अरुणिमा……….

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एम.एल. नत्थानी।
भोर की प्रथम अरुणिमा
से प्रकृति नर्तन करती है
सूरज के आरुणि सारथी
ये तम का मर्दन करती है

सजग प्रहरी प्रकृति में ये
सूर्योदय से रश्मि प्रभा है
ब्रम्हांड की विशालता से
सृष्टि उत्सव की सभा है।

सूरजमुखी उष्णता पाने
स्नेह से निहारती रहती है
कमल खिलें अचानक ही
सूर्य तपिश होती रहती है

रात की रानी का हृदय ये
सूर्यदेव ने कभी तोड़ा था
शायद इसलिए ही केवल
रात से रिश्ता जोड़ा था।

कृतज्ञता से भाव विभोर
हृदय पुष्प भी सुगंधित है
अनंत कृपा परमेश्वर की
सुखद जीवन पुलकित है

एम.एल. नत्थानी

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