शिक्षा लाभ कमाने का धंधा नहीं है- सुप्रीमकोर्ट

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समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 12नवंबर। कोर्ट ने कहा कि शिक्षण संस्थाओं में ट्यूशन फीस सदा सस्ती रखी जाए , ताकि देश के बच्चे शिक्षित होने के मूल अधिकार को सहजता से प्राप्त कर विद्यावान ज्ञानवान बन सकें !

कोर्ट का यह अत्यन्त महत्वपूर्ण आदेश आंध्र प्रदेश के मेडिकल कालेजों के खिलाफ आया जिन्होंने विद्यार्थियों की ट्यूशन फीस सात गुना बढ़कर 24 लाख रुपए प्रतिवर्ष कर दी थी !
यही आदेश आंध्रा उच्चन्यायलय ने दिया था जिसके खिलाफ सरकार सुप्रीमकोर्ट गई !
कोर्ट ने फीस बढ़ाने के लालच में हाईकोर्ट के बाद सुप्रीमकोर्ट का वक्त जाया करने का आरोप लगाकर आंध्र स्वास्थ्य मंत्रालय पर पांच लाख रुपयों का जुर्माना भी लगाया !

यह तो मेडिकल व्यवसायिक शिक्षा का मामला था जो कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की । आदेश यह भी दिया जाना चाहिए था कि सस्ती शिक्षा लेकर मेडिकल शिक्षा लेने वाले छात्र डाक्टर बनने के बाद देश के अस्पतालों में सेवाएं देने के लिए बाध्य होंगे । जिन्होंने आरक्षित कोटे से मेडिकल कालेजों में प्रवेश लेकर डाक्टर बनने का गौरव प्राप्त किया है , वे आदिवासी क्षेत्रों , वनांचलों , दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में तीन साल सेवाएं देकर अपने आरक्षित कोटे से न्याय करेंगे । आज सरकारी मेडिकल कालेजों से सस्ती शिक्षा लेकर निकले डाक्टर बड़े बड़े निजी अस्पतालों में लाखों करोड़ों के पैकेज लेते हैं और मरीजों का दोहन करते हैं । या फिर भाड़ में जाए देश कहते हुए विदेश चले जाते हैं ।

आजादी के बाद उन दशकों को याद कीजिए , जब देश में केवल सरकारी प्राइमरी स्कूल ही थे । बाकी संस्कृत पाठशालाएं थी । सच कहें तो आजकल जैसी अंग्रेजी शिक्षा का नामों निशान नहीं था । कुछ पब्लिक स्कूल थे जो अंग्रेजों , रायबहादुरों , नवाबों और राजा महाराजाओं के बच्चों के लिए थे । प्राइमरी स्कूलों से निकले बच्चे आईएएस , आईपीएस , ब्यूरोक्रेट्स , न्यायाधीश और डाक्टर इंजीनियर बनते रहे । जी हां , प्राइमरी स्कूलों की मुफ़्त पढ़ाई से ही । जरा आज देखिए । शहर शहर इंटरनेशनल स्कूल्स , पब्लिक स्कूल्स और कांवेंट स्कूल्स की भरमार है । प्राइमरी स्कूलों में अस्तबल बन गए हैं और गौशालाएं बन गई हैं । जो बचे हैं , उनमें टीचर तो बहुत हैं , बच्चे आठ दस हैं ।

सुप्रीमकोर्ट में आंध्रा के मेडिकल कालेजों का मामला बढ़ी फीस को लेकर था । लेकिन शिक्षा से जुड़े हजारों सवाल हैं । शिक्षा तो जीवन के मूलाधिकारों में शामिल है । अच्छा हो यदि किसी तरह समान और सस्ती शिक्षा नीति पर काम हो सके । देश के उत्थान के लिए सस्ती पर बढ़िया शिक्षा और चिकित्सा जरूरी हैं । शिक्षा और चिकित्सा देश के 140 करोड़ लोगों के लिए होनी चाहिए , मात्र अमीरों के बच्चों के लिए नहीं । सच्चा लोकतंत्र तभी आएगा ?

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