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त्रिदीब रमण
’बरसों तेरे दर पर इस कदर गुलाम आस्थाओं की चाकरी की है
कि आज आज़ाद का तखलुस भी मेरे कुछ काम नहीं आ पा रहा’
24 अगस्त को सोनिया गांधी अपने दोनों बच्चों राहुल और प्रियंका के साथ इटली पहुंची, जहां उनकी बीमार मां पाओला माइनो की तबियत तेजी से बिगड़ रही थी। 27 तारीख आते-आते राहुल की नानी गुजर गई। इत्तफाक से 29 तारीख को ही 7 सितंबर से शुरु होने वाली राहुल की ’भारत जोड़ो यात्रा’ की तैयारियों से जुड़ी एआईसीसी की एक अहम मीटिंग पहले से आहूत थी। सोनिया, राहुल और प्रियंका कुछ समय के लिए इटली से ही वर्चुअल उस मीटिंग से जुड़े, पर किसी कांग्रेसजन को कानों कान यह खबर नहीं लग पाई कि सोनिया की मां का देहावसान हो चुका है। 30 तारीख को एक प्रेस कांफ्रेंस कर बागी होकर कांग्रेस के दर से बाहर निकले गुलाम नबी आजाद अपनी इस वार्ता में गांधी परिवार को आड़े हाथों लेते हैं और कहते हैं कि ’पार्टी की टॉप लीडरशिप 10 मिनट के लिए मीटिंग में आती है और मातहतों पर ऑर्डर झाड़ वर्चुअली रफा-दफा हो जाती है।’ गुलाम नबी तुर्रा उछालते हैं-’भई, यह तो एक तरह की तानाशाही है।’ इसके बाद 31 तारीख को जयराम रमेश ट्वीट कर पहली बार सोनिया की मां के निधन की सार्वजनिक जानकारी शेयर करते हैं। जब यह बात गुलाम नबी को पता चलती है तो उन्हें आत्मग्लानि होती है, पर तब तक हर ओर उनके इस बयान के लिए इतनी किरकिरी हो चुकी होती है कि उनके लिए वहां से अपने कहे को वापिस लेना संभव नहीं था। अब जाकर इस रहस्य से पर्दा उठा है कि गुलाम नबी के प्रचार-प्रसार का जिम्मा जिस बड़ी पीआर एजेंसी ने उठा रखा है, उन्हें इसके एवज में एक मोटी फीस अदा की गई है। सूत्रों की मानें तो एजेंसी की यह फीस भी एक राजनैतिक पार्टी के सौजन्य से अदा हुई है। 7 तारीख को जब कांग्रेस की इस ’भारत जोड़ो यात्रा’ का आगाज़ होगा उसी दिन गुलाम नबी कश्मीर में एक बड़ी पॉलिटिकल रैली करेंगे। आप इसे कांग्रेस की यात्रा से ध्यान बंटाना या भटकाना कुछ भी कह सकते हैं।
योगी भी कम नहीं
यूपी में पिछले दिनों बड़े पैमाने पर टॉप नौकरशाही में फेरबदल देखा गया। इस बड़े फेरबदल की जद में था योगी के बेहद दुलारे अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी को सेवा विस्तार न मिलना। योगी ने अवस्थी को सेवा विस्तार दिलवाने में अपना सारा जोर लगा दिया, पर बात बनी नहीं। दरअसल, सेवा विस्तार की फाइल अनुमोदन के लिए राज्य सरकार इसे केंद्र सरकार के पास भेजती है, यानी केंद्र की ’हां’ सेवा विस्तार देने के लिए निहायत जरूरी है। पर अवस्थी को लेकर केंद्र सरकार का जवाब आया कि ‘अवस्थी अगर चीफ सेक्रेटरी होते तो 3 महीने का एक्सटेंशन दिया जा सकता था, पर एडिशनल को सेवा विस्तार देने की कभी परंपरा नहीं रही है।’ सो, जब अवस्थी एक्सटेंशन नहीं पा सके तो योगी की नाराज़गी की गाज तुरंत वैसे अधिकारियों पर गिरी जो केंद्र के नजदीक समझे जाते थे। इस क्रम में नवनीत सहगल का कद भी छोटा हो गया। वे अहम सूचना विभाग के अपर मुख्य सचिव के पद पर तैनात थे, वहां से उनका तबादला खेल-कूद विभाग में कर दिया गया। यूपी में चाहे मायावती की सरकार रही या अखिलेश की या फिर योगी की सहगल का रुतबा हमेशा सिर चढ़ कर बोला है, पहली बार है जो उनका एक तरह से ‘डिमोशन’ हो गया है। प्रदेश के दोनों उप मुख्यमंत्रियों के सचिवों का भी तबादला हो गया है। ब्रजेश पाठक के विवादों में रहे मुख्य सचिव अमित मोहन प्रसाद की जगह पार्थसारथि सेन शर्मा को लाया गया है। ये पिछले चार साल से ’इंतजार’ में थे, क्योंकि अखिलेश के प्रिंसिपल सेक्रेटरी रहते हुए सेन साहब ने अखिलेश व डिंपल की प्रेम कहानी को बयां करने के लिए एक किताब लिख दी थी। केशव प्रसाद मौर्या के साथ रहने वाले सोशल और अल्पसंख्यक कल्याण के प्रिंसिपल सेक्रेटरी हिमांशु कुमार को भी तबादले की मार झेलनी पड़ी है। केंद्र ने एक किया तो योगी ने चार, यह बताने के लिए कि वे किसी से डरते नहीं।
कौन हैं ये न्यूज चैनल के मालिक?
