समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 27जुलाई। सुप्रीम कोर्ट ने प्रवर्तन निदेशालय को प्रीवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत ईडी के मिले अधिकार को जायज ठहराया है। शीर्ष अदालत ने अपने फैसले कहा कि पीएमएलए कानून में बदलाव सही है और ईडी की गिरफ्तारी की शक्ति भी सही है। यानी ईडी के पास जितने भी अधिकार हैं, उसे सुप्रीम कोर्ट ने सही ठहरा दिया है। शीर्ष अदालत के इस फैसले को कांग्रेस के लिए बड़ा झटका माना जा रहा है। गौरतलब है कि कांग्रेस समेत कुल 242 याचिकाओं पर सुनवाई करते हुए सर्वोच्च अदालत ने यह फैसला सुनाया है। जस्टिन एएम खानविलकर, जस्टिस सीटी रविकुमार और जस्टिस दिनेश माहेश्वरी की पीठ ने यह फैसला सुनाया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि PMLA कानून में बदलाव सही है। सुप्रीम कोर्ट ने पीएमएलए कानून के तहत अपराध से बनाई गई आय,उसकी तलाशी और जब्ती, आरोपी की गिरफ्तारी की शक्ति और संपत्तियों की कुर्की जैसे PMLA के कड़े प्रावधानों को सही ठहाराया।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट के तहत किसी आरोपी की गिरफ्तारी गलत नहीं है। यानी शीर्ष अदालत ने ईडी के गिरफ्तारी के अधिकारी को बरकरार रखा है। गौरतलब है कि कांग्रेस ने आज एक प्रेस कॉन्फ्रेंस करके सुप्रीम कोर्ट से पीएमएलए एक्ट को खत्म करने की मांग की थी।
सुप्रीम कोर्ट ने साफ कहा कि ECIR जिसे एक तरह से एफआईआर की कॉपी माना जाता है। कोर्ट ने कहा कि इस कॉपी को आरोपी को देना जरूरी नहीं है। गिरफ्तारी के समय कारण बता देना ही ईडी के लिए पर्याप्त होगा।
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सेक्शन 50 के तहत बयान लेने और आरोपी को बुलाने की शक्ति का अधिकार भी सही है। सुप्रीम कोर्ट में 242 याचिकाओं पर सुनवाई हो रही है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मनी लॉन्ड्रिंग एक स्वतंत्र अपराध है। सेक्शन 5, सेक्शन 18, सेक्शन 19, सेक्शन 24 और सेक्शन 44 में जोड़ी गई उपधारा भी सही है। सुप्रीम कोर्ट ने इन 5 धाराओं को सही ठहराया है।
कोर्ट ने कहा कि हमने इस कानून की समीक्षा की है। शीर्ष अदालत ने कहा कि जांच अधिकारी को इस कानून में असीमित शक्तियां नहीं दी गई है।
पुलिस के दुरुपयोगा का आरोप
याचिकाकर्ताओं ने अपनी याचिका में कहा था कि जांच एजेंसियां प्रभावी रूप से पुलिस शक्तियों का प्रयोग करती हैं, इसलिए उन्हें जांच करते समय सीआरपीसी का पालन करने के लिए बाध्य होना चाहिए। इस मामले में कपिल सिब्बल, अभिषेक मनु सिंघवी जैसे कई वरिष्ठ वकीलों ने अपना पक्ष रखा है। सख्त जमानत की शर्त, गिरफ्तारी के मामले में गैर-रिपोर्ट, बिना ईसीआईआर के गिरफ्तारी, इस कानून के कई पहलुओं की आलोचना की जा रही है। चूंकि ईडी एक पुलिस एजेंसी नहीं है, इसलिए जांच के दौरान आरोपी द्वारा ईडी को दिए गए बयानों का इस्तेमाल आरोपी के खिलाफ न्यायिक कार्यवाही में किया जा सकता है, जो आरोपी के कानूनी अधिकारों के खिलाफ है।