कब खत्म होगा 491 साल का विवाद
आज से 491 साल पहले 1528 में हिदू लुटेरे के रुप में भारत आए बाबर द्वारा अयोध्या में एक मस्जिद बनाया गया। कथित तौर पर आरोप है मंदिर निर्माण के नाम पर श्री राम मंदिर को तोड़कर बाबरी मस्जिद बनाया गया। तब से लेकर आज तक यह मामला आज़ तक विवादों में ही है। आज 10 जनवरी,2019 को सुप्रीम कोर्ट की पांच सदस्यीय बेंच के एक जज के उपर सवाल उठाए जाने से अगली सुनवाई के लिए 29 जनवरी का तारीख दे दिया है। पिछले चार माह के दौरान मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अगुवाई में इस मामले की सुनवाई को चौथी बार टाला गया है। अदालती कार्यवाही के 70 सालों की लंबी प्रक्रिया जारी है। आइए तारीख पे तारीख की 466 साल के दास्तान ए बाबरी मस्जिद श्री राम मंदिर विवाद के सफरनामे को देखें। जहां मंदिर मस्जिद के नाम पर केवल हिंसा विवाद तनाव और नफ़रत को बल मिला है। हां तो 491 साल पहले 1528 में बने बाबरी मस्जिद के सवाल पर 35 साल के बाद 1553 में पहली बार हिंसा हुई। हिंदू समुदाय और मुस्लिमो के बीच मंदिर मस्जिद को लेकर तनाव हुआ। इस विवाद को सुलझाने के साथ फिर से सामान्य सा हो गया। और करीब 306 साल के बाद 1859 में एक बार फिर पूजा पाठ और नमाज को लेकर विवाद बढ़ गया।तब अंग्रेजों ने माहौल और दोनों समुदायों की ताकत को देखते हुए अलग अलग पूजा पाठ इबादत और नमाज अदा करने के लिए जगह निश्चित करा दिया। इसके बावजूद 26 साल के बाद 1885 में बाबरी मस्जिद और कथित श्री राम मंदिर में इबादत पूजा पाठ को लेकर यह मामला अदालत में पेश हुआ। महंत रघुवीर दास ने फैजाबाद में मंदिर निर्माण की अर्जी लगाई। इस पर 1889 में अदालत ने हिन्दूओं को पूजा की इजाजत मिलने के साथ मुस्लिमों को नमाज अदा करने पर रोक लगा दी गयी– भारत कीआजादी के बाद 1948 में बाबरी मस्जिद परिसर में हिंदुओं ने पूजा पाठ अर्चना की अनुमति मांगी। दो साल के दौरान कई आदालती तारीखों के बाद 16 जनवरी 1950 को इसकी अनुमति मिल गयी। मगर पांच दिसंबर 1950 को महंत रामहंस दास ने विवादित ढांचे में राममूर्ति रखने की अनुमति मांगी। मस्जिद को विवादित ढांचे का नाम दिया गया। तभी 17 दिसंबर 1959 में निर्मोही अखाड़ा ने विवादित स्थल के हस्तांतरण की मांग की है। 18 दिसंबर 1961 को यूपी सुन्नी वक्फ बोर्ड ने विवादित ढांचे के मालिकाना हक़ के लिए मुकदमा दायर की। विश्व हिन्दू परिषद ने 1984 में विवादित ढांचे का ताला खोला राम जन्मभूमि को स्वतंत्र मानते हुए विशाल मंदिर के निर्माण के लिए राष्ट्रीय अभियान शुरू किया। एक फरवरी 19860 को फैजाबाद जिला न्यायालय के न्यायाधीश ने विहिप की अर्जी पर हिंदूओं को पूजा करने की इजाजत दे दी। जब ताला दोबारा खुला तो विरोध करते हुए मुस्लिम समुदाय ने बाबरी मस्जिद एक्शन कमेटी का गठन किया। जून 1989 में विहिप को भाजपा ने समर्थन देकर मंदिर आंदोलन को जीवंत कर दिया। एक जुलाई 1989 कोह ही भगवान श्री राम लला विराजमान नाम से अदालत में पांचवा मुकदमा दायर कर दिया गया। नौ नवम्बर 1989 के प्रधानमंत्री राजीव गांधी ने विवादित ढांचे के पास शिलान्यास पर सहमति जताई।और 25 सितम्बर 1989 को सोमनाथ से अयोध्या तक की अयोध्या में श्री राम मंदिर निर्माण के लिए राष्ट्रीय जागरण अभियान रथ यात्रा शुरू की। नवम्बर 1990 में बिहार के मुजफ्फरपुर जिले में आडवाणी की रथयात्रा को रोक दिया गया। तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने इस आंदोलन की हवा निकाल दी। अयोध्या मस्जिद के आसपास नवम्बर 1991 में यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने विवादित ढांचे के आसपास की 2.77 एकड़ जमीन को कब्जे में ले लिया।