नयी दिल्ली।
फिल्म बदलते रिश्ते का एक गाना आज भी समाज के बदलते चेहरे स्वभाव संबंधों के उतार चढ़ाव मानव मूल्यों के पतन को देखकर सहसा यह गाना याद आता है- ना जाने कैसे पल में बदल जाते हैं ऐ दुनिया के बदलते रिश्ते। रिश्तों का बदलना क्या इतना सरल है? शायद इसका जवाब देना इतना आसान नहीं है मगर जिस राज्य का मुख्यमंत्री फटाफट जंबो फाइटर योगी आदित्यनाथ जैसे हों तो वहां पर कुछ भी नामुमकिन या असंभव नहीं है। तभी तो कोई काम सूबे में हों अथवा नहीं मगर योगी जी ने शहरों के नाम बदलने का मानों अभियान छेड़ रखा है। एक साल के अंदर रेलवे के सबसे बड़े और व्यस्तम मुगलसराय रेलवे स्टेशन का पलभर में नाम बदलकर दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन के नाम को वैधानिक मान्यता दिलवा दिया। पांच सदी से विख्यात कुंभनगरी इलाहाबाद का नाम बदलकर प्रयाग करने में मुख्यमंत्री योगी ने 500 सेकेंड का भी समय नहीं लिया और देखते ही देखते बदलते रिश्ते की तरह पर भर में इलाहाबाद के नाम को प्रयाग कर दिया। पलभर में मुगल सम्राट जलालुददीन अकबर द्वारा रखें गये नाम को प्रयाग में बदल डाला। यह अलग चिंता का विषय है कि इस परिवर्तित नामकरण की वैधानिक दस्तावेजीकरण यानी डॉक्यूमेंटराईजेशन में 4000 करोड़ रूपये खर्च आएंगे। इस राशि को मैनेज करनें में फटाफट मुख्यमंत्री योगी की फुर्ती रफूचक्कर हो गयी है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ कहां मानने वाले थे? प्रयाग का शोर अभी परवान पर ही था कि एकाएक योगी जी ने बिना शोर किए ही फैजाबाद जिले का भी नाम बदलकर श्री रामनगरी अयोध्या कर दिया। जिला अयोध्या नामकरण भी उस समय किया जब श्री राम मंदिर निर्माण के लिए 25 नवम्बर 2018 को विहिप और शिवसेना के आह्वान पर धर्म सभा के आयोजन में लाखों हिंदुओं की अपार भीड़ इकठ्ठा होने वाली थी। ऐसे उन्मादी माहौल में नाम बदलकर मुख्यमंत्री योगी ने अपनी तेज तर्रार वाचाल छवि को आक्रामक धारदार और पैना कर दिया। ठीक फैजाबाद अयोध्या की तर्ज पर ही आजकल बिहार के धार्मिक सूर्यनगरी देव को लेकर भी नाम बदलने का अभियान गरम है। औरंगाबाद बिहार ज़िले का नााम बदलकर देव करने की मांग का आंदोलन भी सोशल मीडिया में तो काफी गरम है। मगर स्थानीय सांंसद विधायकों निगम पार्षदों मुखिया सरपंचों, प्रमुखों सिको लेकर एक जनमत बनााकर पटना को बाध्य रागे का जनांदोलन की जरूरत है। – – – — यूपी में नामों को बदलने की कडी में आगरा मुजफ्फरनगर देवबंद मेरठ सहारनपुर अलीगढ़ मुरादाबाद, आजमगढ़ आदि कोई दो दर्जन शहरों के नामकरण पर भी योगी दृष्टि गड़ी है। ज्यादातर मुस्लिम इतिहास को समेटे मुस्लिम नाम वाले शहरों को टार्गेट कर रखा है। हालांकि शहरों के नाम बदलने को लेकर न कहीं विवाद है और ना ही इसके लिए आंदोलन ही चल रहा है, इसके बावजूद मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने यूपी के शहरों के नामकरण को बदलने का मुहिम ही मिशन सक्सेस बन गया है।
