क्या इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन है ब्लैक फंगस का कारण?

 कोविड-19 इन्फेक्शन के बिना भी ब्लैक फंगस हो सकता है!

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समग्र समाचार सेवा
दिल्ली, 27 मई। एक तरफ भारत जहा कोरोना से लड़ रहा है, वही अलग अलग तरह के इन्फेक्शन इस महामारी कइ रूप को और भयावह करते जा रहे है। भारत में कोविड-19 महामारी के बाद अब ब्लैक फंगस भी महामारी बनकर सामने आया है। पिछले हफ्ते हेल्थ मिनिस्टर हर्षवर्धन ने कहा कि अब तक 18 से अधिक राज्यों में ब्लैक फंगस के केस सामने आए हैं। इसके नंबर लगातर बढ़ते ही जा रहे हैं। आइए जानते है कि क्या है इसकी वजह?

कुछ एक्सपर्ट कह रहे हैं कि अप्रैल-मई में जब कोविड-19 की दूसरी लहर में केस बढ़े और ऑक्सीजन कम पड़ने लगी तब इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को मेडिकल इस्तेमाल किया गया। कहीं न कहीं यह भी ब्लैक फंगस का कारण हो सकता है। पर क्या इस इन्फेक्शन की वजह सिर्फ इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन है? अगर हा, तो यह उन लोगों को क्यों हो रहा है, जिन्हें अस्पताल में भर्ती ही नहीं किया गया?

क्या कहते है एक्सपर्ट और क्या हो सकती है इस इन्फेक्शन की वजहें …

ब्लैक फंगस- ये एक फंगल डिजीज है। जो म्युकरमायकोसिस नाम के फंगस से होता है। ये ज्यादातर उन लोगों को होता है जिन्हें पहले से कोई बीमारी हो या वो ऐसी मेडिसिन ले रहे हों जो बॉडी की इम्युनिटी को कम करती हों या शरीर की दूसरी बीमारियों से लड़ने की ताकत कम करती हों। ये शरीर के किसी भी हिस्से में हो सकता है।
ज्यादातर सांस के जरिए वातावरण में मौजूद फंगस हमारे शरीर में पहुंचते हैं। अगर शरीर में किसी तरह का घाव है या शरीर कहीं जल गया तो वहां से भी ये इन्फेक्शन शरीर में फैल सकता है। इसे शुरुआती दौर में ही डिटेक्ट नहीं किया गया तो आंखों की रोशनी जा सकती है। या फिर शरीर के जिस हिस्से में ये फंगस फैला है, शरीर का वो हिस्सा सड़ सकता है।

ब्लैक फंगस कहां पाया जाता है?
ये बहुत गंभीर, लेकिन एक रेयर इन्फेक्शन है। ये फंगस वातावरण में कहीं भी रह सकता है, खासतौर पर जमीन और सड़ने वाले ऑर्गेनिक मैटर्स में। जैसे पत्तियों, सड़ी लकड़ियो और कम्पोस्ट खाद में ब्लैक फंगस पाया जाता है।

ब्लैक फंगस के लिए इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन को क्यों दोषी ठहराया जा रहा है?
अप्रैल-मई में हर बड़े शहर में ऑक्सीजन की किल्लत का सामना करना पड़ा। तब सरकार ने इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन के मेडिकल इस्तेमाल की इजाजत दी। इसके बाद तो जिस भी इंडस्ट्री में ऑक्सीजन लगती थी, वहां से ऑक्सीजन अस्पतालों तक पहुंचने लगी। इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन में भी शुद्धता का स्तर 94-95% होता है जबकि अस्पतालों में इस्तेमाल होने वाली ऑक्सीजन में शुद्धता 99% होती है।
डॉ. तयाल का कहना है कि मेडिकल ऑक्सीजन शुद्धता के लिए कई प्रक्रियाओं से गुजरती है। जिन सिलेंडर में लिक्विड ऑक्सीजन स्टोर की जाती है, उन्हें डिसइन्फेक्ट किया जाता है। इसके मुकाबले इंडस्ट्रियल ऑक्सीजन के सिलेंडर इतने साफ नहीं होते। उन्हें नियमित रूप से स्टराइल और डिसइंफेक्ट नहीं किया जाता। इन सिलेंडर में छोटे-छोटे लीक्स का खतरा रहता है।

मेडिकल ऑक्सीजन ही ब्लैक फंगस की इकलौती वजह है?

नहीं। एम्स दिल्ली के डायरेक्टर डॉ. रणदीप गुलेरिया ने स्टेरॉयड्स के कोविड-19 के ट्रीटमेंट में बेजा इस्तेमाल को भी ब्लैक फंगस की वजह बताया है। कुछ एक्सपर्ट्स यह भी कह रहे हैं कि कोविड-19 इन्फेक्शन से रिकवरी के दौरान इम्यून सिस्टम बेहद कमजोर हो जाता है और इस दौरान मरीज को अन्य इन्फेक्शन होने का खतरा बढ़ जाता है।
लेकिन राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन मप्र की 743 म्युकरमायकोसिस (ब्लैक फंगस) मरीजों की एनालिसिस रिपोर्ट बताती है कि 75% मरीजों को ऑक्सीजन लगी ही नहीं। 73% को कोरोना के इलाज में स्टेरॉयड दिए ही नहीं गए।

क्या ब्लैक फंगस उन्हें भी हो सकता है जो कभी कोविड-19 पॉजिटिव नहीं हुए ?

