यूक्रेन पर रूसी हमला और भारत की द्विविधा

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त्रिदीब रमण
त्रिदीब रमण

त्रिदीब रमण
‘वक्त की चुनौतियां भीमकाय हैं
और हमारे हौंसले रेत पर रेंगती चीटियों से
हर तरफ शोर बेशुमार है
और हमारी आत्मा गूंगी ऋचाओं सी
कुछ बदलना है तो अपने नपुंसक विचारों को बदलो
क्रांति कब बिकती है किसी बनिए की दुकान पर’
नेहरू काल को नेस्तनाबूद करने के भगवा इरादे इस दफे के यूक्रेन पर रूसी हमले के दौरान हांफता हुआ नज़र आया। ’मॉस्को लाइन’ पर कहीं न कहीं पीएम मोदी भी नेहरू और इंदिरा गांधी की लाइन लेते नज़र आए। याद कीजिए जब 1956 में हंगरी के जनविद्रोह को कुचलने के लिए सोवियत संघ ने ताबड़तोड़ वहां अपने टैंक भेजे थे तो नेहरू की जुबां से भी रूसी भर्तसना के एक बोल नहीं फूटे थे, उसी प्रकार 1968 में चेकोस्लोवाकिया पर सोवियत सेना ने हमले की और 1973 में अफगानिस्तान पर सोवियत हमले की तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने कोई निंदा नहीं की थी, हमेशा स्वाधीनता और संप्रभुता के लिए ललकार भरने वाले भारत की इस बार संयुक्त राष्ट्र में चुप्पी क्या साबित करती है? खैर छोड़िए इन गैर जरूरी बातों को, हम आगे बढ़ते हैं। यूक्रेन में फंसे हजारों छात्र-छात्राओं को सकुशल स्वदेश लाने के लिए भारत सरकार ने ’ऑपरेशन गंगा’ चलाया और मोदी सरकार के 24 मंत्री इस कार्य में जोत दिए गए। इसी क्रम में नागरिक उड्डयन मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया भारतीय छात्र-छात्राओं की भारत वापसी के लिए यूक्रेन की सीमा से लगे रोमानिया पहुंचे तो उन्होंने फंसे छात्रों के समक्ष अपना जोरदार उद्बोधन पेश किया-’हम आपकी सुरक्षा और बचाव के लिए दिन-रात लगे हैं, प्रधानमंत्री जी हर पल आपकी चिंता कर रहे हैं और वे आप को हर तरह की सुविधा मुहैया करा रहे हैं।’ यह सुनते ही वहां उपस्थित रोमानिया के मेयर एकदम से उखड़ गए और सिंधिया को डपटते हुए बोले-’आप नहीं, हम कर रहे हैं सब, आपके लोगों को भोजन और शेल्टर मुहैया करा रहे हैं, इनका ख्याल रख रहे हैं…’ खैर सिंधिया ने किसी तरह बात संभाली। वहीं वहां मौजूद छात्र-छात्राएं भी आक्रोशित नज़र आ रहे थे, उनका कहना था-’आप की तारीफ तब होती जब आप हमें सीधे कीव से निकालते, आपने हमसे कह दिया कि बॉर्डर तक अपने आप पहुंच जाओ।’ कुछ ऐसा ही वाक्या जनरल वीके सिंह के साथ हुआ, वे भी एक विमान लेकर फंसे छात्रों की देश वापसी के लिए पहुंचे थे। वहां पहुंच कर उन्होंने मौजूद छात्र-छात्राओं से सबसे पहले ’भारत माता की जय’ के नारे लगवाए, माहौल में भी खूब जोश दिखा। पर जैसे ही उन्होंने मोदी के जयकारे लगवाने शुरू किए माहौल में एक असहज़ सन्नाटा पसर गया। अकेले माइक थाम जनरल साहब ने मोदी की जयकार की।

