नयी दिल्ली । लोकसभा चुनाव 2017 सामने हैं और प्रधानमंत्री नरेन्द्र दामोदर भाई मोदी की नजर नयी सदी में पैदा हुए बच्चों पर हैं, जो पहली बार मतदाता बनकर मतदान करेंगे।
करीब चार करोड़ यंग वोटरों पर चारा डाला जा चुका है। पहली बार वोट डालने वालों के लिए नया जुमला है माई फर्स्ट वोट फॉर पीएम मोदी। पीएम मोदी वंस मोर। वोट फॉर मोदी। पीएम मोदी फॉर मिडल क्लास और मोदी वन चांस मोर। लोकसभा चुनाव में खासकर यंग वोटरों को पटाने के लिए इन जुमलों की बस अगले माह से बारिश होने वाली है। भारतीय जनता पार्टी के इन जुमलों की गुनगुनाहट से मतदाताओं को लुभाने मोहित करने की तैयारी को फाइनल कर दिया गया है।
: लोकसभा चुनाव से कोई छह माह पहले अगस्त सितम्बर से ही भाजपा खेमे में जुमलों की तलाश चालू हो गयी थी। दिल्ली मुंबई बंगलुरू अहमदाबाद सहित देशभर के आठ शहरों में जुमलों की तलाश करके अच्छे दिन आएंगे सा मोहक और कैची जुमले की तलाश को सर्वोच्च प्राथमिकता पर रखा गया। खासकर लोकसभा चुनाव 2014 के तकरीबन पांच साल होने के बावजूद नागरिकों के मन में अच्छे दिन आएंगे की धमक और गूंज बनी है। और इस बार भी मोदी सरकार कुछ इसी तरह के जादुई जुमले के लिए सिर खपायआ जा रहा है और तमाम व्यस्तताओं के बावजूद पीएम सभी जुमलों की निजी स्तर पर निरीक्षण और संपादन भी करते हैं।
पिछले सप्ताह दिल्ली में सभी कंटेंट कम्पेनर और स्क्रिप्ट लेखकों को बुलाया गया। जहां पर इनको भावी रणनीति योजनाओं की संभावित जानकारी दी गयी। इन स्क्रिप्ट और कंटेंट लेखकों के कंटेंट की समीक्षा करने के बाद ही प्रधानमंत्री की ओर से माई फर्स्ट वोट फॉर पीएम मोदी को पंच लाईन जुमले की तरह प्रचारित किया जाएगा। ता कि यंग वोट को कमल के संग करना संभव हो सके। माडल क्लास वोटरों को प्रधानमंत्री मोदी के संग जोड़ने के लिए भी पीएम मोदी फॉर मिडल क्लास वोटर को काफी पसंद किया जा रहा है। मोटे तौर पर राष्ट्रीय और क्षेत्रीय स्तर पर अलग अलग जुमलों को स्वरबद्ध किया गया है। सूत्रों के अनुसार 35-40 जुमलों को तैयार किया जा चुका है और उसके प्रभाव और रोचकता की कई स्तर पर परीक्षण का दौर संचालित है। जिसे अगले माह या मार्च के आरंभ में सोशल मीडिया से लेकर तमाम संचार माध्यमों के मार्फत प्रचारित और प्रसारित करने का दौर शुरू होगा।
जानकार सूत्रों ने नाम जाहिर नहीं करने की शर्त पर बताया कि गोपनीयता उस बार सोशल मीडिया को धारदार तरीके से अपनी बात प्रसारित करने का मुख्य औजार बनाया जाएगा। आंकड़ों की भाषा में बात करें तो 2014 में देश भर में केवल 56 करोड़ मोबाइल और मात्र 14 करोड़ मोबाइल में इंटरनेट था। साल 2018 के अंत तक मोबाइलधारकों की तादाद 110 करोड़ है और 66 करोड मोबाइल में इंटरनेट की सेवा संचालित है। गौरतलब है कि 2014-15 में इंटरनेट भी काफी महंगा यानी एक जीबी डाॅटा की सुविधा 299 रुपए में सुलभ होता था। जबकि पांच साल में संचार क्रांति का यह हाल है कि आज 399 रुपए में 84 दिनों तक अनलिमिटेड बातचीत के अलावा रोजाना डेढ़ जीबी डॉटा फ्री में सुलभ हो रहा है। इंटरनेट मोबाइल और अनलिमिटेड साधनों के चलते मोबाइल ही यूथ की जीवनरेखा बनकर संग हो गया है। और इसी मोबाइल को भाजपा अपना चुनावी लाइफ लाइन बनाने की तैयारी में जुटी है।
उल्लेखनीय है कि पिछले सप्ताह एकाएक कांग्रेस की तरफ़ से प्रधानमंत्री मोदी को घेरने के लिए प्रियंका गांधी वाड्रा को मैदान में बतौर पूर्वी यूपी का महासचिव बनाकर उतारा गया है। मगर इसके पीछे वाराणसी से सर्वदलीय विपक्षी प्रत्याशी बनाने की पूरी संभावना है। अब देखना है कि प्रियंका गांधी के आगमन के बाद भाजपा और प्रधानमंत्री मोदी की रणनीति में क्या बदलाव होता है। देखते है कि अच्छे दिन आएंगे की तर्ज पर माई फर्स्ट वोट फॉर पीएम मोदी और मिडल क्लास वोट फॉर पीएम मोदी। जैसे जुमलों के संग इंडियन मिडल क्लास का वोटर कितना और किस तरह प्रधानमंत्री मोदी और बीजेपी का बेड़ा पार लगाएगी?