हां। मध्यप्रदेश की स्टडी रिपोर्ट के साथ ही बिहार समेत अन्य राज्यों से सामने आए केस इसकी पुष्टि करते हैं। मध्यप्रदेश की ब्लैक फंगस एनालिसिस रिपोर्ट के मुताबिक 38% इन्फेक्टेड मरीज ऐसे हैं, जिन्हें कभी कोरोना हुआ ही नहीं। पर ब्लैक फंगस हो गया।

विशेषज्ञों का कहना है कि ब्लैक फंगस की शरीर में एंट्री कोरोना वायरस के बाहर निकलने के बाद होती है। कोविड-19 इन्फेक्शन के 14 दिन बाद मरीज को एंटीवायरल ट्रीटमेंट की जरूरत नहीं पड़ती। सिर्फ ब्लैक फंगस का ही इलाज करना होता है।

किसे ब्लैक फंगस का रिस्क सबसे ज्यादा है?
कमजोर इम्युनिटी वालों को। ये उन लोगों को होता है जो डायबिटिक हैं, जिन्हें कैंसर है, जिनका ऑर्गन ट्रांसप्लांट हुआ हो, जो लंबे समय से स्टेरॉयड यूज कर रहे हों, जिनको कोई स्किन इंजरी हो, प्रिमैच्योर बेबी को भी ये हो सकता है।

इसके लक्षण क्या हैं?
शरीर के किस हिस्से में इन्फेक्शन है, उस पर इस बीमारी के लक्षण निर्भर करते हैं। चेहरे का एक तरफ से सूज जाना, सिरदर्द होना, नाक बंद होना, उल्टी आना, बुखार आना, चेस्ट पेन होना, साइनस कंजेशन, मुंह के ऊपर हिस्से या नाक में काले घाव होना, जो बहुत ही तेजी से गंभीर हो जाते हैं।

क्या इलाज संभव है और क्या है इलाज?
एक्सपर्ट के अनुसार, अगर किसी व्यक्ति में ब्लैक फंगस की पुष्टि होती है तो सरकार के अधिकृत केंद्रों से दवा मिल सकती है। एंटीफंगल दवाओं के इस्तेमाल के साथ आंख और नाक में इन्फेक्शन बढ़ने पर सर्जरी की आवश्यकता पड़ सकती है। ट्रीटमेंट में एंटीफंगस दवाओं का इस्तेमाल होता है, जैसे- एम्फोटेरिसिन B (Amphotericin B), पोसेकोनाजोल (Posaconazole) और आइसेवुकोनाजोल (Isavuconazole)।

क्या ये फंगस छूने से फैलता है?
नहीं। ये कम्युनिकेबल डिजीज नहीं है यानी ये फंगस एक से दूसरे मरीज में नहीं फैलता है, लेकिन ये कितना खतरनाक है। इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि इसके 54% मरीजों की मौत हो जाती है।
अमेरिकी एजेंसी सेंटर फॉर डिजीज कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (CDC) की रिपोर्ट कहती है कि शरीर में इन्फेक्शन कहां है, उससे मोर्टेलिटी रेट बढ़ या घट सकता है। जैसे- साइनस इन्फेक्शन में मोर्टेलिटी रेट 46% होता है वहीं, फेफड़ों में इन्फेक्शन होने पर मोर्टेलिटी रेट 76% तो डिसमेंटेड इन्फेक्शन में मोर्टेलिटी रेट 96% तक हो सकता है।
डॉक्टरों का कहना है कि यह फंगस जिस एरिया में डेवलप होता है, उसे खत्म कर देता है। ऐसे में अगर इसका असर सिर में हो जाए तो ब्रेन ट्यूमर समेत कई तरह के रोग हो जाते हैं, जो जानलेवा हैं। समय पर इलाज होने पर इससे बचा जा सकता है। अगर यह दिमाग तक पहुंच जाता है तो मोर्टेलिटी रेट 80 फीसदी है।

इससे बचा कैसे जा सकता है?

भोपाल की डॉक्टर पूनम चंदानी कहती हैं कि कंस्ट्रक्शन साइट से दूर रहें, डस्ट वाले एरिया में न जाएं, गार्डनिंग या खेती करते वक्त फुल स्लीव्स से ग्लव्स पहनें, मास्क पहनें, उन जगहों पर जाने बचें जहां पानी का लीकेज हो, जहां ड्रेनेज का पानी इकट्ठा हो वहां न जाएं।
जिन लोगों को कोरोना हो चुका है उन्हें पॉजिटिव अप्रोच रखना चाहिए। कोरोना ठीक होने के बाद भी रेगुलर हेल्थ चेकअप कराते रहना चाहिए। अगर फंगस से कोई भी लक्षण दिखें तो तत्काल डॉक्टर के पास जाना चाहिए। इससे ये फंगस शुरुआती दौर में ही पकड़ में आ जाएगा और इसका समय पर इलाज हो सकेगा।

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