शराब घोटाले के तार तेलांगना से क्यों जुड़े हैं?

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त्रिदीब रमण 
त्रिदीब रमण 

 त्रिदीब रमण 

’एक दिन तुम मुझे छोड़ कर बहुत आगे निकल जाओगे
बुना है जो रिश्ता दिलों का लेकर इसके धागे निकल जाओगे’
प्रचार और कथित ईमानदारी की धीमी आंच पर पकती दिल्ली की सियासत पर जब से शराब के छींटे पड़े हैं इसकी लपटें धू-धू कर सुर्खियों के आसमां छूने लगी हैं। दिल्ली के उप मुख्यमंत्री मनीष सिसौदिया पर जब से आबकारी नीतियों में अनियमितताओं के आरोप में सीबीआई के छापे पड़े हैं, आम आदमी पार्टी के भीतर का कोलाहल बाहर आकर चीखने लगा है। सनद रहे कि दिल्ली की आबकारी नीति बनाने और उसे लागू करने में कथित अनियमितताओं को लेकर पिछले साल नवंबर में ही एफआईआर दर्ज हो गई थी। दिल्ली के मुख्यमंत्री केजरीवाल के परम दुलारे मनीष सिसौदिया को सीबीआई ने आरोपी ‘नंबर वन’ बनाया है। भाजपा ने भी एक तीर से दो निशाने साधे हैं। तेलांगना के मुख्यमंत्री केसीआर इन दिनों विपक्षी एका के नए चैंपियन बन कर उभर रहे थे और वे पीएम मोदी और उनकी सरकार पर ताबड़तोड़ सीधा हमला बोल रहे थे। सो, सीबीआई के इस ताजा छापा प्रकरण में हैदराबाद की एक बड़ी तेलगु कंपनी को भी आरोपी बनाया गया है, आरोप है कि इस कंपनी को अकेले 13 जोन आबंटित कर दिए गए थे, जिसकी एवज में भारी-भरकम चुनावी चंदा वसूलने का आरोप लगा है। सूत्रों का दावा है कि यह तेलगु कंपनी केसीआर के किसी नजदीकी रिश्तेदार से जुड़ी है। भाजपा से जुड़े सूत्रों का दावा है कि इस डील से प्राप्त 300 करोड़ रुपयों की भारी भरकम राशि आप ने पंजाब चुनाव में खर्च की थी। दरअसल, भाजपा चाहती है कि ऐसे छापों के माध्यम से उसे चुनौती पेश कर सकने वाली राजनैतिक पार्टियों के वित्तीय स्रोतों पर लगाम लगा दिया जाए। आप को भीतरखाने से भाजपा पर मदद करने के भी आरोप लगते रहे हैं, पर आज आप सिरमौर की महत्वाकांक्षाओं ने आसमान छूने शुरू कर दिए हैं, अब वह राष्ट्रीय स्तर पर खुद को उभारने में लग गए हैं, यह बात भाजपा नेतृत्व को नागवार गुजर रही है। जैसे अभी गुजरात के एक प्रमुख भाषायी अखबार ने सौराष्ट्र में चुनावी जनमत सर्वेक्षण पेश किया है, जिसमें बताया गया है कि सौराष्ट्र की 56 सीटों पर आप ने कांग्रेस को रेस से बाहर कर दिया है और इन सीटों पर वह भाजपा के समक्ष महती चुनौती उपस्थित कर रही है।
क्या आप के साथ कांग्रेस की भी मिलीभगत है?