और श्री राम मंदिर निर्माण आंदोलन की अगुवाई करते हुए भाजपा के फायरब्रांड नेता लालकृष्ण आडवाणी ने अयोध्या चलो अभियान को आरंभ किया। और छह दिसंबर 1992 को हजारों मंदिर समर्थकों ने बाबरी मस्जिद को तोड़कर ढाह दिया। बाबरी विध्वंस के साथ ही अफरा तफरी में न अस्थायी राम मंदिर का निर्माण कर दिया गया। इस घटना के साथ ही केंद्र की नरसिम्हा राव सरकार ने यूपी सहित भाजपा की तीन राज्यों की सरकार को भंग कर दिया। वही 1990 में आडवाणी की बिहार में गिरफ्तारी के विरोध में केंद्र की तत्कालीन विश्वनाथ प्रताप सिंह की सरकार से भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले लिया और उसके बाद वीपी सिंह की सरकार गिर गयी थी।- 16 दिसंबर 1992 को ही बाबरी विध्वंस के बाद गठित लिब्राहन आयोग ने इसकी जांच आरंभ की। प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के कार्यकाल में अप्रैल 2002 में तीन जजों की नियुक्ति पर पीठ गठित की गई। इलाहबाद हाईकोर्ट के निर्देश पर भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग ने जमीन की खुदाई करके मंदिर के अवशेषों का पता लगाने की पहल की। सितम्बर 2003 में विधवंस के लिए जिम्मेदार सात नेताओं को बुलाया और सुनवाई को अंतिम रूप देने की पहल की। 2009 में लिब्राहन आयोग ने अपनी रिपोर्ट सौंपी। बाबरी मस्जिद विध्वंस के 17 साल के बाद इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने विवादित ढांचे पर अपना फैसला सुना दिया। बाबरी मस्जिद परिसर को तीन हिस्सों में बांट दिया गया। श्री राम मंदिर निर्माण के अलावा सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़ा को हिस्सेदार बनाया गया। मई 2003 में सीबीआई ने विध्वंस के लिए आडवाणी के खिलाफ पूरक आरोपपत्र दाखिल किया। तो तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई ने विवादित ढांचे के पास मंदिर निर्माण के लिए विहिप की विधेयक लाने की मांग के नकार दिया। जुलाई 2004 में शिवसेना के संस्थापक बाल ठाकरे ने विवादित स्थल पर 1857 के पहले शहीद मंगल पाण्डेय के नाम पर एक राष्ट्रीय संग्रहालय स्थापित करने का सुझाव दिया, जिसे नकार दिया गया।—-+ बीच बीच में ढेरों घटनाओं के दौरान यूपी सचिवालय से कुछ दस्तावेज गायब हो गए। दिल्ली सुप्रीम कोर्ट में इस मुकदमे के आने के लगभग डेढ़ दशक के बाद भी पीठ बेंच और जजों के बदलने का सिलसिला जारी है मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्रा के समय भी सुनवाई होती रही,मगर सब अधर में लटका रहा। अक्टूबर में सुप्रीम कोर्ट के नए मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने अब तक तीन तारीख़ में सुनवाई की। अक्टूबर में पहली बार जनवरी में तारीख दे दी। चार जनवरी को इसकी सुनवाई दस जनवरी से शुरू करने का तारीख दे दिया। और आज़ दस जनवरी के पांच सदस्यीय जजों की पीठ में शामिल एक जज यूयू ललित के पहले यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के एक मुकदमे में वकील रहने के इल्ज़ाम पर मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई ने आज़ की सुनवाई को चौथी बार 29 जनवरी का तारीख देकर मामले की सुनवाई को फिर अगली तारीख दे दी। इस मामले में 85 गवाहों 88 हजार पन्नों के कई भाषाओं में दस्तावेजों का गोदाम है। तारीख़ पे तारीख पे तारीख से देश भर में असंतोष है। अभी भी कागजों के अनुवाद की मांग है। देखें तारीखों के इस अंतहीन सफर का अंतिम फैसला कब तक संभव है,,? या अभी भी इसको तारीखों के जंजाल में फंसाकर फिर तारीख पे तारीख पे तारीख की ही प्रतीक्षा करनी होगी। |