समग्र समाचार सेवा
नई दिल्ली, 11 अप्रैल। वरिष्ठ लेखक इंद्र वशिष्ठ ने दिल्ली में निजी स्कूलों के रैवेये को लेकर चिंता जताई है। दिल्ली में क्या ऐसे भी पब्लिक स्कूल हैं जो सरकार द्वारा दिए जा रहे पैसे का गबन कर रहे हैं? सरकार आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों के लिए किताब, कापियों और वर्दी के पैसे स्कूलों को देती है। लेकिन स्कूल बच्चों को वर्दी और किताबें मुफ्त नहीं देते हैं। आर्थिक रुप से कमजोर माता-पिता हजारों रुपयों की किताबें, कापियां और वर्दी स्कूल से खरीदने के लिए मजबूर हैं। स्कूल वाले इस तरह बच्चों के नाम पर सरकार द्वारा दिए जा रहे पैसे को हड़प कर अपराध कर रहे हैं।
मनीष सिसोदिया से सिस्टम सुधारने की अपील
उन्हों कहा कि दिल्ली सरकार के उप मुख्यमंत्री एवं शिक्षा मंत्री सिसोदिया को ऐसी पुख्ता व्यवस्था करनी चाहिए जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि बच्चों को वर्दी और किताबें मिल जाए। सरकार द्वारा दिया जा रहा पैसा स्कूल द्वारा हड़पने से शिक्षा विभाग के उन अफसरों की भूमिका पर सवालिया निशान लग गया जिनका कार्य यह सुनिश्चित करना होता है कि सरकारी योजना का लाभ उन गरीब बच्चों को मिले जिनके लिए योजना बनाई गई हैं।
सरकार वर्दी, किताबों, कापियों के पैसे देती हैं
शिक्षा विभाग के एक वरिष्ठ अफसर ने बताया कि सरकार पब्लिक स्कूल वालों को आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के बच्चों को वर्दी, किताबें, कापियां आदि देने के लिए रकम देती है। स्कूल वाले शिक्षा विभाग में उन बच्चों की सूची और बिल भी जमा कराते हैं जिनको वर्दी और किताबें दी गई है। जिसके आधार पर सरकार स्कूल को रकम का भुगतान करती हैं। शिक्षा विभाग के जोन के संबंधित अफसरों का काम होता है कि वह खुद भी बच्चों के अभिभावकों से संपर्क करें और यह सुनिश्चित करें कि बच्चों को वर्दी और किताबें स्कूल ने दी हैं या नहीं।
अफसरों पर लगा मिलीभगत का आरोप
बच्चों को वर्दी और किताब कापियां नहीं दिए जाने से पता चलता है कि अफसरों की लापरवाही या स्कूल वालों से उनकी मिलीभगत के चलते बच्चों को वर्दी और किताबें नहीं मिलती। अशोक विहार स्थित लायंस पब्लिक स्कूल वालों द्वारा भी वर्दी और किताबें नहीं दिए जाने के ऐसे ही मामलों का पता चला है।
स्कूलों की हरकतों से परेशान अभिभावक
आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों के अभिभावक किताबों, कापियों और वर्दी के लिए स्कूल के चक्कर काट रहे हैं। बिना किताबों के कैसे बच्चों को पढ़ाएं। हैरानी की बात है कि स्कूल स्टाफ द्वारा प्रिंसिपल का फोन नंबर तक नहीं दिया गया। नाम उजागर करने पर उनके बच्चों को स्कूल वाले परेशान कर देंगे इस लिए अभिभावक अपना और बच्चों का नाम उजागर नहीं करना चाहते। अभिभावकों ने बताया कि यह सिलसिला सालों से चल रहा है। आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग की दो बहनों ने भी इस स्कूल से बारहवीं तक की पढ़ाई की है। लेकिन कभी भी वर्दी और किताबें नहीं दी गई थी।
किताबें और वर्दी मामलों की जांच
लायंस पब्लिक स्कूल ने पिछले कुछ सालों में कितने बच्चों को वर्दी और किताबें दी है इसका रिकॉर्ड तो शिक्षा विभाग को दिया ही गया होगा। शिक्षा मंत्री को उस रिकॉर्ड की जांच करानी चाहिए। उन सभी बच्चों के अभिभावकों से निजी रुप से अफसरों को संपर्क करना चाहिए तभी यह सच्चाई मालूम होगी कि कितने बच्चों को वाकई में वर्दी और किताबें स्कूल से मिली थी। सच्चाई पता लगाने के लिए अफसरों को बारहवीं पास कर चुके इस स्कूल के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के उन बच्चों से भी संपर्क करना चाहिए। वह बच्चे अब खुल कर बता सकते हैं कि उनको स्कूल से वर्दी और किताबें मिली थी या नहीं। स्कूल द्वारा दिखाए गए रिकार्ड में अभिभावकों के हस्ताक्षर की सत्यता की भी जांच करानी चाहिए।
शिक्षा मंत्री कराएं मामले में एफआईआर
शिक्षा मंत्री मनीष सिसोदिया को यह तरीका सभी पब्लिक स्कूल वालों की सच्चाई मालूम करने के लिए अपनाना चाहिए। सरकार द्वारा बच्चों के लिए भेजे जा रहे पैसे को हड़पने वाले स्कूलों के खिलाफ जालसाजी, धोखाधड़ी और सरकारी रकम हड़पने की एफआईआर दर्ज करानी चाहिए। ऐसे लोगों को जेल भेजा जाना चाहिए। तभी सरकार की योजना का लाभ उन बच्चों को मिल पाएगा। सरकार को किताबों और वर्दी के पैसे अभिभावकों के बैंक खातों में सीधे जमा कराने पर विचार करना चाहिए। अगर रकम खाते में जमा कराई जाएं तो इस बात की पुख्ता व्यवस्था की जानी चाहिए कि स्कूल उस तय पैसे से ही उनको वर्दी और किताबें दें। ऐसा इंतजाम नहीं किया गया तो स्कूल फिर अपनी मर्ज़ी की कीमत वर्दी और किताबों की वसूलेगा।
अभिभावकों आवाज उठाओ-
अभिभावकों को भी जागरुक और निडर हो कर बच्चों का हक़ हड़पने वाले ऐसे स्कूलों के खिलाफ आवाज उठानी चाहिए। अभिभावकों को स्कूल में किसी भी कागज़ पर हस्ताक्षर करने से पहले उसे अच्छी तरह पढ़ लेना चाहिए कहीं ऐसा न हो कि स्कूल वाले आपसे वर्दी और किताबें सौंपने के कागज़ पर धोखे से हस्ताक्षर करवा लें। जिससे वह अपने रिकॉर्ड में यह दिखा देंगे कि किताबें और वर्दी दे दी गई है। सरकार को स्कूलों को निर्देश देने चाहिए कि वह स्कूल में एक बोर्ड लगाएं जिस पर ग़रीब बच्चों को सरकार द्वारा दी जाने वाली सुविधाओं और योजनाओं की जानकारी दी गई हो। सरकार को ऐसा एक फोन नंबर भी देना चाहिए जिस पर अभिभावक शिकायत कर सकें। शिकायत पर की गई कार्रवाई से भी अभिभावक को अवगत कराया जाए।
सरकारी आदेश नहीं मानते स्कूल
किताब, कापियां और वर्दी नहीं दिए जाने की शिकायत अभिभावकों द्वारा शिक्षा विभाग को लगातार की जाती हैं। शिक्षा विभाग आदेश भी जारी करता है लेकिन स्कूलों द्वारा उसका पालन नहीं किया जा रहा है।