जम्मू कश्मीर विधानसभा को अचानक रात में भंग करने के साथ ही राज्यपाल सतपाल मलिक विवादों में घिर गये हैं। इस विवादास्पद फैसले के बाद राज्यपाल समेत केंद्र सरकार की किरकिरी होगी। बगैर किसी कारण समय से पहले ही विधानसभा भंग कर देने से राज्यपाल की जमकर आलोचना होगी। विपक्ष ने भी इसकी भर्त्सना आरंभ कर दी है। वहीं संभव है कि राज्यपाल के फैसले को भी सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी जा सकती है। केंद्र के संकेतों पर हुए लोकतांत्रिक मूल्यों को गला घोटने की इस कार्रवाई से भी विधानसभा चुनाव पर वोटरों का मिजाज बदल सकता है ==उल्लेखनीय है कि जम्मू-कश्मीर में पीडीपी और भाजपा की सरकार थी। भाजपा ने अपना समर्थन वापस ले ली थी। 20जून को समर्थन वापसी के साथ ही राष्ट्रपति शासन लगा दिया गया था। सरकार गठन की संभावनाओं को देखते हुए आज गठबंधन की सरकार को लेकर गतिविधियों तेज हो गयी है। नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस के समर्थन के साथ ही पीडीपी राज्य में सरकार बनाने के लिए तैयार हो रही थी। राज्यपाल मलिक ने बार बार विधानसभा भंग करने से इंकार किया था। उनका कहना है कि भंग करने के बाद सरकारी धन जनता तक नहीं पहुंच पाती है। सरकार गठन की गतिविधियों तेज होते ही भाजपा की परेशानी बढ़ गयी और राज्यपाल पर दवाब डाल कर विधानसभा को 29 दिन पहले ही विधानसभा भंग कर दी गयी सूत्रों के अनुसार राज्यपाल सतपाल मलिक अभी दो दिन
पहले ही प्रधानमंत्री और भाजपा अध्यक्ष अमित शाह से भी मुलाकात की थी समझा जा रहा है कि इस मुलाकात में ही विधानसभा भंग करने की पटकथा लिख दी गयी। केवल सरकार बनने बनाने की तेज आंशकाओ के साथ ही भाजपा के एक खेमा के टूटने और विपक्षी दलों की एकजुटता की खिचड़ी को बनने से पहले ही विधानसभा भंग कर दी गयी राजनिवास के इस फैसले के खिलाफ देश भर में केंद्र सरकार की छवि पर भी बुरा असर पड़ेगा। संविधान विशेषज्ञ सुभाष कश्यप ने एकाएक इस तरह की घटना को निंदनीय माना। उन्होंने कहा कि यदि वहां के राजनीतिक दलों में सरकार बनाने की कोशिश की जाएगी तो राष्ट्रपति शासन को खत्म किया जा सकता है। बहरहाल राज्यपाल का यह तुगलकी फरमान पद की गरिमा के खिलाफ है। जिन्होंने लोकतंत्र की रक्षा करने की कोशिश की जगह लोकतांत्रिक मूल्यों को ही कुचल दिया ज्यादातर नेताओं ने इस कार्यवाही की आलोचना की है। पूर्व केंद्रीय मंत्री यशवंत सिन्हा ने इसके खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने पर विचार किया जाएगा। पीडीपी नेता महबूबा मुफ्ती ने राज्यपाल को केंद्र के सामने घुटने टेकने का आरोप लगाया है। कांग्रेस के गुलाम नबी आजाद ने कहा कि भाजपा का यह डिक्टेटर शिप का उदाहरण है। उनका मानना है कि भाजपा अपनी नहीं तो और किसी की भी सरकार नहीं बनने देने का तानाशाहीपूर्ण नजरिया है।
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