संघ की प्रतिनिधि सभा कर्णावती में
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की प्रतिनिधि सभा की बैठक 11 से 13 मार्च को गुजरात के कर्णावती में आहूत हो रही है। बैठक के एजेंडा के मुताबिक इसका लक्ष्य 2025 में संघ के 100 साल पूरे होने की उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रमों की रूपरेखा तय करनी है। पर इस बैठक के समय पर भी गौर फर्माइए कि 10 मार्च को पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजे आ जाएंगे और उसके ठीक एक रोज बाद यह बैठक रखी गई है तो इससे क्या समझा जाए कि इन चुनावों में भाजपा के प्रदर्शन की समीक्षा भी हो सकती है? या 2024 के आम चुनाव को लेकर भी कोई चर्चा हो सकती है? इस पर संघ के एक वरिष्ठ पदाधिकारी खुलासा करते हैं कि ‘आमतौर पर ऐसी बैठकों में हम भाजपा को लेकर अपने रिश्तों का मंथन नहीं करते और ना ही विशुद्ध चुनावी बात करते हैं। संघ नेतृत्व ऐसी बातें अक्सर बंद कमरे में करता है जिसमें गिने-चुने संघ के शीर्ष नेताओं की मौजूदगी रहती है।’ ये संघ नेता बताते हैं कि प्रतिनिधि सभा की बैठक में संघ के अपने कार्यकलापों की समीक्षा होगी और आगे का रोडमैप तैयार किया जाएगा। खास कर संघ के 100 साल के उत्सव को भव्य और प्रभावी बनाने की बात होगी। जैसे इस समय संघ देश के 55 हजार स्थानों पर मंडल स्तर तक अपनी शाखाएं संचालित करता है, इन शाखाओं की संख्या दोगुनी करने का लक्ष्य रखा जा सकता है। अपने शताब्दी वर्ष में संघ का लक्ष्य 1 लाख केंद्रों के विस्तार का है। प्रतिनिधि सभा की इस बैठक में देशभर से संघ के 1500 लोग जुट सकते हैं, इससे पहले की बैठक में कोरोना महामारी के चलते महज़ 500 सदस्य ही आ पाए थे। समझा जाता है कि संघ की इस बैठक में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा और संगठन महासचिव बीएल संतोष भी उपस्थित रह सकते हैं। इससे इतना तो समझा ही जा सकता है कि जाने-अनजाने संघ और भाजपा के बदलते रिश्तों पर भी चर्चा हो सकती है। बैठक के एजेंडा में हिजाब का मुद्दा और लड़कियों की शादी की उम्र 21 वर्ष किए जाने पर भी चर्चा हो सकती है। संघ भले ही दो-तीन सालों में 100 का होने जा रहा है, पर इन दिनों उसका जोश हिलौरे मार रहा, वह और युवा हो गया है।

क्या पीके मिश्रा की जगह ले सकते हैं जे.एन सिंह
खबर खूब जोर से चली है कि पीएमओ के सर्वशक्तिमान पीके मिश्रा की रूखसती होने वाली है, उन्हें किसी महत्वपूर्ण राज्य का गवर्नर बनाए जाने की चर्चा है। वे 74 साल के हो गए हैं, इन दिनों उनकी तबियत भी थोड़ी नासाज़ चल रही है, तो उनकी उम्र और स्वास्थ्य को देखते हुए उन्हें पीएमओ से बाहर का रास्ता दिखाया जा सकता है। सूत्र बताते हैं कि मिश्रा के जाने की अटकलों को इसीलिए भी पंख लग रहे हैं कि उनके बेहद खासमखास रहे भास्कर खुल्बे को पीएमओ में एक्सटेंशन नहीं मिला। सूत्र यह भी बताते हैं कि पीके मिश्रा की जगह लेने के लिए डॉ. जगदीप नारायण सिंह के नाम की चर्चा है। डॉ. सिंह नवंबर 2019 में गुजरात के चीफ सेक्रेटरी के पद से रिटायर हुए हैं। चर्चा तो यह भी चल रही है कि राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार अजित डोवल को भी किसी राज्य का गवर्नर बना कर भेजा जा सकता है।

क्या यूपी में फिज़ा बदल रही है?
कहा जाता है कि बाबूडम यानी कि सरकारी अधिकारीगण बदलती हवा का रुख सबसे पहले भांप लेते हैं। इन दिनों लखनऊ का लोक निर्माण विभाग उस बंगले की मरम्मत और रंगाई-पुताई में जुटा है, जिस बंगले में अखिलेश यादव 2012-17 के बीच बतौर सीएम रहा करते थे। मरम्मत का काम चुपचाप चल रहा है, कुछ इतना चुपचाप कि इस बंगले के बाहर ताला लटका दिया गया है, पर अंदर मजदूर दिन-रात काम रह रहे हैं। इसके अलावा अखिलेश के बतौर सीएम जो पसंदीदा प्रोजेक्ट थे, 2017 में योगी सरकार आने के बाद जिन्हें ठंडे बस्ते में डाल दिया गया था, उन्हें अब वहां से निकाल कर धो-पोंछ कर चमकाया जा रहा है। जैसे जनेश्वर मिश्र पार्क, गोमती रिवर फ्रंट आदि-आदि। अयोध्या के डीएम के आवास की नाम पट्टी भी इन दिनों सोशल मीडिया पर खूब चमक रही है। अयोध्या के डीएम की नियुक्ति यूपी चुनाव से दो महीने पहले हुई थी, पर वहां पुराने डीएम का परिवार ही डीएम के सरकारी आवास में रह रहा था और स्वयं नवनियुक्त डीएम पीडब्ल्यूडी के गेस्ट हाउस में रह रहे थे। ऐसे में डीएम की ‘नाम पट्टी’ पहले हरी की गई, इस पर सोशल मीडिया पर जब खूब बवाल कटा तो पहले इसे हरे से लाल किया गया, और अब इसे केसरिया कर दिया गया है।

