इंद्र वशिष्ठ
दिल्ली पुलिस में एसएचओ के स्तर पर बड़ा फेरबदल किया गया है। पुलिस मुख्यालय द्वारा कल 55 एसएचओ के तबादला / तैनाती का आदेश जारी किया गया। 55 एसएचओ में से 44 ऐसे हैं जिन्हें एसएचओ के पद पर पहली बार तैनात किया गया है।
आठ महिला इंस्पेक्टरों को भी एसएचओ के रूप में तैनात किया गया है। अब दिल्ली में एक महीने में ही महिला एसएचओ की संख्या 9 हो गई हैं।
34 मठाधीश एसएचओ को हटाया-
कल जारी आदेश में 5 साल से अधिक समय तक एसएचओ के पद पर रह चुके 34 एसएचओ को हटा दिया गया है। उनका तबादला पुलिस की अलग-अलग इकाइयों में कर दिया गया है। इनमें 18 इंस्पेक्टर का सुरक्षा प्रकोष्ठ में तथा आठ का तबादला पुलिस प्रशिक्षण कॉलेज में किया गया है।
पुलिस प्रवक्ता का कहना है कि यह फेरबदल अदालतों सहित राजधानी में उच्च जोखिम वाली
स्थापना(इंस्टालेशन) की सुरक्षा को संभालने के लिए एक समर्पित सुरक्षा बटालियन बनाने के पुलिस के प्रयासों को मजबूत करेगा । इसी तरह, एसएचओ के रूप में क्षेत्र(फील्ड) के अनुभव वाले आठ अनुभवी इंस्पेक्टरों की पीटीसी में नियुक्ति से प्रशिक्षण और मानव संसाधन विकास को बड़ा बढ़ावा/सहारा मिलेगा।
आठ महिला एसएचओ-
आठ महिला एसएचओ हैं: अल्पना शर्मा, इंस्पेक्टर पूनम पारीक, इंस्पेक्टर डोमिन्का पुर्ती, इंस्पेक्टर रोशलिन पूनम मिंज, इंस्पेक्टर हरजिंदर कौर, इंस्पेक्टर प्रतिभा शर्मा, इंस्पेक्टर कामिनी गुप्ता और सपना दुग्गल।
65 को लगाया-
पुलिस प्रवक्ता चिन्मय बिश्वाल के मुताबिक
पिछले एक महीने में एसएचओ की 79 नई पोस्टिंग में से 65 इंस्पेक्टर ऐसे हैं जिन्हें पहली बार एसएचओ बनाया गया है। यह थानों के प्रबंधन और कामकाज में नया दृष्टिकोण और ऊर्जा लाएगा।
14 एसएचओ को हटाया।
इससे पहले 20-9-2021 को पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने 14 एसएचओ को थानों से हटाया था।
23 इंस्पेक्टरों को एसएचओ के पद पर तैनात किया गया। इनमें से एक शिवानी मलिक को हौजखास एसएचओ नियुक्त किया गया।
एक एसएचओ का थाना बदला गया था।
सालों से थानों में जमे राजौरी गार्डन एसएचओ अनिल शर्मा और कीर्ति नगर एसएचओ देवेंद्र यादव को भी हटा दिया था।
राकेश अस्थाना द्वारा दो महीने के भीतर 9 एसएचओ को निलंबित/लाइन हाजिर भी हाजिर किया जा चुका है।
कमिश्नर की प्राथमिकता-
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पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना की नीयत और प्राथमिकता अगर वाकई बेसिक पुलिससिंग हैं तो उन्हें अपराध दर्ज न करने या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा को बंद कराना चाहिए। यहीं एकमात्र रास्ता है जिससे कि अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है।
भ्रष्टाचार का बोलबाला-
अपराध को दर्ज न करना,अपराधियों को संरक्षण देना सबसे बड़ी समस्या है। अवैध शराब का धंधा, सट्टेबाजी, अवैध पार्किंग, अवैध निर्माण, विवादित संपत्ति ,पैसे के लेन देन के विवाद के मामले आदि भी पुलिस की कमाई का सबसे बड़ा जरिया माने जाते हैं। इसी वजह से पुलिस में भ्रष्टाचार का बोलबाला है।