पिछले दिनों लखनऊ की कुछ कंपनियों पर इंकम टैक्स के ताबड़तोड़ छापे पड़े, छापों में जब्त अहम दस्तावेजों में यूपी के कुछ बड़े ब्यूरोक्रेट के नाम भी मिले हैं। ऐसी ही एक कंपनी में बतौर निदेशक नवनीत सहगल का नाम भी शामिल था। इस पर सहगल ने अपनी ओर से सफाई पेश करते हुए कहा कि ’उन्होंने बहुत पहले ही इस कंपनी के डायरेक्टर पद से इस्तीफा दे दिया था।’ दरअसल यह कंपनी भगवा सत्ता शीर्ष के एक बेहद करीबी माने जाने वाले पत्रकार की है, जिनकी बेटी सहगल के बेटे के साथ कंपनी में साझीदार है। यह पत्रकार एक बड़े न्यूज चैनल के मालिक भी हैं, जिनका चैनल इन दिनों टीआरपी की खूब चांदी कूट रहा है। अभी इस शनिवार को इस पत्रकार महोदय के निजी संस्मरणों पर आधारित एक पुस्तक का विमोचन हुआ है, जिस विमोचन समारोह में राजनाथ सिंह, दत्तात्रेय होसाबोले से लेकर केरल के गवर्नर आरिफ मोहम्मद खान ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई।
बिहार भाजपा की नाक का सवाल
बिहार में भी क्या खूब रंगे सियारों वाली राजनीति चल रही है। विश्वस्त सूत्रों की मानें तो अभी चंद रोज पहले रात के कोई 11.30 बजे वरिष्ठ भाजपा नेता रविशंकर प्रसाद और भाजपा के संगठन महामंत्री भीखू भाई दलसानिया बिहार के उप मुख्यमंत्री तेजस्वी यादव से मिलने उनके घर पहुंचे। इन दोनों नेताओं ने सीधे तेजस्वी के समक्ष अपना चमकता दहकता प्रपोजल उछाला कि ’आप में नेतृत्व का इतना दमखम है तो फिर चाचा (नीतीश) को क्यों ढो रहे हो, आप सीधे क्यों नहीं बनते ’सीएम’, आपको संख्या बल का भी साथ है। 79 विधायक आपकी पार्टी के हैं, कांग्रेस के 19 और वामपंथियों के 16 और ओवैसी के 1 विधायक के समर्थन के साथ हो गया, यह गिनती कुल 117 की बैठती है यानी बहुमत के आकड़े से कुछ कम, पर इसका भी जुगाड़ हो जाएगा। नीतीश के कई विधायक टूटने को तैयार बैठे हैं, भाजपा के कुछ विधायक शक्ति परीक्षण के दिन अनुपस्थित रह जाएंगे।’ इस पर तेजस्वी ने छूटते ही कहा ’एक लचर सरकार का सीएम बनने से अच्छा है कि मैं एक मजबूत सरकार का डिप्टी सीएम हूं।’ कहते हैं इस पर रविशंकर ने उन्हें याद दिलाया कि ’यूपी में 2003 में हमने ही मायावती की सरकार बनवाई थी, मुलायम सिंह की सरकार भी हमने ही बनवाई थी।’ कहते हैं इस पर तेजस्वी ने टका सा जवाब दिया-’वह आज की नहीं, अटल-अडवानी के दौर की भाजपा थी, उसकी बात ही कुछ अलग थी।’ भाजपा के दोनों नेता अपना सा मुंह लेकर लौट आए।
सोरेन अपनी गद्दी किसको सौंपेंगे?
