटवारा, इन तीन लोगों के हाथ में है। बाकी नेताओं की कोई भूमिका नहीं है।” उन्होंने कहा कि बीजेपी में भी सूची पर चर्चा होती है और वह दिल्ली तक जाती है, लेकिन एनसीपी में सब कुछ अचानक और बिना किसी चर्चा के तय हो जाता है।
शरद पवार के साथ न रहने का अफसोस?
भुजबल ने यह भी कहा कि अजित पवार के फैसलों से उनका असंतोष बढ़ता जा रहा है। उन्होंने कहा कि मंत्री पद न मिलना उतना बड़ा मुद्दा नहीं है, जितना कि उन्हें बार-बार नजरअंदाज किया जाना। उन्होंने यह भी याद दिलाया कि जब अजित पवार ने एनसीपी से अलग राह चुनी, तब उन्होंने उनका साथ दिया था, जबकि शरद पवार उनके राजनीतिक गुरु रहे हैं।
अलग राह अपनाने के संकेत
भुजबल ने कहा कि उनके समर्थक चाहते हैं कि वह एनसीपी (अजित गुट) से अलग हो जाएं। वह फिलहाल अपने समर्थकों के साथ चर्चा कर रहे हैं और जल्द ही कोई बड़ा कदम उठा सकते हैं। सूत्रों का कहना है कि भुजबल अजित पवार के गुट से अलग होकर अपनी नई राह चुन सकते हैं।
महायुति के लिए बढ़ती चुनौतियां
भुजबल जैसे वरिष्ठ नेता की नाराजगी महायुति के लिए बड़ी समस्या बन सकती है। ओबीसी समुदाय में उनकी मजबूत पकड़ है और उनकी नाराजगी का असर पार्टी के भीतर और बाहर, दोनों जगहों पर देखने को मिल सकता है। अब यह देखना होगा कि महायुति इस संकट से कैसे निपटती है और भुजबल का अगला कदम क्या होता है।