समग्र समाचार सेवा
कीव, 3 मार्च। पर हमले के आठवें दिन भी रूस की और से ताबड़तोड़ बमबारी जारी है। यूक्रेन का दूसरा सबसे बड़ा शहर खारकीव पूरी तरह से उजर चुका है। 15 लाख की आबादी वाले शहर में अब सिर्फ तबाही का मंजर ही नजर आता है। इस शहर को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान तबाह किया था। कहा जाता है कि उस दौर में खारकीव की आबादी 25 लाख हुआ करती थी और यह यूएसएसआर को तीसरा सबसे बड़ा शहर हुआ करता था, लेकिन हिटलर के नरसंहार के बाद खारकीव में बामुश्किल सवा लाख आबादी बच पाई थी।
2000 बेगुनाह नागरिकों की जान गई
फिलहाल, यूक्रेन ने दावा किया है कि जंग के पहले सात दिनों में रूस ने करीब 2000 बेगुनाह नागरिकों की जान ली है। रूसी हमले में कितने लोग घायल हुए हैं, इसका सटीक आंकड़ा अभी नहीं है। खारकीव से जो तस्वीरें आ रही हैं वो बेहद दर्दनाक हैं। कवियों और कविताओं के इस शहर पर पिछले तीन दिनों में रूस ने इतने बम बरसाए हैं कि ज़िंदगी पूरी तरह पटरी से उतर चुकी है। टूटी इमारतें, खंडहर मकान, वीरान बाजार, सुनसान सड़कें और अस्पतालों में मौत से जूझते लोग तबाही की कहानी बयां करने के लिए काफी है।
80 साल पहले भी इस शहर ने देखा था कुछ ऐसा ही नजारा
80 साल पहले यानि दूसरे विश्वयुद्ध में भी इस शहर ने तबाही का मंजर देखा था। हालात यह है कि खारकीव के आसमान में दिन भर बजते सायरन की आवाज़ भी मातमी धुन जैसी लग रही हैं। दूसरे विश्वयुद्ध के बाद खारकीव शायद अपने इतिहास के सबसे बुरे दौर से गुज़र रहा है। दूसरे विश्वयुद्ध के दौरान हिटलर की नाजी सेना ने खारकीव पर कब्जा कर लिया था। खारकीव पर कब्जे के बाद हिटलर के हुक्म पर यहां रहनेवाले लाखों यहूदियों को या तो गोलियों से उड़ा दिया गया था या गैस चैंबर में डालकर उन्हें मौत के घाट उतार दिया गय।
1941 में केवल 2 दिन के अंदर खारकीव में रह रहे 30 हजार से ज्यादा को मौतें हुईं
इतिहास बताता है कि सितंबर 1941 में केवल 2 दिन के अंदर खारकीव में रह रहे 30 हजार से ज्यादा को मौत के घाट उतार दिया गया था। हिटलर की सेना ने जब खारकीव और उसके आस-पास के इलाक़े पर कब्जा कर लिया था। उस दौर में खारकीव में 25 लाख यहूदी रहा करते थे, लेकिन जब हिटलर की सेना हार कर खारकीव से लौटी तो इस इलाक़े में मुश्किल से 1 से 1 लाख 20 हजार यहूदी ही जिंदा बचे थे। यहूदियों के अलावा भी हजारों लोगों की जान गईं थी। 70 फीसदी शहर तब जंग में बर्बाद हो गया था। तब खारकीव पूरे सोवियत संघ का तीसरा सबसे बड़ा शहर हुआ करता था।
रूस यूक्रेन के दो शहरों को बना रहा निशाना
एक बार रूस ने यूक्रेन पर हमला बोला है। खारकीव शहर बर्बाद हो चुका है। सवाल यह है कि रूस यूक्रेन के सिर्फ दो शहरों खारकीव और यूक्रेन की राजधानी कीव को ही सबसे ज़्यादा निशाना क्यों बना रहा है? दरअसल, खारकीव का इतिहास सदियों पुराना है। एक वक़्त में खारकीव यूएसएसआर यानी सोवियत संघ का ही हिस्सा हुआ करता था। 1920 से लेकर 1934 तक खारकीव यूक्रेन की राजधानी तक रह चुकी है। खारकीव की पहचान सिर्फ़ कवि-कविता, आर्ट एंड कल्चर, व्यापार और इंडस्ट्री या फिर वैज्ञानिक खोज के लिए ही नहीं है, बल्कि इसकी पहचान एक बड़े सैन्य अड्डे और दुनिया के सबसे मजबूत टैंक टी-34 बनाने के लिए भी है। सोवियत टी-34 टैंक खारकोव ट्रैक्टर फैक्ट्री में बना करता था।