लगता है झारखंड की हेमंत सोरेन सरकार के दिन बस गिनती के बचे हैं। झारखंड के गवर्नर रमेश बैंस के पास चुनाव आयोग ने एक सप्ताह पहले ही अपना फैसला भेज दिया है, पर गवर्नर अभी तक हेमंत को ‘डिसक्वालिफाई’ घोषित नहीं कर पाए हैं। यहां पर पेंच फंसा है भाजपा नेता बाबूलाल मरांडी को ’डिसक्वालिफाइर्’ करने का। वहीं सूत्र खुलासा करते हैं कि भले ही सोरेन ने अपने विधायकों को रायपुर भेज दिया हो, पर इन विधायकों के घरों तक भाजपा ने अपनी पहुंच बना ली है। माना जा रहा है कि झारखंड के गवर्नर रविवार की रात तक या सोमवार की सुबह तक अपना फैसला सुना सकते हैं। तब तक सभी विधायकों की वापसी शुरू हो जाएगी। इनको वापिस रांची लाने के लिए एक चार्टर्ड विमान हायर किया जा रहा है, जिसका अनुमानित खर्च कोई 2.6 करोड़ रूपए आने वाला है। पर इस फैसले को कैबिनेट से अनुमोदन भी मिल चुका है। हेमंत सोरेन अपनी रुखसती की सूरत में अपनी गद्दी अपनी पत्नी को सौंपना चाहते हैं, पर इस फैसले में बड़ी दिक्कत पेश आ रही है, क्योंकि हेमंत की पत्नी गैर आदिवासी समुदाय की हैं और वह ओडिशा की रहने वाली हैं। सो रिजर्व एसटी सीट से उनका उप चुनाव लड़ना भी संदिग्ध रहेगा, और राज्य की ज्यादातर गैर आदिवासी सीटों पर भाजपा का दबदबा है, सो भाजपा उन्हें चुनाव में हरवाने का पुख्ता इंतजाम करेगी। पिता शिबू सोरेन इन दिनों बीमार चल रहे हैं, उनकी भूलने की बीमारी भी काफी बढ़ गई है। सो, अब हेमंत अपनी मां को गद्दी सौंपने पर विचार कर रहे हैं। वहीं भाजपा के केंद्रीय नेताओं की राय है कि झारखंड में एक साल के लिए राष्ट्रपति शासन लगाना ही ठीक रहेगा, क्योंकि झारखंड में भाजपा के पास न तो उतने योग्य नेता हैं और न ही उतना जनता का सपोर्ट।
समय से पहले बिहार में चुनाव?
भाजपा की मंषाओं से तेजस्वी यादव ने नीतीश कुमार को अवगत कराते हुए कहा कि ’अभी भाजपा बिहार में काफी ‘अनपॉपुलर’ है, सो यह सही वक्त है विधानसभा भंग कर चुनावों में जाने का। सीटें हमारी भी बढ़ेगी और आपकी भी।’ इस पर नीतीश का कहना था कि ’हमने युवाओं से जो दस लाख नौकरियां देने का वादा किया है, फिर उसका क्या होगा? लोग हमसे सवाल पूछेंगे, युवा शक्ति को नाराज़ कर हम इस वक्त चुनावों में नहीं जा सकते। पहले नई नौकरियों के लिए ‘नोटिफिकेशन’ जारी हों फिर हम फ्रेश चुनाव की सोच सकते हैं। आप चाहें तो पहले अपने विधायकों से भी बात कर लें कि तीन साल पहले कौन चुनाव में जाना चाहेगा?’ नीतीश की दूर दृष्टि के कायल हो गए तेजस्वी।
…और अंत में
मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चैहान को दिल्ली लाए जाने की आहटों ने शोर पकड़ लिया है। नितिन गडकरी के साथ-साथ उन्हें भी भाजपा के अहम संगठन पदों से बाहर का रास्ता दिखाया गया था। अब चर्चा है कि शिवराज को दिल्ली लाकर मोदी कैबिनेट में ग्रामीण विकास मंत्रालय का मंत्री बनाया जा सकता है। सितंबर माह के बाद मोदी मंत्रिमंडल में एक बड़े फेरबदल का कयास है। शायद 24 के आम चुनावों से पहले का यह आखिरी फेरबदल हो। ज्योतिरादित्य सिंधिया शिवराज की जगह मध्य प्रदेश के नए सीएम हो सकते हैं। इन कयासों को भांपते हुए अब सिंधिया इन दिनों सप्ताह के कोई दो दिन नियम से मध्य प्रदेश में गुजार रहे हैं।
(एनटीआई-gossipguru.in)