मनीष सिसौदिया के घर घंटों चले सीबीआई छापों में कहते हैं एजेंसी के हाथ एक अहम सुराग लगा है, जिसके तार कांग्रेस के एक बड़बोले प्रवक्ता से जुड़ रहे हैं। सूत्रों के हवाले से यह अहम जानकारी प्राप्त हुई है कि जब सीबीआई ने मनीष सिसौदिया के लैपटॉप की फाइलों को खंगाला तो उन्हें मालूम चला कि इस कांड में संलिप्त आरोपी नंबर 11 दिनेश अरोड़ा और आरोपी नंबर 14 अरूण रामचंद्र पिल्लै के तार कांग्रेस के एक प्रमुख नेता और प्रवक्ता से जुडे़ हैं। इन्हीं दो आरोपियों की वजह से ही तेलांगना में भी छापे पडे़। सूत्रों की मानें तो आप चाहती थी कि सिसौदिया पर सीबीआई की छापेमारी के मुद्दे पर कांग्रेस आप का साथ दे और इस मुद्दे को मीडिया में तूल न दें। कहते हैं आप यह भी चाहती थी कि कांग्रेस इस छापा प्रकरण को राजनैतिक दुर्भावना का मुद्दा बताएं। पर ऐसा हो न सका, आगे बढ़ कर कांग्रेस नेता संदीप दीक्षित ने पहले ही इन छापों को सही ठहरा दिया और कहा, एक नहीं, इस मामले में तो अब तक सीबीआई को दस छापे मारने चाहिए थे।
नायडू पुत्र से मिले शाह
भाजपा 2024 को मद्देनज़र रखते अभी से चुनावी मोड में आ गई है। सूत्रों की मानें तो अभी पिछले दिनों तेलगुदेशम प्रमुख चंद्रबाबू नायडू के पुत्र नारा लोकेश अपने जीजा को साथ लेकर नई दिल्ली में अमित शाह से मिले थे। कहते हैं शाह के निवास पर यह मुलाकात कोई एक घंटे तक चली। नारा लोकेश ने बातचीत की शुरूआत में इस बात पर चिंता जताई कि ’जब भी वे भाजपा के साथ मिल कर लड़ते हैं इसका फायदा जगन मोहन रेड्डी की पार्टी को हो जाता है।’ इस पर शाह ने उन्हें टोकते हुए कहा कि ’वे विधानसभा चुनाव में गठबंधन की बात नहीं कर रहे बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव में मिल कर लड़ने की बात कर रहे हैं। जहां नरेंद्र मोदी के नाम का फायदा आपको भी मिल सकता है।’ वैसे भी आंध्र में भाजपा का वोट शेयर अभी मात्र 4 फीसदी है। नारा लोकेश ने कहा कि ’24 के चुनाव में भाजपा के साथ गठबंधन हो सकता है, एक बार वे इस बारे में अपने पिता से भी बात कर लेंगे।’ सनद रहे कि इससे पहले जब चंद्रबाबू पीएम मोदी से मिलने आए थे तो पीएम ने वह तस्वीर अपने अकाऊंट हैंडिल से ट्वीट की थी, जो नायडू को लेकर उनकी पसंद व भावनाओं को दर्षाता है।
गडकरी पर यह सितम क्यों?
नितिन गडकरी भाजपा के शायद एकमेव ऐसे नेताओं में शुमार हैं जिनकी कथनी व करनी की एकरुपता का हिंदुस्तान लोहा मानता है, मोदी सरकार के किसी एक मंत्री का अगर सबसे शानदार ट्रैक रिकार्ड रहा है तो वे गडकरी ही हैं। संसद में वे जब बेधड़क बोलते हैं तो विरोधी दलों की शाबाशियां भी बटोर ले जाते हैं। 2014 में जब मोदी सरकार पहली बार दिल्ली के निज़ाम पर काबिज हुई तो गडकरी के पास 7 अहम मंत्रालय थे जो आज की तारीख में घटते-घटते मात्र एक रह गया है सड़क व राष्ट्रीय राजमार्ग। सूत्रों की मानें तो गडकरी के अपने नैतिक साहस के अलावा उन्हें नागपुर से मिल रहा समर्थन भी अहम था। पर जैसे-जैसे नागपुर भी मोदी की विराट काया के समक्ष नतमस्तक होता चला गया भगवा सियासत में गडकरी की पूछ कम होती चली गई। लोग भूले नहीं होंगे जब 2019 में उन्होंने खुल कर कह दिया था-’जो आदमी यह समझता है कि वही सब कुछ जानता है, वह गलती पर है, लोगों को ‘आर्टिफिशियल मार्केटिंग’ से बचना चाहिए।’ शायद गडकरी को भी इस बात का भली-भांति इल्म रहा होगा कि पार्टी का शीर्ष नेतृत्व उनके साथ क्यों सौतेला सलूक कर रहा है, इसीलिए जब पूरी भाजपा व संघ नेहरू को गरियाने में लगे थे, वे नेहरू की तारीफ में कसीदे पढ़ देते हैं। अभी पिछले महीने जुलाई में नागपुर के एक कार्यक्रम में गडकरी ने खुल कर मन के उद्गार व्यक्त कर डाले और कहा-’देश की राजनीति इस कदर खराब हो गई है कि कभी-कभी उनका मन करता है कि वे राजनीति से संन्यास ले लें।’ उन्होंने आगे कहा-’आज की राजनीति पूरी तरह से सत्ता में बने रहने के लिए हो रही है।’ सूत्रों की मानें तो जब इस दफे भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने फोन कर गडकरी को बताया कि उन्हें संसदीय बोर्ड और चुनाव समिति से इस बार ड्रॉप किया जा रहा है तो गडकरी ने बेझिझक नड्डा को फोन पर खूब खरी-खोटी सुना दी। कहते हैं पार्टी में गडकरी से सहानुभूति रखने वाले काफी लोग हैं, गडकरी वक्त आने पर इसका खुलासा भी कर सकते हैं।
