रिलायंस जियो मोबाइल कंपनी के आतंक से वोडा-आईडिया और एयरटेल मोबाइल कंपनियां बाहर निकल गयी है। अपने कंज्यूमर्स को येन-केन प्रकारेण बचाने के फिराक में लगी सभी मोबाइल कंपनियां अब अपने कंजूस और फ्री में इनकमिंग का लाभ उठाने वाले उपभोक्ताओं से परहेज़ करने का इरादा किया है। हर महीने न्यूनतम रिचार्ज को प्लान एक दिसंबर से लागू किया जा चुका है। जिससे आंशिक बैलेंस रखकर मोबाइल के मुफ्तखोर बने यूजर्स को नंबर चालू रखने के लिए मासिक रिचार्ज इस माह से जरूरी हो गया है। रेगूलर रिचार्ज की अनिवार्यता से कंपनियों को करीब चार करोड़ यूजर्स खोने का अंदेशा है।
उल्लेखनीय है कि भारतीय टेलीकॉम इंडस्ट्री में जियो मोबाइल का आना एक बड़ी क्रांति और बदलाव कि सूचक प्रतीत हुआ। जियो का आरंभ 2016 उतरार्द्ध से हुआ। आरंभिक छह माह तक फ्री में सेवा देकर जहां जियो ने अपने नेटवर्क का विस्तार किया। वहीं इस फैलाव में नेटवर्क की पहुंच का परीक्षण भी होता चला गया। साथ ही औपचारिक जियो सेवाएं आरंभ होने से पहले ही क़रीब दस करोड़ ग्राहक जियो नेटवर्क को अपना बना लिया। और जब जियो का औपचारिक आरंभ हुआ तो देखते ही देखते लगातार घाटे से छोटी छोटी मोबाइल कंपनियां या तो बंद होने लगी या एक दूसरे में समाहित होकर मैदान से बाहर निकल ग्रीन। जियो से पहले जहां देश भर में एक दर्जन से अधिक मोबाइल आपरेटर होते थे, मगर मैदान में सरकारी बीएसएनएल और एमटीएनएल को छोड़कर केवल वोडा-आईडिया और एयरटेल ही बचें है। आईडिया को भी वोडाफोन के साथ मर्जर के बाद अस्तित्व बचाना पड़ा। जियो की आंधी में रिलायंस इंडिया मोबाइल रीम का भी बोरिया बिस्तर उखड़ गया।
गौरतलब हों कि जियो मोबाइल के आगमन के साथ ही सभी मोबाइल कंपनियां अपने उपभोक्ताओं को बचाने की जुगत में लग गेल। कंज्यूमर्स को अपने संग जोड़े रखने के लिए सभी मोबाइल आपरेटरों ने अपने सख्त नियमों को काफ़ी नरम कर दिया था। मोबाइल कनेक्शन को चालू रखने के लिए हर माह 28 दिनों के न्यूनतम अनिवार्य रिचार्ज नीति कोई भी अघोषित तौर पर बंद सा कर दिया। इससे ज़्यादातर कंज्यूमर्स या तों कंजूस हो गयै या मुफ्तखोर से हो गये। जियोनी मोबाइल को मुख्य नंबर बनाकर एयरटेल वोडाफोन आइडिया एमटीएनएल और बीएसएनएल को सहायक तौर पर दूसरा नंबर बना दिया। जिससे इन नंबरों का इस्तेमाल केवल इनकमिंग नंबर देखने संदेश देखने या काल रिसीव करने के लिए होने लगा। और देखते ही देखते दो साल से भी ज्यादा समय निकाल गया। और ज्यादातर कंज्यूमर्स इन दो साल में केवल दस बीस रूपये के बैलेंस के बूते इनकी सेवाएं से लाभान्वित होते रहे। जियो की सुनामी में अधिकतर छोटे और कुछ सर्किट में सेवाएं देने वाली मोबाइल कंपनियां भारी घाटे और कंज्यूमर्स