जिन कारणों से पुलिस कमिश्नर ने अनेक एसएचओ को निलंबित या लाइन हाजिर किया है वह ही असली समस्या और भ्रष्टाचार की जड़ भी है। कमिश्नर अगर वाकई पुलिस में कोई सुधार करना चाहते हैं तो उन्हें इस जड़ पर ही वार करना चाहिए।
आंकड़ों की बाजीगरी बंद हो-
अपराध को कम दिखाने के लिए मामलों को दर्ज न करना या हल्की धारा में दर्ज करने की परंपरा को बंद करना चाहिए।
अपराध के सभी मामलों को सही तरह दर्ज किए जाने से ही अपराध और अपराधियों पर अंकुश लगाया जा सकता है। इसके अलावा दूसरा कोई रास्ता नहीं है।
लेकिन अपराध को दर्ज न करना एसएचओ से लेकर कमिश्नर/आईपीएस अफसर तक सभी के अनुकूल है।
आंकड़ों की बाजीगरी से अपराध कम होने का दावा कर वह खुद को सफल अफसर दिखाते हैं। जबकि अपराध को दर्ज न करके पुलिस एक तरह से अपराधी की मदद करने का गुनाह ही करती है।
अपराध सही दर्ज होने पर ही अपराध और अपराधियों की सही तस्वीर सामने आएगी। तभी अपराध और अपराधियों से निपटने की कोई भी योजना सफल हो सकती है। अभी तो आलम यह है कि मान लो कोई लुटेरा पकड़े जाने पर सौ वारदात करना कबूल कर लेता है लेकिन उसमें से दर्ज तो दस ही पाई जाएगी । अगर सभी सौ वारदात दर्ज की जाती तो लुटेरे को उन सभी मामलों में जमानत कराने में ही बहुत समय और पैसा लगाना पड़ता। लुटेरा ज्यादा समय तक जेल में रहता।
इस तरह अपराध और अपराधी पर काबू किया जा सकता है।
अफसरों पर दबाव जरूरी-
अपराध के सभी मामले दर्ज होंगे तो तभी एसएचओ,एसीपी और डीसीपी पर अपराधियों को पकड़ने का दबाव बनेगा।
एसएचओ पर जब मामले दर्ज करने और अपराधियों को पकड़ने का पुलिस का मूल काम करने का दबाव होगा, तो ऐसे में वह ही एसएचओ लगेगा जो वाकई मूल पुलिसिंग के काबिल होगा।
मूल काम ही नहीं करती पुलिस-
अभी तो आलम यह है कि लूट,स्नैचिंग, मोबाइल /पर्स चोरी आदि के ज्यादातर मामले दर्ज ही नहीं किए जाते। पुलिस चोरी गए वाहन को तलाश करने की कोई कोशिश नहीं करती। आलम तो यह है कि वाहन चोरी की सूचना पर पुलिस मौके पर भी नहीं जाती।
आईपीएस भी यह कह कर पल्ला झाड़ लेते है कि वाहन मालिक को बीमा की रकम तो मिल ही जाती है।
आईपीएस अफसरों के ऐसे कुतर्क से उनकी काबिलियत पर सवालिया निशान लग जाता। पुलिस का काम अपराधियों को पकड़ना होता है। लेकिन पुलिस अपना मूल काम ही नहीं करती। इसीलिए लुटेरे और वाहन चोर बेखौफ हो कर अपराध कर रहे है।
पुलिस सिर्फ वसूली के लिए है?-
पुलिस अगर अपराध ही सही दर्ज न करे या अपराधियों को पकड़ने की कोशिश ही न करें तो क्या पुलिस सिर्फ़ अवैध वसूली,भ्रष्टाचार और लोगों से बदसलूकी करने के लिए ही है।
ऐसे में तो अब एसएचओ की नौकरी आराम से वसूली करने और अपने आकाओं की फटीक करने की ही रह गई लगती है।
राकेश अस्थाना के पास मौका है-
पुलिस कमिश्नर राकेश अस्थाना ने कहा कि बेसिक पुलिसिंग उनकी प्राथमिकता है। राकेश अस्थाना की विवादों और भ्रष्टाचार के आरोपों के कारण एक अलग छवि बनी हुई है। लेकिन अब राकेश अस्थाना के पास अपनी पेशेवर काबिलियत की छाप छोड़ने का मौका है।