अयोध्या का सस्पेंस बरकरार
श्री राम मंदिर निर्माण के उन्मादी लहर को वैधानिक रूप से डेढ़ महीने तक फिर टाल दिया गया है। पांच राज्यों में हो रहे विधानसभा चुनाव में आचार संहिता लागू होने का हवाला देकर विश्व हिंदू परिषद और शिवसेना के धर्मसभा को बड़ी चालाकी से डेढ़ माह आगे प्रयाग कुंभ तक खिसका दिया गया है। इस बीच संसद में अध्यादेश लाकर अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के रास्ते की सभी बाधाओं कोई खत्म करने का भरोसा दिया गया है। ——- इस आश्वासन के बाद पिछले एक सप्ताह से अयोध्या में व्याप्त उन्मादी भीड़ भी धीरे धीरे छंटने लगी और सारा खेल फिक्स मैच की तरृ हैप्पी एंडिंग की तरहां खत्म हो गया। दो एक दिन में भीड़ भी किसी धार्मिक यात्रा से लौटने लगीं है। साधु संतों ने भी जय श्री राम के नारों के बीच अपना बोरिया बिस्तर समेटना शुरू कर दिया है। वहीं जय श्री राम के हुंकार से कोई ,26 साल के बाद अयोध्या में लाखों की संख्या में राम भक्तों की उन्मादी भीड़ को देखकल भाजपा विहिप और शिवसेना के बल्ले बल्ले है। सभी को इसका संतोष है कि तीन दशक के बाद भी अभी अयोध्या मामले में बहुत दम बाकी है।
__ बड़ा अजीब संयोग है कि यदि केंद्र सरकार चाहती तो अयोध्या में कोई जमावड़ा होने ही नहीं देती। एक सप्ताह पहले ही केंद्र सरकार चुनाव और आचार संहिता लागू होने का वैधानिक हवाला देकर सबों को रोक सकतीं थी; मगर ऐसा नहीं हुआ क्योंकि केंद्र और राज्य सरकार शिवसेना इस मामले की भावुकता संवेदनशीलता भावनात्मक प्रज्वलनशीलता की अलाव के तापमान को देखना चाहती थी। सभी कसौटियों पर अयोध्या आज भी लावा से। इसका अंदाजा लगते ही खट से कहीं से कोई संदेशा आता है और श्री राम मंदिर निर्माण के लिए हुंकार रैली की तरहां धर्मसभा पर विराम लग गया। और पांच मिनट की सार्वजनिक घोषणा के बाद आयोजन में बैठे लाखों की भीड अनुशासित छात्रों की तरह शांति से ओम शांति ओम करती हुई वापसी के लिए ट्रेन पकड़ने की चिंता में तितर बितर होने लगी। एकं तरफ़ लाखों की भीड अयोध्या में इकठ्ठा हो रही थी। स्थानीय लोगों में खौफ पैदा होने लगा था। ढेरों लोग पलायन कर चुके थे।
__पूरे राज्य समेत अयोध्या के तनाव को देखते हुए भी केंद्र और राज्य सरकार की ख़ामोशी से ढेरों सवाल उठने लगे हैं। वहीं 11 दिसंबर को समाप्त हो रहीं चुनावी प्रक्रिया के बाद सरकार कोई एक माह का समय भी मिल जाएगा। इस मामले को कानूनी मान्यता के लिए भी समय मिलेगा।वहीं उबाल को ठंडा करके फिर उबाल खड़ा करना आसान नहीं होता है। उधर मध्यप्रदेश छत्तीसगढ़ राजस्थान तेलंगाना और मिजोरम विधानसभा चुनाव के परिणाम घोषित होने के बाद भाजपा को भी लोकसभा चुनाव की तैयारियों और रणनीति को फाइनल आकार देने में सरलता होगी।
___शिवसेना के इस एपीसोड में इंट्री के बाद पहली नजर में लगता है कि एक ही मुद्दे को हथियाने का वार सा होगा, मगर धर्मसभा की एकाएक समापन के बाद उद्धव ठाकरे का भी खामोश रह जाना इस संदेह को बल देता है कि सारा मैच फिक्स था। पहले ही पूरी पटकथा लिखी जा चुकी थी केवल परिणाम देखने के लिए ही तनाव और उन्मादी भीड़ को इकठ्ठा होने दिया गया था। और सबकुछ अपने अनुकूल देखकर एकाएक किसी संदेश का हवाला देकर रामभक्तों के मेले के समापन की घोषणा की गती। और इसके पीछे प्रयागराज प्रयाग कुंभ में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए आहवान करनि सबसे लाभदायक और चुनावी नजरिए से भी लाभदायक हो सकता है। अलबत्ता तैयारियों के नाम पर निर्माण कार्य शुरू कराने के लिए कोई इस तरह के डेट को रखा जा सकता है कि लोकसभा चुनाव शांति के साथ कराया जा सके। और इस मामले में शिवसेना भी साथ लगती और दिखती है। संभावना है कि यदि भाजपा की सरकार बनी तों मंदिर निर्माण के लिए कोई सुविधाजनक तारीख़ में भव्यता के साथ मंदिर निर्माण आरंभ हो। और यदि चुनावी परिणाम विपक्ष में रहा तो पूरी ताकत से मंदिर निर्माण के लिए माहौल खड़ा किया जा सके।
उधर पहली बार शिवसेना के अयोध्या में आगमन के बाद लगा था कि इसमू और तेज़ी आएगा। दोनों के बीच मामले को हथियाने की जंग होगी। जिस तेवश
____ तेवर और उन्मादी लहज़े के साथ शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे अयोध्या में आए तो लगा कि पिछले कुछ महीनों की तना तनी का यहां पर विस्फोट होगा। मगर अंततः मिशन अयोध्या का अचानक बिना किसी फैसले का समापन एकाएक नहीं था। पहले से लिखीं गयी पटकथा का संभावित हैप्पी एंडिंग पर सबकी सहमति थी।
: __ हालांकि चुनावी प्रक्रिया और आचार संहिता के समापन के साथ ही भाजपा पर काफी तनाव रहेगा। संसद में कोई अध्यादेश लाया जाएगा अथवा जनमत के बल के बावजूद सुप्रीम कोर्ट के फैसले का स्वागत करेंगे। यानी अयोध्या का सस्पेंस आने वाले दिनों में क्या रंग रूप आकार लेता है? यहीं सवाल अगले डेढ़ महीने तक पूरे देश को विचलित करता रहेगा।