भाजपा द्वारा पूरे देश में प्रचारित कांग्रेस मुक्त भारत बनाने की मुहिम की धार भले ही इस समय मंद पड़ गयी हो,मगर इसी विधानसभा चुनाव में मिजोरम में कांग्रेस की करारी हार के साथ ही पूर्वोत्तर भारत आज पूरी तरह कांग्रेस मुक्त जरुर हो गयी। आजादी के बाद यह पहला मौका है सेवेन सिस्टर्स के नाम से मशहूर नार्थ ईस्ट सेवेन स्टेट में असम, त्रिपुरा, मणिपुर, अरूणाचल प्रदेश, नागालैंड, मेघालय और मिजोरम आते हैं। मिजोरम को छोड़कर शेष सभी राज्यों में 1989 के बाद से कांग्रेस धीरे-धीरे पराजित होने लगी और कांग्रेस के ज्यादातर दबंग नेताओं के बाद नेताओं की कोई नयी पीढ़ी पनप नहीं सकी, इसके विपरीत क्षेत्रीय दलों और स्थानीय नेता ताकतवर होते चले गए। और देखते ही देखते कांग्रेस सिकुड़ने लगी। एक एक करके सारे राज्यों की सता से कांग्रेस बाहर होती चली गयी। चुनाव में हार जीत तो एकदम सामान्य प्रक्रिया है। मगर कांग्रेस के लिए मिजोरम की हार खतरनाक संकेत है। हांलांकि राजस्थान मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में शानदार विजय में सामने मिजोरम की शर्मनाक पराजय का दंश कम लग रहा हैं। पिछले चुनाव में कांग्रेस को 2013 में 40 में से 34 सीटों पर जीत हासिल की थी।मगर इस बार कांग्रेस केवल पांच सीटें ही जीत सकी। मिजो नेशनल फ्रंट को 26 सीटें मिली। कांग्रेस से ज्यादा निर्दलीय प्रत्याशी विजयी रहे। और तो और कांग्रेस के मुख्यमंत्री दोनो सीटों पर हार गए। जनता ने नकारा तो मिजो नेशनल फ्रंट की जीत से मिजोरम में स्थानीय दलों की सरकार गठित हुई है। जनता की कसौटी पर देखना दिलचस्प होगा कि क्या पूर्वोत्तर भारत से कांग्रेस का पतन कितना लंबा रहेगा। अलबत्ता यह जानना भी रोचक होगा कि मिजोरम में पहली बार भाजपा का भी खाता खुल गया। मिजोरम में अब एक विधायक भाजपा का भी अब मिजोरम में जय श्री राम के नारे भी सुनाई दे सकते हैं।।