तस्मै श्रीगुरवे नमः

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पार्थसारथि थपलियाल
पार्थसारथि थपलियाल

आज गुरुपूर्णिमा है। सनातन संस्कृति के आदि ग्रंथों के सृजक महर्षि वेदव्यास जी का जन्मदिन है। वेदों और उपनिषदों के संकलनकर्ता, पुराणों और महाभारत के रचयिता जिन्होंने मानवता को सुसंस्कृत होने का ज्ञान दिया ऐसे गुरु को नमन है। भारतीय लोकजीवन में जो व्यापक ज्ञान दिखाई देता है उसके प्रकाश स्तंभ महर्षि वेदव्यास हैं। अगर वेदव्यास ब्रह्मज्ञान को उद्घाटित न करते तो समाज को ईश्वरीय अनुभूति भी न होती।

आपको याद होगा महाभारत का वह किस्सा जब महर्षि वेदव्यास ने कुरुक्षेत्र की रणभूमि में कौरवों और पांडवों के मध्य युद्ध का आंखों देखा हाल धृतराष्ट्र को बताने के लिए दिव्य दृष्टि दी थी। जो गुरु दूसरों को दृष्टि दे सकता है वह स्वयं कितना प्रज्ञावान होगा, इसी से गुरुत्व स्थापित होता है। महर्षि वेदव्यास के जन्म दिन को गुरुपूर्णिमा नाम से मनाया जाता है।

गुरु शब्द दो अक्षरों गु और रु से बना है। इसका अर्थ है अज्ञान से प्रकाश की ओर ले जानेवाला।

भारतीय संस्कृति में ऐसे व्यक्ति को गुरु कहा जाता है। आध्यात्म में तो बिना गुरु के सिद्धि मिलना ही कठिन है। सामान्य जीवन में भी यह देखा जाता है कि गुरु की कृपा से लोग यशस्वी हुए हैं, सफल हुए हैं।

भारत में अनेक गरुओं की गौरव गाथाओं से हम परिचित हैं। देवताओं के गुरु बृहस्पति हैं तो दैत्यों के गुरु शुक्र है। भगवान राम के गुरु वशिष्ठ रहे,भगवान श्रीकृष्ण के गुरु संदीपन। कौरवों और पांडवों के गुरु द्रोणाचार्य रहे, स्वामी विवेकानंद के गुरु श्रीरामकृष्ण परमहंस, कबीर दास जी के गुरु रामानंद।

भगवान दत्तात्रेय ने अपने जीवन में 24 गुरु बनाये। ये 24 गुरु हैं-पृथ्वी, जल, वायु, अग्नि, आकाश, सूर्य, चन्द्रमा, समुद्र, अजगर, कपोत, पतंगा, मछली, हिरण, हाथी, मधुमक्खी, शहद निकालने वाला, कुरर पक्षी, कुमारी कन्या, सर्प, बालक, पिंगला, वैश्या, बाण बनाने वाला, मकड़ी, और भृंगी कीट। इन सभी गरुओं को नमन।।

अज्ञान तिमिरान्धस्य ज्ञानाञ्जन शलाकया ।
चक्षुरुन्मीलितं येन तस्मै श्री गुरवे नमः ॥
अर्थात जिसने ज्ञानांजनरुप शलाका से, अज्ञानरुप अंधकार से अंध हुए लोगों की ज्ञान रूपी शलाका से आँखें खोली, उन गुरु को नमस्कार ।

गांव देहात में एक कहावत है- “पानी पीजिए छानकर और गुरु कीजिये जानकर।। इसीलिए केवल वे लोग गुरु होने की योग्यता रखते है जो ज्ञान के उच्च शिखर पर हों।”

निवर्तयत्यन्यजनं प्रमादतः स्वयं च निष्पापपथे प्रवर्तते ।
गुणाति तत्त्वं हितमिच्छुरंगिनाम् शिवार्थिनां यः स गुरुर्निगद्यते ॥
अर्थात जो दूसरों को प्रमाद करने से रोकते हैं, स्वयं निष्पाप रास्ते से चलते हैं, हित और कल्याण की कामना रखनेवाले को तत्त्वबोध करते हैं, उन्हें गुरु कहते हैं ।

वर्तमान में अच्छे गुरूओं का अभाव है। गंडा, ताबीज बांधनेवाले छद्म गुरुओं की भरमार है। इसीलिए लिए कहा है-
अंधा गुरु बहरा चेला, दोनों नरक में ठेलमठेला।।
मुझे जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जो भी गुरु मिले, उन्होंने जो मार्ग प्रशस्त किया, अच्छा रहा। आज गुरुपूर्णिमा पर उन्हें शत शत वंदन और नमन।।

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुः गुरुर्देवो महेश्वर:
गुरूसाक्षात पर:ब्रह्म तस्मै: श्री गुरवे नमः।।

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