उत्तराखंड सब आशंकित, सेना तैनाती की मांग के बीच स्थानीय लोग जरूरी सामानों की खरीददारी में व्यस्त अयोध्या में क्या सबकुछ शांतिपूर्ण तरीके से शांतिपूर्वक निपट जाएगा? अयोध्या में धर्मसभा का आयोजन हो रहा है या इसके पीछे कुछ और है? अबतक यहां लाखों लोगों की भीड़ इकठ्ठा हो गयी है। साधु संतों रामभक्तों की उन्मादी भीड़ के तेवर से स्थानीय लोगों में खौफ हैं। किसी भी हालात से निपटने के लिए लोगों ने जरूरी सामान खरीदना शुरू कर दिया है। अयोध्या में भारी तादाद में पुलिस सुरक्षा बलों की तैनाती की गयी है। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने सुरक्षा के लिए सेना के हवाले करने की मांग की है, जिसे केंद्रीय रक्षामंत्री निर्मला सीतारमण ने यह कहकर खारिज कर दिया कि अयोध्या में सेना की कोई जरूरत नहीं है। हालत कितना काबू में है या बेनकाब? इसको लेकर केंद्र से लेकर राज्य की योगी सरकार भी आशंकित है। इस बीच शिवसेना की प्रस्तावित रैली होने न होने को लेकर भी शिवसैनिकों को उतावला कर रहा है ह यानी राम श्रीराम के नाम पर अयोध्या में श्रीराम और रामराज्य को शर्मसार करने के लिए काफी है।क्या संयोग है कि 26 साल के बाद एक बार फिर अयोध्या अशांत आशंकित और भयभीत हैं। लाखों साधु संतों महात्माओं रामभक्तों और जुबानी जंग से उन्मादी माहौल बनाने वाले हजारों नेताओं का भी यहां पर जमावड़ा जारी है। यों तो 1988 से 1992 के बीच अयोध्या में कई बार उन्मादी भीड़ इकठ्ठा हुई और देखते ही देखते छह दिसम्बर 1992 को लाखों उन्मादी भीड़ ने बाबरी मस्जिद को विध्वंस करके जमीनदोंज कर दी। इस विध्वंस के बाद श्री राम मंदिर के निर्माण की योजना पर विचार विमर्श किया जाता रहा। अब मंदिर बनाने का मामला उठता रहा, जिसे अबतक चुनाव से पहले उठाकर मामला गर्मागर्म बनाकर फिर अंधेरे बंद कमरे में अयोध्या प्रकरण को बंद करके छोड़ दिया जाता था। मगर इस बार पानी सिर के ऊपर चला गया लगता है। एक तरफ पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव का खुमार परवान पर है तो यूपी अयोध्या में धर्म के नाम पर आगलगावन खेल जारी है। जमावडे से आशंकित पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने राज्य और केंद्र सरकार से अयोध्या में सेना की तैनाती की मांग की गयी है। जिसे फौरन नकारती हुई रक्षामंत्री सीतारमण ने साफ किया है कि इसकी कोई जरूरत नहीं है। मगर अयोध्या के चप्पे चप्पे पर भय खौफ और खतरे की घंटी की आहट से ज्यादातर अयोध्यावासी अपने घर में जरूरी सामानों की खरीदारी में लगे हैं।: राम मंदिर निर्माण का मामला अब परवान पर है। भाजपा इसे किस तरह निपटती यह मामला भाजपा खेमे में चल ही रहा था कि शिवसेना ने इसबार अयोध्या में अपनी दस्तक दे दी है। शिवसेना इसी के साथ उत्तर भारत में अपनी पैठ जमाने के लिए गंभीर है तो अचानक शिवसेना की दिलचस्पी से भाजपा संकट में है इस तरह शिवसैनिकों की उन्मादी भीड़ और संगठित फौज के चलते अयोध्या का वातावरण गरमाया सा है। अयोध्या के गली मोहल्ले में बेशुमार जनसमुदाय दिखाई दे रहा है शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे कल हजारों लोगों का जत्था पहुंच रहा है अब देखना है कि बाबरी विध्वंस यानी छह दिसम्बर तक अयोध्या में रहने वाली अपार भीड़ अगले दो सप्ताह में क्या रंग लाएगी दो सप्ताह की बात तो बाद में अगले 72 घंटो में क्या गुल खिलेगा इसकी शंका आशंका को लेकर यूपी सरकार भी क्या होगा इस पर कुछ समझ नहीं पा रही है। इसी बीच जिला प्रशासन की ओर से शिवसेना को प्रस्तावित रैली पर रोक लगाने की कोशिश की अफवाह है। कहा जा रहा है कि पूर्व अनुमति का तर्क दिया गया है। शिवसेना सांसद संजय राउत और अरविंद सावंत ने इसके लिए योगी सरकार पर जानबूझकर शिवसेना को रोकने का आरोप लगाया है। संसद राउत ने कहा कि चूंकि भाजपा से संबधों में आए कड़वाहट के कारण भी शिवसेना की गतिविधियों पर अंकुश लगाने की कोशिश है यानी धर्मसभा के लिए शिवसेना की मौजूदगी को भी योगी सरकार पचा नहीं पा रही है। इस तनाव का असर भी काफी लंबे समय तक देखा जा सकता है। बहरहाल धर्मसभा की शांतिपूर्ण समापन के लिए भी लगता है कि श्रीराम भगवान भी जयश्री राम से प्रार्थना करेंगे। फैजाबाद के नाम को अयोध्या कर देने से भले ही प्रशासनिक रूपरेखा पर कोई असर नहीं पड़ेगा मगर रामभक्तों की उन्मादी भीड़ यदि बेताब बेसब्र हो गयी तो छह दिसम्बर 1992 कि तरह 26 सालों के बाद भी पुलिस प्रशासन शायद ही किसी संभावित आशंका को अयोध्या में फिर रोक पाएगी? आशंकाओं की आहट तेज है मगर अगले 72 घंटों की पटकथा के बारे में उत्सुकता उत्कंठा और आशंका से ज्यादातर लोग भयभीत हैं और नजर आ रहे हैं।