समग्र समाचार सेवा
देहरादून, 27 जनवरी। पंजाब में कैप्टन अमरिंदर सिंह और नवजोत सिंह सिद्धू के जंग को शांत कर संकटमोचक बनने की कोशिश कर रहे हरीश रावत जब सफल नहीं हुए तो वहां की कमान हरीश चौधरी को दी गई। ऐसा लगा हरीश रावत में शायद डीके शिवकुमार वाली बात नहीं है और उन्हें किनारा कर दिया जाएगा। लेकिन सोनिया गांधी ने कांग्रेस के इस वफादार सिपाही को वापस उत्तराखंड भेजकर प्रचार समिति का मुखिया बना दिया। पूर्व सीएम और इस बार भी दावेदार हरीश रावत को लगा कि देवभूमि में पार्टी पर उनका सिक्का चलेगा। दाल गली नहीं। भारतीय जनता पार्टी से आयात हुए हरक सिंह रावत ने उनकी टेंशन और बढ़ा दी। हालत ऐसी हो गई कि उन्हें उत्तराखंड विधानसभा चुनाव में मनमाफिक सीट तक नहीं मिली। पहली लिस्ट में रामनगर की सेफ सीट हासिल तो कर ली लेकिन उनके राजनैतिक शिष्य और पूर्व विधायक रणजी सिंह रावत बागी हो गए। साफ कह दिया यहीं से लड़ूंगा सल्ट से नहीं। वो भी तब जब वो यहां से हारे हुए उम्मीदवार हैं। पिछले चुनाव में भाजपा के दीवान सिंह बिष्ट ने उन्हें हरा दिया था। चेले की दंबगई देख कांग्रेस ने आधी रात नई लिस्ट जारी कर दी। हरीश रावत को लालकुंआ भेज दिया।
हां, उनकी नाराजगी कम करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने उनके उस फेसबुक पोस्ट का मान रखा जिसमें उन्होंने लिखा था ‘अब थोड़ा मुझे अपने बेटे-बेटियों, जिन्होंने मेरी ही गलतियों वश राजनीति की ओर कदम बढ़ा दिए या मेरी ढिलाई समझ लीजिए, प्रोत्साहन तो मैंने कभी दिया नहीं, लेकिन मेरी ढिलाई के कारण वे भी इस काम में लग गए, उनकी चिंता होती है, क्योंकि उनके प्रति भी मेरा दायित्व है।’
सीएम पद के दावेदार हरीश रावत के परिजनों को टिकट का विरोध हो रहा था। लेकिन नई लिस्ट में हरिद्वार ग्रामीण सीट से उनकी बेटी अनुपमा रावत को कांग्रेस का उम्मीदवार बना दिया गया है। शायद इससे हरीश रावत की नाराजगी दूर हो जाए। वहीं रणजीत सिंह रावत को भी रामनगर सीट नहीं दी गई है ताकि कोई गलत मैसेज न जाए। पार्टी ने उन्हें सल्ट सीट से ही टिकट दिया है।