क्या दिल्ली नगर निगम चुनाव टलेंगे?
सूत्र बताते हैं कि दिल्ली के आसन्न नगर निगम चुनाव जो 12 अप्रैल को होने थे उसे 6 महीने के लिए टाला जा सकता है। और इस मुद्दे पर दिल्ली के दो प्रमुख राजनैतिक दल यानी भारतीय जनता पार्टी और आम आदमी पार्टी में सहमति बन चुकी है, पर इन दोनों दलों ने इस मामले में कांग्रेस को अंधेरे में रखा है। इस बात का सबसे पहले खुलासा स्टैंडिंग कमेटी के पूर्व डिप्टी चेयरमैन विजेंद्र यादव ने किया, यादव का कहना है कि ’तीनों निगमों को पहले एक किया जाए फिर इसके छह महीने बाद ही यहां चुनाव हो सकते हैं।’ सूत्र बताते हैं कि अब निगम के चुनाव सितंबर माह में हो सकते हैं। इस बारे में दिल्ली के आला भाजपा नेताओं की 12 मार्च को एक अहम बैठक है जिसमें चुनाव टालने का निर्णय लिया जा सकता है। 2012 में ही निगम को तीन फाड़ कर ईस्ट, साउथ और नार्थ एमसीडी बनाया गया था, मंशा थी कि दिल्ली वालों के काम आसानी से हों, पर हुआ उल्टा, 12 जोन वाली एमसीडी में पहले एक कमिश्नर हुआ करते थे, जो बंटवारे के बाद तीन हो गए। लोगों की भागदौड़ भी बढ़ गई और सरकारी खजाने पर बोझ भी क्योंकि स्टॉफ बढ़ गए और सैलरी भी, सैलरी नहीं मिलने से यह मामला कोर्ट तक जा पहुंचा। अब भाजपा और आप मिल कर इस गलती को सुधारना चाहते हैं।

अपनों से ही बेदम भगवा रंग
यूपी चुनाव का अंतिम और सातवां चरण 7 मार्च को समाप्त हो जाना है, पर कई सीटें ऐसी रही जहां भाजपा को विरोधी पार्टियों से नहीं बल्कि अपने ही लोगों से सीधी टक्कर मिली। गोरखपुर की चौरा-चौरी सीट इसका एक नायाब उदाहरण रहा। इस सीट पर भाजपा के अधिकृत उम्मीदवार सरवन कुमार हैं जो निषादों के एक बड़े नेता डॉ. संजय निषाद के पुत्र भी हैं। हैरानी की बात देखिए इन्हें टक्कर भाजपा से ही निष्कासित निर्दलीय उम्मीदवार अजय कुमार सिंह ’टप्पू’ से मिल रही है। एक बात और टप्पू जहां भी अपनी चुनावी सभाओं में गए, वहां नारा लगा-’योगी-टप्पू भैया जिंदाबाद!’ ऐसे ही पूर्वांचल के मैदान में कोई 15 उम्मीदवार ऐसे हैं जिनका नाता भाजपा से रहा है और वे भाजपा को ही डेंट लगा रहे हैं। माना जाता है कि ये भाजपा के साथ ठीक वैसा ही हो रहा है जो कल्याण सिंह के बागी हो जाने के दौरान हुआ था। जब मुख्यमंत्री कल्याण सिंह ने भाजपा के अधिकृत उम्मीदवारों के खिलाफ मैदान में अपने उम्मीदवार उतार दिए थे। जिससे 1998 के लोकसभा चुनाव में 58 सीटें जीतने वाली भाजपा 1999 के 13वें लोकसभा चुनावों में मात्र 29 सीटों पर सिमट आई। अयोध्या में 60 हजार करोड़ रुपए लगाने के बाद भी मोदी सरकार के लिए अयोध्या-काशी में झटका है। काषी कॉरिडोर को लेकर भी काशी के स्थानीय लोगों में नाराज़गी है। वाराणसी दक्षिण जहां काशी कॉरिडोर बना है वहां भाजपा को कड़ी टक्कर मिल रही है।

…और अंत में
पिछले तीन महीनों में देश में पेट्रोल डीजल के दाम नहीं बढ़े हैं, पर 7 मार्च को यूपी के अंतिम चरण के मतदान के बाद पेट्रोल डीजल के दामों में 10 में 20 रूपए तक की अप्रत्याशित मूल्य वृद्धि हो सकती है। तेल कंपनियां और सरकार इसका ठीकरा रूस-यूक्रेन के युद्ध पर फोड़ सकती हैं। खाद्य तेलों के मूल्य में तकरीबन 15 फीसदी की बढ़ोतरी हो चुकी है, क्योंकि अदानी विल्मर ऑयल अपनी मांग के 60 फीसदी की खरीद यूक्रेन से करता है, जो इन दिनों युद्ध की विभिषिका झेलने को अभिशप्त है।
(त्रिदीब रमण-न्यूज ट्रस्ट ऑफ इंडिया)

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