के पोर्ट कराकर अन्यत्र शिफ्ट हो गये। जिससे सभी मोबाइल कंपनियां वोडाफोन या एयरटेल में समाहित कर गयी। दो साल के बाद वोडा-आईडिया और एयरटेल ने अपने-अपने कंज्यूमर्स के डाटा को खंगाला तो हैरान रज्ञ गये। पोस्टपेड कनेक्शन केवल दस प्रतिशत रह गये और करीब 40% कंज्यूमर्स ने इस दौरान 100 रुपया से भी कम का रीचार्ज़ कराके अपने पुराने नंबर को जीवित रखा। और दो सालों में आईडिया वोडाफोन और एयरटेल हजारों करोड़ के नुक़सान में आ गयी। इसके बावजूद जियो का कहर क़ायम है।
: इस समय जियो के क़रीब 27 करोड़ यूजर्स हैं सबसे सस्ता प्लान और पारदर्शी छवि के चलते हर माह इसके साथ एक करोड़ नये उपभोक्ताओं का जुड़ना भी जारी है। हर तरह के उपभोक्ताओं के लिए लार्ज रेंज के कारण जियोनी का आकर्षण कायम है। ग्रामीण इलाकों में केवल बातचीत करने वाले बिना डाटा वालों को जियो हर माह केवल 49 रूपये में ही अनलिमिटेड बातचीत का आफर लेकर खड़ा है । तो पुराना फोन देकर नया जियो फोन और 585 रुपये यानी 1085 रूपये में नया फोन और अगले छह माह तक रोजाना आधा जीडी डाटा और अनलिमिटेड बातचीत के आफर से शहरी और ग्रामीण इलाके के घर घर में जियो का डंका बजने लगा। जियो के इस रेलमपेल और खौफ से उबरते हुए वोडा और एयरटेल ने अपनी पूरी नीतियों को नये सिरे से लागू कर दी है। कंज्यूमर को बचाने की बजाय कंजूस कंज्यूमर्स को बने रहने के लिए या तो हर महीने रिचार्ज की अनिवार्यता को जरूरी बना दिया है। इसके तहत् विभिन्न प्लान के लिए हर माह कम-से-कम 35, 65 और 95 का रिचार्ज कराने पर ही नंबर की वैधता बनीं रहेगी। उपरोक्त रिचार्ज से 28 दिनों तक मोबाइल एक्टीवेट रहेगा। अगला रिचार्ज नहीं कराने पर 45 दिनों के भीतर नंबर बंद हों जाएगा। इन कंपनियों को हर माह रिचार्ज ज़रुरी करने पर कोई चार करोड़ उपभोक्ताओं के अपना नंबर पोर्टेबिलिटी करा लेने का अनुमान है। इसके बावजूद मासिक रिचार्ज कराने वाले करोड़ों कंज्यूमर्स के लगातार एकटीव रहने से दोनों कंपनियों को आय में काफ़ी उछाल आने की उम्मीद है। इसी मार्केटिंग पालिसी के तहत ही जियो के खिलाफ कमर बांधकर फिर से टक्कर देने की तैयारी पर अमल आरंभ हो चुका है। जियो के समान टैरिफ करने के बाद भी अब यह तो समय ही बताएगा कि कौन-कौन कितने पानी में अपना दम दिखा दिया। और रही सही कसर सरकारी मोबाइल कंपनियों कि तो घाटे और अत्यधिक स्टाफ के चलते ये कंपीटिशन से बाहर है। एक तरफ निजी कंपनियों जी फोर के बाद जी फाइव लाने की तैयारी में है तो सरकारी मोबाइल कंपनियां अभी भी थ्रीजी में ही हांफ रहीं हैं। यिनु लगातार खोते यूजर्स को देखते हुए इनके वजूद पर भी एक सवाल उठने लगे सकता है कि आखिर बाजारी कंपीटिशन से बाहर रहकर कब तक ?