पश्चिमी देशों में अकेले UK में 85 शरिया अदालतें, बहुविवाह के लिए ऑनलाइन एप भी, क्यों इसपर विवाद?

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,24 दिसंबर।
पश्चिमी देशों में शरिया कानून और इस्लामिक पर्सनल लॉ को लेकर एक बड़ा विवाद खड़ा हो गया है, विशेष रूप से यूनाइटेड किंगडम (UK) में। रिपोर्ट्स के मुताबिक, UK में 85 शरिया अदालतें काम कर रही हैं, जो परिवारिक विवादों, तलाक, और बहुविवाह जैसे मामलों को निपटाती हैं। इसके अलावा, कुछ ऑनलाइन प्लेटफॉर्म पर बहुविवाह को बढ़ावा देने वाले एप्लिकेशन भी मौजूद हैं, जो खास तौर पर मुस्लिम समुदाय के लिए बनाए गए हैं। यह विषय आजकल यूरोपीय देशों में राजनीतिक, सामाजिक और कानूनी बहस का कारण बन चुका है। सवाल यह उठता है कि क्या पश्चिमी देशों में शरिया अदालतों का होना और बहुविवाह को बढ़ावा देने वाले एप्लिकेशन का अस्तित्व उनके मौलिक कानूनी और सामाजिक ढांचे के खिलाफ है? और क्या इससे समाज में असहमति और विभाजन बढ़ सकता है?

शरिया अदालतों का मामला

शरिया अदालतें एक पारंपरिक इस्लामी न्याय प्रणाली हैं, जो मुस्लिम समुदाय के व्यक्तिगत मामलों को हल करती हैं। ये अदालतें विवाह, तलाक, संपत्ति के वितरण, और पारिवारिक विवादों को सुलझाने का काम करती हैं। UK में शरिया अदालतों की मौजूदगी के बाद से कई विवाद उठे हैं, क्योंकि ये अदालतें ब्रिटिश कानून से अलग काम करती हैं और उनका उद्देश्य केवल मुस्लिम समुदाय के मामलों को हल करना होता है।

हालांकि, शरिया अदालतों का कहना है कि वे सिर्फ धार्मिक मामलों में निर्णय देती हैं, और इनका उद्देश्य मुसलमानों को उनके धार्मिक विश्वासों के आधार पर सहायता प्रदान करना है। लेकिन आलोचक मानते हैं कि यह ब्रिटिश कानून के खिलाफ है, क्योंकि इन अदालतों का काम गैर-मुसलमानों के मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना है। कई बार यह आरोप भी लगे हैं कि शरिया अदालतें महिलाओं के खिलाफ भेदभावपूर्ण फैसले ले सकती हैं, खासकर तलाक और संपत्ति के मामलों में।

बहुविवाह के लिए ऑनलाइन एप

UK में बहुविवाह के लिए बनाए गए ऑनलाइन एप्लिकेशन ने भी एक नया विवाद खड़ा किया है। इस एप्लिकेशन का उद्देश्य उन लोगों को जोड़ना है जो बहुविवाह की इच्छा रखते हैं और इसे धार्मिक आधार पर जायज मानते हैं। हालांकि UK और कई पश्चिमी देशों में बहुविवाह अवैध है, लेकिन कुछ मुस्लिम समुदाय इसे इस्लामिक पर्सनल लॉ के तहत वैध मानते हैं। ऐसे एप्लिकेशन का होना, जो बहुविवाह को बढ़ावा दें, खासकर उन देशों में जहां एक व्यक्ति को केवल एक पत्नी रखने की अनुमति है, यह सवाल उठाता है कि क्या इस तरह के प्लेटफॉर्म सामाजिक और कानूनी व्यवस्था के लिए खतरा बन सकते हैं?

विवाद और आलोचनाएं

  1. ब्रिटिश कानून के खिलाफ: आलोचक कहते हैं कि शरिया अदालतों और बहुविवाह के लिए बनाए गए एप्लिकेशनों का अस्तित्व ब्रिटिश कानून और उनके सामाजिक ढांचे के खिलाफ है। UK में एकल विवाह प्रणाली लागू है, और बहुविवाह को कानूनी रूप से स्वीकार नहीं किया जाता। ऐसे में शरिया अदालतों और बहुविवाह से जुड़े एप्लिकेशनों का संचालन ब्रिटिश समाज में कानूनी असमंजस पैदा कर सकता है।
  2. महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन: कई संगठन और महिलाएं इस बात पर चिंता व्यक्त कर रही हैं कि शरिया अदालतें और बहुविवाह की व्यवस्था महिलाओं के अधिकारों का उल्लंघन कर सकती हैं। विशेष रूप से तलाक के मामलों में महिलाओं को उनके अधिकारों से वंचित किया जा सकता है। आलोचकों का कहना है कि ऐसी व्यवस्था महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को बढ़ावा देती है, क्योंकि इनमें अक्सर महिलाओं को संपत्ति के मामलों में कम अधिकार मिलते हैं और उनका तलाक के बाद पुनर्विवाह या जीवनशैली पर भी गंभीर प्रतिबंध होते हैं।
  3. सामाजिक एकता में विभाजन: शरिया अदालतों और बहुविवाह को बढ़ावा देने वाले प्लेटफार्मों का अस्तित्व समाज में विभाजन को बढ़ा सकता है। इससे विभिन्न धार्मिक और सांस्कृतिक समुदायों के बीच असहमति बढ़ सकती है, जिससे समाज में एकता और समानता की भावना कमजोर हो सकती है। यह सवाल भी उठता है कि क्या ऐसे संस्थान समाज में अलगाव को बढ़ावा देते हैं और ब्रिटिश समाज के मूल्यों का उल्लंघन करते हैं।

समर्थकों का पक्ष

हालांकि आलोचनाओं के बावजूद, शरिया अदालतों और बहुविवाह की व्यवस्था के समर्थकों का मानना है कि यह मुस्लिम समुदाय के धार्मिक और सांस्कृतिक अधिकारों का उल्लंघन नहीं है। उनका कहना है कि शरिया अदालतें केवल एक वैकल्पिक प्रणाली हैं जो मुस्लिमों को उनके धर्म के अनुसार निर्णय लेने का अधिकार देती हैं। इसके अलावा, वे यह भी तर्क करते हैं कि बहुविवाह इस्लामिक पर्सनल लॉ का हिस्सा है और इसे धार्मिक स्वतंत्रता के रूप में देखा जाना चाहिए।

निष्कर्ष

UK और अन्य पश्चिमी देशों में शरिया अदालतों और बहुविवाह को बढ़ावा देने वाले एप्लिकेशनों पर चल रही बहस यह दिखाती है कि धार्मिक विश्वास और कानूनी व्यवस्था के बीच एक संवेदनशील संतुलन बनाना कितना चुनौतीपूर्ण हो सकता है। जहां एक ओर ये व्यवस्थाएं कुछ लोगों को उनके धार्मिक विश्वासों के अनुसार न्याय प्रदान करने का दावा करती हैं, वहीं दूसरी ओर समाज में समानता, अधिकारों की रक्षा और सार्वजनिक व्यवस्था बनाए रखने की जरूरत भी है। इस पर चल रही बहस शायद भविष्य में और अधिक जटिल हो सकती है, क्योंकि समाज के विभिन्न वर्गों की राय और उनके हित परिपक्व होते जाएंगे।

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