1/ हे भगवान – सीबीआई का बुरा हाल?
अपनी जांच और कार्यकुशलता के लिए सीबीआई की पूरे देश में एक खास पहचान है राजनीतिक प्रेशर के बावजूद सीबीआई की छवि संतोषजनक है। मगर आजकल सीबीआई का बुरा हाल है। ऊपर से लेकर नीचे तक के अफसरों में ही अविश्वास और अंदरूनी मामलों में एक दूसरे को लांछित आरोपित करने में लगे हैं। पावर के नासा पर आधिकारिक स्तर पर सीबीआई के ज्यादातर अधिकारी कई ग्रूप में बंटते जा रहे हैं। अधिकारियों की लडाई इतना आगे निकल गया है कि निदेशक आलोक वर्मा ने विशेष निदेशक यानी सीबीआई नंबर टू के खिलाफ जांच के आदेश दे दिया वहीं एक अधिकारी की गिरफ्तारी के साथ ही अधिकारियों में ही अब एक दूसरे के खिलाफ आरोपों को सीवीओ में भेजने का दौर चल पड़ा है। सीबीआई के भीतर इतनी बेहाली इतना असंतोष और इस हद तक एक दूसरे को बेनकाब करने का अभियान कभी नहीं देखा गया था। प्रधानमंत्री के सीधे-सीधे हस्तक्षेप करने सबंधित और निदेशक समेत अधिकारियों के साथ बैठक करने के बाद भी सीबीआई के भीतर अंतरकलह उफान पर है। आमतौर पर सीबीआई मुख्यालय की महाभारत से देश भर में जांच के हजारो मामले भी प्रभावित हो रहा है। भ्रष्टाचार रिश्वतखोरी और जांच में किसी के पक्ष में काम करने के आरोपियों की जांच के मामले भी लंबित पड़े हैं। सीबीआई की अंदरूनी हालात से पीएमओ भी चकित है। चारो तरफ इस अंदेशे की चर्चा है कि मामले की गंभीरता और बढ़ते विवाद के ध्यानाकर्षण में तमाम आला अधिकारियों को लंबी छुट्टी पर भेजा जा सकता है। निदेशक का कार्यकाल जनवरी 2019 में समाप्त हो रहा है। अलबत्ता सीबीआई के बवंडर को संभाल पाना अब कतई नहीं है। साख और विश्वास खो चुके सीबीआई की कमान संभालना फिलहाल किसी से प्रभावित पुलिसिया नौकरशाह के लिए भी सरल नहीं है। हालांकि गुजराती आला पुलिसिया अधिकारी का नाम काफी समय से हवा में है। अपने कई हमनाम पूंजीपतियों और अरबपतियों के बैंक को धोखा देने का आरोप है। इन भगोडों की धोखाधड़ी के बावजूद अभी भी मोदी उपनामों पर प्रधानमंत्री का अंगद विश्वास कायम है। पीएमओ की पकड़ से भी बाहर भागते सीबीआई को नाथना सरकार के लिए भी बडी़ चुनौती है, मगर वाचाल और सख्त माने जाने वाले प्रधानमंत्री आजकल ज्यादातर मामलों में खामोश रहने लगे हैं। क्या इस तोताराम की आजादी और सक्रियता के लिए कोई सकारात्मक कदम उठाए जाएंगे या तोताराम को पालतू बनाकर उपयोगी रखा जाएगा या फालतू बनाकर कूड़ेदान के हवाले कर दिया जाएगा।
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मंदिर मुद्दा है हथियार बाकी सब बेकार।
2014 में एनडीए सरकार के सुप्रीमो बने प्रधानसेवक जी ने नारों जुमलों और कविताई भाषणों से पूरे देश को मोहित कर दिया था। एक से बढ़कर एक कार्यक्रमों अभियानों और आहवानों के जरिए उम्मीद बने। सबका साथ और सबका विकास। इसी लाईन पर काम करते हुए एनडीए सरकार के लिए जनता का विश्वास कायम है। प्रधानसेवक एक अलग तरह के ऊर्जावान सख्त कदम उठाने का फैसला और हौसला रखने का भरोसा जगाया। मगर पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के सेमीफाइनल आरंभ हो गया है। इसके साथ ही नेताओं के भड़काऊ भाषणों बयानो से देश के सामाजिक राजनैतिक तापमान को गर्मागर्म करने और रखने का उत्तेजना फैलाने काऊ काम चालू हो गया। बडबोलापन के लिए कुख्यात बिहारी