खारकीव रूस की पूर्वी सीमा से केवल 25 मील की दूरी पर
खारकीव रूस की पूर्वी सीमा से केवल 25 मील की दूरी पर है। यूक्रेन का ये वो शहर है जहां रूसी भाषाई लोग बड़ी तादाद में रहते हैं। रूस कीव और खारकीव को सबसे पहले जीतना चाहता था। खारकीव चूंकि रूसी बॉर्डर से सिर्फ 25 मील की दूरी पर है, लिहाज़ा रूस को लगा था कि इस शहर पर कब्जा करने में ज्यादा वक्त नहीं लगेगा। लेकिन जिस तरह से यूक्रेन की सेना ने खारकीव की घेरेबंदी की और सात दिनों तक रूसी सेना को शहर के बाहर रखा, उसने रूस को चौंका दिया। शहर पर ये बमबारी रूस की उसी खुन्नस का नतीजा है। रूस को ग़लतफहमी थी कि खारकीव में रहने वाले रूसी भाषाई लोग उसकी मदद करेंगे और आसानी से इस शहर को कब्ज में लेगा। यही वजह है कि रूस की बेचैनी बढ़ती जा रही है। रूस की बेचैनी का अंदाजा इससे लगा सकते हैं कि उसने परमाणु युद्ध की भी धमकी देना शुरू कर चुका है।
हर रोज 1.12 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च
इस युद्ध में रूस हर रोज 1.12 लाख करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च कर रहा है। हाल ही में एस्टोनिया के पूर्व डिफेंस मिनिस्टर रिहो टेरास ने एक रिपोर्ट तैयार की है। उन्होंने अपनी रिपोर्ट में दावा किया है कि अगर युद्ध 10 दिन से ज्यादा चला तो रूस की हालत खस्ता हो जाएगी। इस रिपोर्ट में कहा गया है कि रूस को उम्मीद थी कि वो हमले से यूक्रेन को दबाव में ले लेगा और नाटो में जाने से रोकने के लिए राजी करवाने में कामयाब हो जाएगा, लेकिन ये दांव उल्टा पड़ सकता है।
कुछ देश यूक्रेन की मदद के लिए आगे आए
दूसरी तरफ दावा किया जा रहा है कि कीव और खारकीव में यूक्रेन को मजबूती से लड़ने के लिए कुछ देशों ने हथियारों की सप्लाई शुरू कर दी है।कई देश ये चाहते हैं कि रूस को ज्यादा दिनों तक रोके रखा जाए। इससे रूस की आर्थिक हालत खुद ही खराब हो जाएगी। 28 फरवरी को कीव इंडिपेंडेंट की रिपोर्ट में दावा किया गया है कि नेशनल बैंक को 33 मिलियन डॉलर का दूसरे देशों से आर्थिक सपोर्ट मिला है। इन पैसों से यूक्रेन युद्ध के मोर्चे पर काफी मजबूत होगा और रूस को रोकने में काफी हद तक सफल होगा।
राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने अबतक दिया साहस का परिचय
यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमीर जेलेंस्की ने रूसी आक्रमण के खिलाफ अबतक जिस तरह की नेतृत्व क्षमता का परिचय दिया है, वह सराहनीय है। दुनिया में किसी को भी अनुमान नहीं था कि नाटो और अमेरिका सही वक्त पर उनका साथ नहीं देंगे। लेकिन, फिर भी जब रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन की सेना को यूक्रेन की राजधानी कीव पर कब्जा करने में जरूरत से ज्यादा देर हो रही है तो बौखलाहट में नागरिक इलाकों पर भी गोलाबारी हो रही है और मिसाइलें भी गिराई जा रही हैं।