सीबीआई की अंदरूनी कथा-व्यथा
सीबीआई मामले की सुनवाई 12 नवम्बर को
सुप्रीम कोर्ट के मात्र एक मिनट की सुनवाई से सरकार से लेकर सीबीआई के शीर्ष अधिकारियों के हाथों से हाथों में रहनेवाले तोताराम के तोते उड गये। तोताराम का सारा नियंत्रण पलभर में सुप्रीम पावर के अधीन हो गया, जिसको सरकार नहीं चाहती थी। अधिकारियों की पड़ताल में सरकारी हस्तक्षेप उजागर होता दिख रहा है। सुप्रीम कोर्ट में इसकी सुनवाई 12 नवम्बर को मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई की अदालत में होगी। सुप्रीम कोर्ट द्वारा केवल दो सप्ताह में जांच करके रिपोर्ट सौंपने के आदेश के बाद केंद्रीय सतर्कता आयोग की 24X7 की मैराथन मेहनत और पूछताछ से सीबीआई में भी हड़कंप है। सुप्रीम कोर्ट के सेवानिवृत्त न्यायाधीश की देखरेख में हो रही जांच पर ही बहुतों का भविष्य निर्भर करेगा। ==उल्लेखनीय है कि सीबीआई निदेशक आलोक वर्मा और नंबर टू के अतिरिक्त निदेशक राकेश अस्थाना के बीच संघर्ष शिखर पर पहुंच गया था। मामला कुछ जांच को लेकर भी था।कहा जाता है कि दो प्रमुख विपक्षी नेताओं के उपर आरोपों की जांच को निदेशक आलोक वर्मा अगले साल आम चुनाव तक टालते रहने का था, जबकि राकेश अस्थाना इसकी जांच की गति को तेज करके कोई निर्णयाक मोड़ तक ले जाना चाहते थे। सूत्रों के अनुसार अस्थाना के पीछे सरकार का समर्थन भी था। जबकि बतौर सीबीआई हेड निदेशक आलोक वर्मा का कार्यकाल जनवरी में समाप्त हो रहा है और वे अपने अधीन मामले को ठंडे बस्ते में ही रखना चाहते थे। पूर्व मुख्यमंत्री और रेलमंत्री रहे नेता पर नाना प्रकार के भूमि सौदों के लिए रेलवे के ठेकों और होटलों की जांच में घपलों घोटालों की धीमी जांच को लेकर सीबीआई की साख पर बट्टा लग रहा था। रेलमंत्री रही और वर्तमान मुख्यमंत्री पर एक नॉन बैंकिंग कंपनी के वित्तीय हेराफेरी में आरोपित है। इस मामले की जांच और छानबीन लंबित है। इसकी जांच को भी अस्थाना जल्दी जल्दी कराने के लिए निदेशक की सहमति चाह रहे थे। जानकार सूत्रों के मुताबिक इस मामले में सरकार भी अस्थाना के पीछे खड़ी थी। मगर आधिकारिक तौर पर निदेशक द्वारा सहमति नहीं दी जा रही थी इस मामले की अस्थाना ने सीवीसी से भी शिकायत की थी। सीवीसी के प्रेशर के बाद भी निदेशक का रवैया टालमटोल का ही बना रहा। अपने खिलाफ लगातार हावी हो रहे अस्थाना पर लगाम लगाने के लिए अचानक उनके खिलाफ दो करोड़ रिश्वत लेने के मामले की जांच को ग्रीन सिग्नल देकर उनके अधीनस्थ एक सहायक अधिकारी को गिरफ्तार कर लिया गया। निदेशक द्वारा एकाएक कार्रवाई करते ही सरकार एकाएक जागी, और आधी रात को निदेशक आलोक वर्मा को जबरन लंबी छुट्टी पर भेजने का फरमान जारी कर दिया गया। इस आदेश को अमली जामा पहनाने के लिए देश के सबसे ताकतवर नौकरशाह और रक्षा सलाहकार अजीत डोभाल रातो रात निदेशक से जाकर मिले। और निदेशक को पीएमओ के आदेश का पालन करने की सलाह दी। और इसी बीच रातोंरात सीबीआई के एक वरिष्ठ अधिकारी को निदेशक की कुर्सी पर आसीन कर दिया। देखते ही देखते अगले दिन निदेशक सुप्रीम कोर्ट की शरण में चले गये। जिसकी सुनवाई करते हुए मुख्य न्यायाधीश गोगोई ने मात्र अपने एक मिनट की अदालती आदेश में दो सप्ताह के भीतर सीवीसी को जांच रिपोर्ट देने तथा नियुक्त निदेशक को केवल कागजी कार्रवाई तक सीमित कर दिया। इसकी अगली सुनवाई के लिए 12 नवम्बर का डेट तय कर दी। सीवीसी की कुछ और समय देने की अर्जी को नकार दिया। और सीवीसी की 24X7 मैराथन कार्यवाही का जायजा सेवानिवृत्त न्यायाधीश पटनायक ले रहे हैं। तो उधर सीवीसी भी देर रात रात तक पूछताछ के लिए भी अधिकारियों को हाजिर हो का फरमान जारी कर रात बरात बुला रही है। सीबीआई और सीवीसी के अधिकारियों के साथ साथ अधीनस्थ संबंधित कर्मचारियों को भी फाइलों को मुहैय्या करना पड़ रहा है। दोनों विभागों के कई शिफ्टों में काम करने का आखिरी दौर भी अब समापन चरण में है। आखिरी दौर में रिपोर्ट का सारांश पूर्व न्यायाधीश पटनायक सीवीसी अधिकारियों के रिपोर्ट को फोकस करवा रहे हैं। जिसे देखकर पूरा घटनाक्रम साफ हो जाए। रिपोर्ट की गोपनीयता को देखते हुए मूल अर्थ मीडिया को नहीं पता मगर पूछताछ के लिए बुलाए गए अधिकारियों के रवैये से लगता है कि जांच की चपेट में ज्यादातर लोग हैं। देखना यही है कि सोमवार के दिन मुख्य न्यायाधीश के आदेश के बाद सीबीआई उर्फ तोताराम का तोता कितना मुखर स्वच्छ और बेदाग होकर सामने आएगा? इसी में जनता की दिलचस्पी भी है।
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