प्रवीण तोगड़िया के रूप में कुख्यात केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह तो सीधे तौर पर अब धमकाने लगे हैं। इतिहास की जातीय व्यवस्था को संशोधित करते हुए सभी भारतीय मुस्लिमों को रामवंशज घोषित करते हुए कहा कि ज्यादातर मुस्लिम मंदिर के पक्ष में है और जो नहीं है उससे गुस्सा ज्वाला बन सकती है और ऐसा हुआ तो क्या होगा? यही है चेतावनी नसीहत या धमकी? केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल मंत्रियों की इसे नासमझी तो एकदम नहीं कही जाएगी। यानी मोदीमंत्र क्या केवल एक छलावा भर है या हकीकत से कोई इसका भी वास्ता है? अगर है तो सता रहे या नहीं पर प्रधानसेवक को जनता के विश्वास की रक्षा करनी होगी। विकास के मुद्दे को ही अपना नंबर एक मूलमंत्र और हथियार मानना होगा। मंदिर मुद्दा जब सर्वोच्च न्यायालय में लंबित है तो सरकार को भी न्याय प्रक्रिया के ऊपर विश्वास को पुख्ता करने की जरूरत है। और इसके लिए रावण बनते रामभक्त नेताओं पर सबसे पहले काबू में रखना होगा नहीं तो जयश्री राम भी राम राम करके सबसे विदा हो सकते हैं।
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बिशप का यह कैरेक्टर?
चर्च के किसी पादरी यानी फादर सबों के लिए आदर सम्मान और विश्वास का प्रतीक होता है मैसेंजर अॉफ दिया गॉड की तरह फादर को लेकर इसाई धर्म के सभी क्रिश्चियनों को इतना भरोसा होता है कि अपने गुनाहों को भी चर्च में पादरी के सामने ही कंफेसन किया जाता है आमतौर पर माना जाता है कि कंफेसन के माध्यम से कोई आदमी अपनी बात गॉड तक पहुंचा कर तनावमुक्त सा हो जाता है। धर्म में पादरी की इतना महत्वपूर्ण भूमिका है तो पादरी से होकर सैकड़ों पादरियों को संबोधित करने वाले बिशप का चरित्र और मान्यता काफी है। वेटिकन सिटी भी बिशप को सालाना सभाओं में आमंत्रित करता है। मगर केरल के चरित्रहीन बिशप इसाई धर्म के लिए कलंक बनते जा रहे हैं एक नन के साथ लगातार बलात्कार करने के मामले में बिशप आरोपित है और कोर्ट ने भी बिशप को प्रथम दृष्टया दोषी मानते हुए पासपोर्ट जमा करने और तमाम अनुशासन का पालन करने का निर्देश दिया है मगर हो क्या रहा है। जालंधर में स्वागत समारोह में महिलाओं ने बलात्कारी बिशप का विरोध किया। अभी-अभी विरोध का ज्वाला शांत भी नहीं हुआ था कि होशियारपुर के पादरी और बिशप नन रेप मामले के गवाह की संदेहास्पद हालातों में मौत हो गयी। मौत को लेकर मामला भले ही तूल ना पकडे़। कोर्ट से बलात्कारी बिशप बच भी जाएगा तो क्या कोई भी धर्म क्या इस तरह के कलंक से मुक्त होगा? इसके लिए तो संसार के चारों तरफ फैलै और आस्था के प्रतीक के रूप में देखे जाने वाले बलात्कारी पादरियों और बिशपों के खिलाफ कार्रवाई करनी होगी। धर्म सबसे ऊपर और सबके विश्वास का प्रतीक है जिसे कायम रखना जरुरी है। तो वहीं आजाद घूम रहे बेकाबू कथित बलात्कारी बिशप पर लगाम लगाने की कोशिश की जानी चाहिए ताकि बलात्कार के आरोप से बचने के लिए मैसेंजर अॉफ दिया गॉड कोई और ऐसा काम न कर बैठे जिससे क्रिश्चियनों को शर्मसार ना होना पड़े। क्या वेटिकन सिटी अपनी मासूम ननो की इज्जत पर हाथ डालने वाले बलात्कारी या क्रिमिनल पादरियों बिशपों या ठेकेदारों को नियंत्रित रख सके।
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/ गैंगरेप कंट्री इंडिया?
