पार्टियों को दलगत राजनीति से ऊपर उठना चाहिए और ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना से यह विचार करना चाहिए कि आम देशवासियों के विकास और कल्याण के लिए क्या आवश्यक है: राष्ट्रपति कोविंद
भारत के राष्ट्रपति ने संसद के केंद्रीय कक्ष में विदाई समारोह में लिया भाग
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 23जुलाई। भारत के राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद 23 जुलाई, शनिवार को संसद के केंद्रीय कक्ष में विदाई समारोह में सम्मिलित हुए।
राष्ट्रपति ने इस अवसर पर अपने संबोधन में कहा कि वह राष्ट्रपति के रूप में देश की सेवा करने का अवसर देने के लिए भारत के लोगों का हमेशा आभारी रहेंगे। सर्वशक्तिमान ईश्वर जो चाहते थे उसे सभी निर्वाचित प्रतिनिधियों के सहयोग के बिना पूरा नहीं किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि अपने कार्यकाल के दौरान उन्होंने विभिन्न मंचों पर उनके साथ अक्सर बातचीत की और सांसदों एवं अन्य क्षेत्रों के लोगों के कई प्रतिनिधिमंडल से भी मुलाकात की। इस दौरान उन्हें प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी और उनकी मंत्रिपरिषद के सदस्यों के साथ काम करने का अवसर भी मिला। उनके द्वारा दिए गए विशेष सम्मान के लिए उन्होंने उन सभी का धन्यवाद किया। उन्होंने संसद की महान परंपराओं को जारी रखते हुए उसके संचालन के लिए उपराष्ट्रपति श्री एम. वेंकैया नायडू और लोकसभा अध्यक्ष श्री ओम बिड़ला को भी धन्यवाद दिया।
राष्ट्रपति ने कहा कि हमारे संविधान के अनुच्छेद 79 में राष्ट्रपति और दोनों सदनों से मिलकर बनी संसद का प्रावधान है। इस संवैधानिक प्रावधान को ध्यान में रखते हुए और उसमें अपनी भावना को पिरोते हुए वह राष्ट्रपति को संसदीय परिवार के अभिन्न अंग के रूप में देखते हैं। किसी परिवार की तरह इस संसदीय परिवार में भी मतभेद होना लाजमी है, वहां भी आगे की राह के बारे में अलग-अलग विचार हो सकते हैं। लेकिन हम एक परिवार हैं और राष्ट्र हित हमारी सर्वोच्च प्राथमिकता है। राजनीतिक प्रक्रियाएं पार्टी संगठनों के तंत्र के माध्यम से संचालित होती हैं, लेकिन पार्टियों को दलगत राजनीति से ऊपर उठना चाहिए और ‘राष्ट्र सर्वोपरि’ की भावना से यह विचार करना चाहिए कि देशवासियों के विकास और कल्याण के लिए कौन-कौन से कार्य आवश्यक हैं।
राष्ट्रपति ने कहा कि जब हम पूरे राष्ट्र को एक विशाल संयुक्त परिवार के रूप में देखते हैं तो हम यह भी समझते हैं कि कभी कभार मतभेद भी पैदा हो सकते हैं। इस तरह के मतभेदों को बातचीत के जरिये शांतिपूर्ण और सौहार्दपूर्ण ढंग से सुलझाया जा सकता है। विरोध प्रकट करने के लिए नागरिकों और राजनीतिक दलों के पास कई संवैधानिक रास्ते खुले हैं। आखिरकार, हमारे राष्ट्रपिता ने उस उद्देश्य के लिए सत्याग्रह के हथियार का इस्तेमाल किया था लेकिन उन्हें दूसरे पक्ष की भी उतनी ही चिंता थी। हमारे नागरिकों को अपनी मांगों के लिए दबाव बनाने और विरोध करने का अधिकार है लेकिन यह हमेशा शांतिपूर्ण गांधीवादी तौर-तरीकों से होना चाहिए।
राष्ट्रपति ने कहा कि जनसेवक के रूप में अपने और सरकारों के प्रयासों पर गौर करते समय हमें यह स्वीकार करना पड़ता है कि समाज के हाशिये पर जीवन यापन करने वाले लोगों के जीवन स्तर को बेहतर करने के लिए, हालांकि बहुत कुछ किया गया है, लेकिन अभी भी बहुत कुछ किया जाना बाकी है। देश धीरे-धीरे ही सही लेकिन सधे हुए कदमों से डॉ. अम्बेडकर के सपनों को साकार करने की दिशा में आगे बढ़ रहा है। राष्ट्रपति ने कहा कि वह मिट्टी से बने कच्चे घर में पले-बढ़े हैं लेकिन अब ऐसे बच्चों की संख्या काफी कम हो गई है जिन्हें आज भी उन कच्चे घरों में रहना पड़ता है जिनमें छत से पानी टपकता हो।आज अधिक से अधिक गरीब लोग पक्के घरों में स्थानांतरित हो रहे हैं और इसके लिए उन्हें आंशिक तौर पर सरकार से सीधा समर्थन मिला है। पीने का पानी लाने के लिए हमारी बहनों- बेटियों को मीलों पैदल चलना पड़ता था जो अब अतीत की बात होती जा रही है क्योंकि हमारा प्रयास है कि हर घर में नल से जल पहुंचे। हमने घर-घर में शौचालय भी बनवाए हैं जो स्वच्छ एवं स्वस्थ भारत के निर्माण की नींव डाल रहे हैं। सूर्यास्त के बाद लालटेन और दीया जलाने की यादें भी पुरानी हो रही हैं क्योंकि लगभग सभी गांवों को बिजली कनेक्शन उपलब्ध करा दिया गया है।
राष्ट्रपति ने कहा कि जैसे-जैसे हमारे देशवासियों की बुनियादी जरूरतें पूरी हो रही हैं, उनकी आकांक्षाओं में भी बदलाव आ रहा है। अब आम भारतीयों के सपनों को पंख लग गए हैं। यह बदलाव भेदभाव रहित सुशासन द्वारा ही संभव हो सका है। यह चौतरफा प्रगति बाबासाहेब अम्बेडकर की परिकल्पना के अनुरूप है।