नई दिल्ली: मोदी सरकार के कार्यकाल में देश की अर्थव्यवस्था में तेजी से उछाल आया है। 2013-14 के दौरान भारत की आर्थिक विकास दर 4.7 फीसदी थी, जो अब बढ़कर 7.7 फीसदी हो गई है। नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार का कहना है कि बैंकिंग क्षेत्र में एनपीए की बढ़ोतरी के कारण विकास दर में कमी आई थी।
‘नोटबंदी ने विकास को धीमा कर दिया है’ के आरोपों पर उन्होंने कहा कि यह पूरी तरह से झूठी कहानी है और मैं इस बात से बहुत चिंतित हूं कि पी. चिदंबरम और हमारे पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जैसे प्रमुख लोगों ने भी इस तरह के बयान दिए। राजीव कुमार ने कहा कि नोटबंदी के कारण विकास दर में कमी नहीं आई है।
उन्होंने कहा ‘अगर आप विकास दर के आंकड़ों को देखेंगे तो पाएंगे कि यह नोटबंदी की वजह से नीचे नहीं आया, बल्कि छह तिमाही से यह लगातार नीचे जा रहा था, जिसकी शुरुआत 2015-16 की दूसरी तिमाही में हुई थी, जब विकास दर 9.2 फीसदी थी। इसके बाद हर तिमाही में विकास दर गिरती गई। यह एक ट्रेंड का हिस्सा था, नोटबंदी का झटका नहीं। नोटबंदी और विकास दर में गिरावट के बीच प्रत्यक्ष संबंध का कोई सबूत नहीं है।’
उन्होंने विकास दर में गिरावट के लिए रघुराम राजन की नीतियों को जिम्मेदार ठहराते हुए कहा ‘जब यह सरकार सत्ता में आई तो यह आंकड़ा करीब 4 लाख करोड़ रुपया था और यह 2017 के मध्य तक बढ़कर साढ़े 10 लाख करोड़ हो गया। आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन ने एनपीए की पहचान के लिए नई प्रणाली बनाई थी और यह लगातार बढ़ता चला गया। यही कारण है कि बैंकिंग क्षेत्र ने उद्योगों को उधार देना बंद कर दिया। मध्यम और लघु उद्योगों का क्रेडिट ग्रोथ ऋणात्मक में चला गया, बड़े उद्योगों के लिए भी यह 1 से 2.5 फीसदी तक गिर गया। भारतीय अर्थव्यवस्था के इतिहास में क्रेडिट में आई यह सबसे बड़ी गिरावट थी।’