भारत में महिलाओं को देवी की तरह देखा जाता है। सरकार भी महिलाओं की सुरक्षा के बड़े बड़े दावे करने में कभी पीछे नहीं रहती है। अदालत संसद और कानून में भी सुरक्षा के सख्त कार्रवाई का प्रावधान है। मगर देश भर में महिलाओं लड़कियों और खासकर छोटी बच्चियों का बुरा हाल है। ये कहीं भी सुरक्षित नहीं है। रेप तो पहले की बात है अब तो सीधे गैंगरेप की घटनाओं की बाढ़ आ गयी है। रेप के बाद ज्यादातर रेपिस्ट राक्षसों द्वारा सीधे मर्डर। न रहे बांस न बजे बांसुरी। सैकड़ों बच्चियों की हत्या रेप के बाद भी सब धान बाईस पसेरी की कहावत को चरितार्थ कर दिया है। रेप की सजा फांसी और आजीवन कारावास की सजा होने के बाद भी बलात्कार की घटनाओं में बेशुमार इजाफा हुआ है। पुलिस की तमाम सक्रियता के बाद भी ज्यादातर मामलें कोर्ट में लंबित है। बलात्कारियों के हिंसक कैरेक्टर की हिंसा के बाद भी देश शांत है अदालत मौन है। पुलिस उदासीन है। और सरकार मंचीय भाषणों में नारी सुरक्षा के बड़े बड़े दावे दावे मान रही है कि आधी आबादी चैन से है। हे भगवान देवभूमि में यह अंधेरा।
5/ सपनों की दिल्ली का सच ।
देश की राजधानी दिल्ली सबके लिए सपनों का शहर है। नेता हो या अभिनेता स्टूडेंट्स हो या रिसर्च स्कॉलर बिजनेस हो या कारोबार नौकरी हो या दलाली। इलाज हो या पढाई। सबको दिल्ली में ही संभावनाएं दिखती है। सबको देश की मुख्यधारा में शामिल होने के लिए दिल्लीवासी होना जरूरी लगता है। यही कारण है कि बेतरतीब आबाद और बसी दिल्ली अपने आप से परेशान हैं। दिल्ली को 63 लाख होने में 81 साल लग गये मगर आबादी विस्तार की आंधी में दिल्ली को एक करोड़ 75 लाख हो जाने में मात्र बीस साल ही लगे। 2021 में तो ढाई करोड़ नरमुंडों के शहर के रुप में दिल्ली को देखा जा सकता है। आबादी के भयानक विस्तार के बीच अवैध उद्योगों की अनगिनत तादाद से शहर का आबोहवा ही खराब हो रही है। दुनियां के सबसे अधिक प्रभावित प्रदूषित शहरों में शुमार दिल्ली देश का भी नंबर वन सबसे प्रदूषित शहर है। प्रदूषण की रोकथाम में दिल्ली इतनी बुरी तरह विफल रही है कि देश के सबसे अधिक प्रदूषित इलाकों में नौ क्षेत्र राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली में ही समाहित है। यानी दिल्ली के चप्पे चप्पे पर प्रदूषण की मार है। उसपर रोजाना 1500 से नये वाहनों का रोजाना पंजीकरण होता है। हर साल पांच लाख नयी गाडि़यों को जोड़ने वाली दिल्ली में पडोसी शहरों से भी रोजाना दस लाख वाहनों की यहां इंट्री होती है। यानी लाख संभावनाएं इस शहर में छिपी हो मगर इसी दिल्ली में स्लो डेथ और नाना प्रकार की बीमारियों का भी संदेह छिपा है। फिर भी सबके सपनों की दिल्ली क्या वाकई सबकेे सपनों को साकार करती है?
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