सपा नेता विनय शंकर तिवारी के ठिकानों पर ईडी की छापेमारी, 700 करोड़ रुपये के बैंक लोन घोटाले की जांच तेज

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली,9 अप्रैल।
उत्तर प्रदेश की राजनीति में हलचल तब और तेज हो गई जब प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) ने समाजवादी पार्टी के वरिष्ठ नेता विनय शंकर तिवारी के कई ठिकानों पर एक साथ छापेमारी की। यह कार्रवाई करीब 700 करोड़ रुपये के बैंक लोन घोटाले से जुड़ी बताई जा रही है।

प्राप्त जानकारी के अनुसार, ईडी की यह कार्रवाई मंगलवार सुबह तड़के शुरू हुई और गोरखपुर, लखनऊ, दिल्ली और नोएडा समेत कई शहरों में स्थित तिवारी से जुड़े परिसरों पर एक साथ छापे मारे गए। अधिकारियों ने दस्तावेज, डिजिटल डाटा और कथित अवैध लेनदेन से संबंधित साक्ष्य एकत्रित किए हैं।

ईडी के सूत्रों के मुताबिक, यह पूरा मामला एक मल्टी-स्टेट फाइनेंशियल फ्रॉड से जुड़ा हुआ है, जिसमें विनय शंकर तिवारी और उनसे जुड़े कारोबारी समूहों पर बैंकों से धोखाधड़ी करके भारी भरकम लोन लेने और उसे चुकाए बिना पैसा इधर-उधर करने का आरोप है। प्रारंभिक जांच में पता चला है कि फर्जी दस्तावेज़ों और ओवरवैल्यूएशन के ज़रिए लोन पास कराए गए।

कथित रूप से यह घोटाला लगभग 700 करोड़ रुपये का है, जो कई बैंकों और वित्तीय संस्थानों को प्रभावित करता है। जांच एजेंसी का कहना है कि यह एक “सुनियोजित आर्थिक अपराध” है, जिसमें शेल कंपनियों और बेनामी खातों का इस्तेमाल किया गया।

ईडी की इस छापेमारी को लेकर सपा नेताओं ने केंद्र सरकार पर राजनीतिक प्रतिशोध का आरोप लगाया है। समाजवादी पार्टी ने एक बयान में कहा:
“यह कार्रवाई आगामी चुनावों को देखते हुए विपक्षी नेताओं को डराने की कोशिश है। भाजपा सरकार ईडी और सीबीआई का दुरुपयोग कर रही है।”

हालांकि ईडी ने स्पष्ट किया है कि यह कार्रवाई पुख्ता सबूतों और फाइनेंशियल ट्रांजैक्शन्स की फॉरेंसिक जांच के बाद की गई है, और इसका किसी राजनीतिक एजेंडे से कोई लेना-देना नहीं है।

विनय शंकर तिवारी उत्तर प्रदेश के एक प्रभावशाली राजनीतिक परिवार से आते हैं। वे पूर्व सांसद हरिशंकर तिवारी के पुत्र हैं और खुद भी चिल्लूपार से विधायक रह चुके हैं। वे पूर्व में बहुजन समाज पार्टी से भी जुड़े रहे, लेकिन बाद में समाजवादी पार्टी में शामिल हो गए थे।

उनका नाम पहले भी कुछ विवादों में सामने आता रहा है, लेकिन यह पहली बार है जब उनके खिलाफ इतनी बड़ी आर्थिक जांच शुरू की गई है।

ईडी की कार्रवाई फिलहाल जारी है और आने वाले दिनों में तिवारी से पूछताछ भी हो सकती है। साथ ही इस मामले में और लोगों की भूमिका की भी जांच की जा रही है। सूत्रों का कहना है कि इस घोटाले से जुड़े कुछ बैंक अधिकारियों और चार्टर्ड अकाउंटेंट्स पर भी नजर रखी जा रही है।

700 करोड़ रुपये का यह कथित बैंक लोन घोटाला न सिर्फ राजनीतिक हलकों में बल्कि आम जनता के बीच भी चर्चा का विषय बन गया है। एक ओर जहां विपक्ष इसे राजनीतिक प्रतिशोध बता रहा है, वहीं ईडी का कहना है कि वह सिर्फ आर्थिक अपराधों की जांच कर रही है।

सवाल यही है — क्या यह मामला भ्रष्टाचार के खिलाफ कार्रवाई है, या फिर लोकतांत्रिक विपक्ष को दबाने की कोशिश? आने वाले समय में सच सामने आएगा।

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