नवीन ने पीके को घास क्यों नहीं डाली
पिछले दिनों जब ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक किसी काम के सिलसिले में दिल्ली पधारे तो अपने तयशुदा कार्यक्रम के मुताबिक उन्हें यहां चुनाव रणनीतिकार प्रशांत किशोर से भी मिलना था, पीके की टीम भी पिछले काफी समय से ओडिशा चुनाव के प्रेजेंटेशन की तैयारी कर रही थी। पीके भी पटनायक के समक्ष यह प्रस्तुति के लिए खास तौर पर पटना से दिल्ली आए थे। पर ऐन वक्त नवीन पटनायक ने यह मुलाकात रद्द कर दी, पीके को इसका कोई ठोस कारण बताए बगैर। पर सूत्र बताते हैं कि पटनायक ने अपने कुछ मुंहलगे अफसरों से कहा कि ’उनके अंदर से यह आवाज़ आ रही है कि यह आदमी (पीके) अब भी मोदी से सहानुभूति रखता है और उनके फायदे के लिए काम करता है।’ पटनायक के जिस करीबी व्यक्ति ने यह मीटिंग रखवाई थी उनसे पटनायक के समक्ष कुछ सफाई देते नहीं बना।
बिहार में 14 के पैटर्न पर 24 होगा
नीतीश से कुट्टी के बाद भाजपा शीर्ष ने तय किया है कि वह 2014 के लोकसभा चुनाव के तर्ज पर ही मोदी के नाम पर 24 का चुनाव लड़ेगी, उन्हीं पुराने सहयोगियों यानी लोक जनशक्ति पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा के साथ मिल कर। तब मुकेश सहनी ने भी भाजपा के पक्ष में अलख जगाई थी। उस वक्त भाजपा ने अकेले 30 फीसदी मत लेकर 22 सीटें हासिल की थीं, चिराग की पार्टी को 6 और 3 सीटें कुशवाहा की पार्टी ने जीती थी। भाजपा सहयोगियों ने कुल 40 फीसदी वोट षेयर हासिल किए थे। नीतीश को 16 फीसदी वोट मिले थे पर सीटें सिर्फ उन्हें 2 ही आई थी। भाजपा की कोशिश है कि चिराग और उनके चाचा पारस में सुलह करवा कर उनकी पार्टियां फिर से एक कर दी जाएं। उपेंद्र कुशवाहा इस दफे बिहार में मंत्री नहीं बनाए जाने से नीतीश से नाराज़ चल रहे हैं, वे आसानी से पाला बदल कर भाजपा के साथ आ सकते हैं, वैसे भी कुशवाहा और यादवों में पटती नहीं है और कुशवाहा जाति हमेशा से हिंदुत्व की झंडाबरदार रही है। मांझी भी भाजपा के साथ आने को तैयार बताए जाते हैं। मुकेश सहनी को मनाना भाजपा के लिए किंचित मुश्किल साबित हो सकता है, क्योंकि भाजपा उनकी वीआईपी पार्टी तोड़ने की दोषी है। कहते हैं जदयू की दो नेत्रियों बीमा भारती और लेसी सिंह में झगड़ा भड़काने में उपेंद्र कुशवाहा की ही भूमिका है, उन्होंने नीतीश से यह भी कहा कि ’कोर ग्रुप की मीटिंग में तय हुआ था कि राजद के साथ गठबंधन की सरकार में जदयू के वही मंत्री शामिल होंगे जो भाजपा गठबंधन की सरकार में पहले से थे।’ भाजपा एक कुशवाहा नेता सम्राट चौधरी को विधान परिषद में अपना नेता बनाने को तैयार हो गई है, साथ ही किसी अगड़े को मसलन भूमिहार जाति के विजय सिन्हा या विवेक ठाकुर को प्रदेश भाजपा का नया अध्यक्ष भी बनाया जा सकता है।
…और अंत में
चर्चाओं का बाजार आसमान छू रहा है कि इस दफे अगर भाजपा की गुजरात में फिर से वापसी हुई तो अमित शाह गुजरात के नए मुख्यमंत्री होंगे। यह शाह की एक पुरानी दिली ख्वाहिश है जिसे नरेंद्र मोदी पारितोषिक के तौर पर पूरा करना चाहते हैं। चुनाव पूर्व भाजपा द्वारा राज्य में कराए गए तमाम जनमत सर्वेक्षण इस बार इस बात की चुगली खा रहे हैं कि इस दफे गुजरात फतह भाजपा के लिए बेहद आसान रहने वाला है, और इस दफे के चुनाव में उसे 130-140 सीटें मिल सकती है। क्योंकि भाजपा ने पटेल मुख्यमंत्री बना कर तथा हार्दिक पटेल को अपने साथ लाकर पटेलों को रोड़ा साफ कर दिया है। आम आदमी पार्टी लगातार अपने अभ्युदय से कांग्रेस की संभावनाओं पर ग्रहण लगा रही है। ये सभी समीकरण अमित शाह के हक में जा रहे हैं। (एनटीआई-gossipguru.in)

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