उल्लेखनीय है कि आजादी के बाद से ही शहरों गलियों गांवों मोहल्लों रेलवे स्टेशनों बस अड्डों चौक चौराहों के नाम बदलने का सिलसिला जारी है। अभी अहमदाबाद मेहसाणा सूरत का मामला गरम है। अजीबोगरीब नाम के लिए चर्चित स्थलों में गया बरकाकाना बागपत देवरिया नवादा अकबर पुर अररिया अमलापुरम आदिलाबाद केराबाई केला बोला खटीमा खरसांवां खूंटी खैर खगौल घरौंदा गढ़वा गदाईपुर गदापुर इतना दारू धारूहेड़ा घोघरडीहा चांडिल चाकुलिया कांडा टोंक डिंडिगुल ढेंकनाल तीनसूकिया तूरा तेनाली नरकटियागंज घोड़ा नलगोंडा झुमरी तिलैया झींकपानी झाझा झरिया जादूगोड़ा फुसरो बगलकोट बैरकपुर बेतिया बैतूल मूली मानगो मऊ मंडी भभुआ भंडारा पहलेजा जाता मैथन मेंढक होडल बख्तियारपुर रेहला आदि देश में इस तरह के हजारों नाम है जिनके नये नामकरण के लिए दशकों से संघर्ष जारी है, मगर इनके योगी सा कोई धाकड़ नैया नसीब नहीं हो पा रहा है। केवल गांव शहरों तक ही विचित्रता से भरे नामों का यह सिलसिला रुकने वाला नहीं है। करीब 100 रेलवे स्टेशनों के नाम इतने अजीबोगरीब और अविश्वसनीय है कि इसके उच्चारण करने से भी लोग शर्मिंदगी महसूस करते हैं मगर इसके बदलाव की तमाम कोशिशों पर अब तक पानी फिरता आया है। कुछ रेलवे स्टेशनों के नामों पर गौर करें। बिल्ली महबूबनगर साली दीवाना बाप भैंस काला बकरा लौंडा दुबली हुबली मूतना बलिया मछलीशहर चिंचपोकली मांटुगा ससुराल सरगूजा मऊगा आदि तो कुछ ऐसे-ऐसे भी नाम है जिनको बदलते की जी तोड कोशिशों का आज तक कोई फल नहीं निकला।
नामकरण में बदलाव की कोशिश के कई चरण होते हैं। गांव और नगर निगम वाले शहरों के गली मोहल्ले चौराहों के नये नामकरण के लिए ग्रामसभा या नगर निगम की स्थायीकरण समिति से पारित होने के बाद परिवर्तित नाम की सूचना बीडीओ और जिला उपायुक्त के पास भेजी जाती है। जिसके मार्फत राज्य सरकार चुनाव आयोग और डाक विभाग के पास सूचना भेजी जाती है, ताकि समयानुसार सरकारी आंकड़ों और दस्तावेज में नवीनतम परिवर्तन को जोड़ा जा सके। शहरों और जिलों के नाम बदलने के लिए विधानसभा या कैबिनेट की मंजूरी के बाद इसे राज्यपाल के पास भेजा जाता है। राज्यपाल की स्वीकृति के बाद नाम बदलने की प्रक्रिया को केंद्रीय गृह मंत्रालय के पास भेजा जाता है। जिसकी औपचारिक स्वीकृति के बाद राष्ट्रीय स्तर पर गजट में जिले का नाम नक्शा सबकुछ बदलाव की तीन वर्षीय प्रक्रिया आरंभ हो जाती है। एक शहर के नवीन नामकरण में मोटे तौर पर 500 करोड़ और जिला के नामकरण परिवर्तन पर दो से तीन हजार करोड़ रुपये का खर्च आया है। भारी भरकम राशि के व्यय को देखते हुए ही ज्यादातर सरकारे नाम बदलने की कोशिशों से परहेज़ करते हैं। ज्यादातर मांगों के प्रति भी सरकार उदासीन बनीं रहतीं हैं। आजादी के बाद कुछ शहरों के परिवर्तित नामों को जानन भी काफ़ी दिलचस्प है। बड़ौदा को बड़ोदरा, त्रिवेंद्रम का तिरुवंतपुरम, बामबे या बंबई कि मुंबई मद्रास का चेन्नई, कोचीन का कोच्चि, कलकत्ता का कोलकाता पौंडिचेरी का पुदुचेरी, कौनपुर का कानपुर , बेलगांव का बेलगावि, दूंधौर को इंदौर, पंजीम को पणजी, पूना का पूणे, सिमला का शिमला। और अब शिमला को बदलकर श्यामला करनें का आंदोलन भी रफ्ता रफ्ता चल रहा है। वाल्टेयर का विशाखापत्तनम, तंजौर का तंजावुर जबलपौर को जबलपुर, मैसूर का मैसुरू, कालीकट का कोझिकोड, मैंगलोर का मंगलुरु, बैंगलोर का बंगलुरू मेवात का नूंह गुड़गांव का गुरूग्राम प्रमुख हैं, तो झारखंड के नगरऊंटारी रेलवे स्टेशन का नाम वंशीधर करना भी परिवर्तित नामों की श्रृंखला की एक नयी कडी है। अब देखना है कि नाम बदलते रहते का यह दौर क्या केवल यूपी में ही ज़ारी रहेगा या और राज्य भी अपनी जानता की भावनाओं का आदर करेगी।