अगले साल होन वाले लोकसभा चुनाव से ठीक पहले पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव को जनता के मिजाज का आकलन माना जा रहा है। इसे सेमीफाइनल की तरह देखा जा रहा है एक तरफ पूरे देश को अपनी झोली में डालने के लिए भाजपा बेताब हैं, तो दूसरी तरफ जम्मू कश्मीर हाथ से फिसलने लगा है। पीडीपी के साथ गांठ टूटने के साथ ही फिर राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया था। मगर पीडीपी नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के तालमेल से सूबे में एक बार फिर गठबंधन सरकार की संभावनाएं उठ खड़ी होती दिख रही है। अगले माह 19 दिसंबर को राष्ट्रपति शासन समाप्त हो रहा है।पीडीपी गठबंधन सरकार से भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले ली थी। तब से राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू है सतपाल मलिक अभी यहां के राज्यपाल हैं, जो बार बार विधानसभा भंग करने की बजाय उसे स्थगित रखते हुए सरकार की संभावना को साकार देखना चाहते हैं।
== उल्लेखनीय है कि 84 विधानसभा सीटों वाली जम्मू कश्मीर के विधानसभा चुनाव में पीडीपी को 28और भाजपा को 25 सीटें मिली थी। बहुमत के लिए 44 सीटों की जरूरत होती है। मुफ्ती महबूबा मुख्यमंत्री बनी। मगर महबूबा सरकार के पतन के बाद शांत पडे जम्मू कश्मीर में एकाएक फिर से सरकार बनाने की कोशिश तैज हो गई है। महबूबा के साथ 15 विधायकों वाली नेशनल कांफ्रेंस ने साथ देने के लिए कटिबद्ध हैं। और 12 विधायकों के साथ कांग्रेस ने भी बिना शर्त बाहर से समर्थन के लिए तैयार है। इस तरह तीनों के गठबंधन से बहुमत के लिए आवश्यक 44 से कहीं ज्यादा गठबंधन को 55 की संख्या है। नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला ने कहा कि राज्य को एक सरकार की जरूरत है और पीडीपी के साथ हाथ मिलाने में कोई समस्या नहीं है। दोनों के बीच खिचड़ी पकते देखकर कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद भी सक्रिय हो गए और बिना शर्त समर्थन का वादा करके अगले माह सरकार बनने की संभावनाओं को पंख लगा दी। कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी ने भी महबूबा के साथ फोन पर पूरा समर्थन देने का भरोसा दिया है। जिसके बाद सरकार की संभावनाओं के बीच महबूबा और नेकां जरूरी रणनीति बनाने में लगे हैं। वहीं आजाद ने इस संभावना को बलवती होने काऊ स्वागत किया है बकौल आजाद राज्य में राष्ट्रपति शासन की जगह लोकतांत्रिक व्यवस्था की बहाली आवश्यक है। गौरतलब हो कि 2007 में भी नेकां और पीडीपी के तालमेल से गठबंधन की सरकार बनी थी। इस बीच महबूबा मुफ्ती सरकार के पतन के बाद पीपुल्स कांग्रेस के सज्जाद गनी ने भी गठबंधन सरकार की पहल तेज की थी, मगर तत्कालीन हालात में सज्जाद गनी की कोशिशों का फल नहीं निकला। मगर पिछले छह माह के दौरान सभी शिकवे शिकायतों को भूलकर उमर अब्दुल्ला और महबूबा राजी हो गए और कांग्रेस के समर्थन से सरकारी बनने की संभावना काफी सकारात्मक दिशा में गतिशील है। और पांच राज्यों के परिणाम के बाद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के सपनों की उडान का अंदाजा लगाया जा सकता है। मगर अपनी हाथ से फिसलते जम्मू कश्मीर का दामन को संभालना भाजपा और मोदी सरकार के लिए अब कठिन या नामुमकिन है।
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