पर्यावरण है तो हमारा समाज है, इसे दूषित करने के बजाय प्रकृति से प्रेम करें और इसके करीब रहें

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स्निग्धा श्रीवास्तव
समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 5जून। जी हां,  इसमें कही कोई मिथ्या नहीं है कि पर्यावरण है तो हमारा समाज है…इसे दूषित करने के बजाय प्रकृति से प्रेम करें और इसके करीब रहें। हम सभी जानते है कि जल, जंगल और जमीन, इन तीन तत्वों के बिना प्रकृति अधूरी और हम अधूरे है। विश्व में सबसे समृद्ध और स्वस्थय देश वही है, जहां यह तीनों तत्व प्रचुर मात्रा में हों। इसलिए भारत विश्व में अपने इन्ही खूबियों के कारण प्रसिद्ध है। भारत ज्यादात्तर प्रकृति द्वारा ही उत्पन्न धर्म स्थल और पर्यटन स्थल भी पर्यावरण की ही देन है। भारत के ही जंगलों में सबसे ज्यादा जीव-जन्तु निवास करते है।

भूमंडल पर सृष्टि की रचना कैसे हुई, सृष्टि का विकास कैसे हुआ और उस रचना में मनुष्य का क्या स्थान है? प्राचीन युग के अनेक विशाल जीवों कैसे गायब हो गए और उस दृष्टि से क्या अनेक वर्तमान वन्य जीवों के लोप होने की कोई आशंका है?

मानव समाज और वन्य जीवों का पारस्परिक संबंध क्या है? यदि वन्य जीव भूमंडल पर न रहें, तो पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? सृष्टि-रचना चक्र में पर्यावरण का क्या महत्व है यह सभी जानते है। हर प्राणी, वनस्पति का एक निर्धारित स्थान रहा है।
आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता को जागरूक करना।

दिनोदिन गम्भीर रूप लेती इस समस्या से निपटने के लिए आज आवश्यकता है एक ऐसे अभियान की, जिसमें हम सब स्वप्रेरणा से सक्रिय भागीदारी निभाएँ। इसमें हर कोई नेतृत्व करेगा, क्योंकि जिस पर्यावरण के लिए यह अभियान है उस पर सबका समान अधिकार है।

तो आइए हम सब मिलकर पर्यावरण का ख्याल रखे अपने भविष्य के लिए, देश के भविष्य के लिए..

घर के आसपास पौधारोपण करें। इससे आप गरमी, भूक्षरण, धूल इत्यादि से बचाव तो कर ही सकते हैं, पक्षियों को बसेरा भी दे सकते हैं, फूल वाले पौधों से आप अनेक कीट-पतंगों को आश्रय व भोजन दे सकते हैं।

शहरी पर्यावरण में रहने वाले पशु-पक्षियों जैसे गोरैया, कबूतर, कौवे, मोर, बंदर, गाय, कुत्ते आदि के प्रति सहानुभूति रखें व आवश्यकता पड़ने पर दाना-पानी या चारा उपलब्ध कराएँ। मगर यह ध्यान रहे कि ऐसा उनसे सम्पर्क में आए बिना करना अच्छा रहेगा, क्योंकि अगर उन्हें मनुष्य की संगत की आदत पड गई तो आगे चलकर उनके लिए घातक हो सकती है।

विश्व पर्यावरण दिवस की शुरूआत कबसे हुई-
विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।

विश्व पर्यावरण दिवस का महत्व
पर्यावरण को सुधारने हेतु यह दिवस महत्वपूर्ण है जिसमें पूरा विश्व रास्ते में खड़ी चुनौतियों को हल करने का रास्ता निकालता हैं। लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है।

धार्मिक महत्व-
सनातन धर्म में आदिकाल से ही पेड़-पौधों की पूजा और इनके लिए उपवास रखने की परंपरा है। हिंदू पंचांग के अनुसार कई व्रत और त्योहार पेड़-पौधों की विशेष रूप से पूजा के प्रति समर्पित है। हिंदू धर्म में वृक्षों को देवी-देवता के रूप में पूजने की परंपरा सदियों से आज भी निभाई जा रही है। हिंदू धर्म में लगभग हर त्योहार में देवी-देवताओं की पूजा आराधना के साथ पेड़ पौधों की भी भक्ति भाव से साथ पूजा जाता है। इससे पीछे प्रकृति के संरक्षण का संदेश होता है। वृक्ष ही ऐसी सम्पदा है जो मनुष्य को हर प्रकार से लाभ पहुंचाते हैं, इनके बिना जीवन की कल्पना भी नहीं की जा सकती। वहीं वास्तु में पौधे रोपण से व्यक्ति के जीवन में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह देखने को मिलता है।

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